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रोमांच और मनोरंजन से भरपूर हैं लद्दाख के सांस्कृतिक उत्सव

भारत के सभी राज्यों में साल भर कोई न कोई पर्यटन उत्सव का आयोजन किया जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य राज्यों में पर्यटन को अधिक से अधिक बढ़ना है। भारत का ठंडा रेगिस्तान कहा जाने वाले लद्दाख में भी पर्यटन विभाग द्वारा स्थानीय सहयोग से सितंबर माह में लेह में आयोजित लद्दाख महोत्सव भी क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति से पर्यटकों को जोड़ने और पर्यटन विकास के उद्देश्य से हर वर्ष आयोजित किया जाता है।

लद्दाख महोत्सव
यह बेहद रंगबिरंगा और मनोरंजनपूर्ण उत्सव होता है। उत्सव में स्थानीय संस्कृति के रंग, परंपराएं, वेशभूषा,पारंपरिक संगीत, लोकनृत्य, अनोखे वाद्य, हस्तशिल्प कला, तीरंदाजी की प्रतियोगिताएं, लद्दाख का लजीज व्यंजन जैसे आकर्षणों से करीब दो सप्ताह चलने वाले उत्सव की शुरुआत शानदार परेड प्रदर्शन के साथ होती है। इसममें राज्य की सभी जनजातियों द्वारा नकाब पहन कर नृत्य लोक और गायन का प्रदर्शन करते हैं, जो इतना आकर्षक होता है कि बस अपलक देखते रह जाएं।

रंगबिरंगे कपड़े पहने टर्टुक, ड्रोकपस, दाह हनु के निवासियों के साथ दूसरे लोग अपने पारंपरिक परिधानों में भाग लेते हैं और पारंपरिक परेड में मार्च करते हैं। यहां फूलों के मुकुट, चांदी और नीलमणि वाले आभूषणों को देखकर आप दंग रह जाएंगे। कई मठ और गाँव भी इस मस्ती में शामिल होते हैं। मनोरंजन के लिए इस उत्सव में पोलो मैच का आयोजन भी किया जाता है।

पर्यटकों को लद्दाख की पूरी संस्कृति को एक ही स्थान पर देखने – समझने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है यह उत्सव। पारंपरिक लद्दाखी पोशाक भी आपका ध्यान खींचती है। लद्दाखी पुरुषों के लिए पोशाक के रूप में जाना जाता है गौचा वह ऊनी वस्त्र है जिसे लोग गले से लेकर कमर तक बाँधते हैं। रोब उन्हें ठंड से बचाता है और काफी फैशनेबल बनाता है। यह परिधान एक जीवंत सैश से बंधा होता है जिसे स्थानीय भाषा में स्केराग के नाम से जाना जाता है। स्त्रियाँ इसी प्रकार का ऊनी वस्त्र पहनती हैं जिसे कुंटोप के नाम से जाना जाता है। पेराक टोपी, पोशाक को अधिक रंगीन बनती है।

उत्सव का आकर्षण होते हैं स्थानीय व्यंजन थुकपा, त्सम्पा, मोमो, स्काईयू, टिंगमो, और बटर टी को एक विशेष बर्तन में बनाया जाता है , स्वाद में बहुत लजीज होता है। साथ ही एडवेंचर प्रेमियों के लिए लद्दाख किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं। उत्सव के दौरान इन
गतिविधियों का सैलानी खूब आनंद लेते हैं।

सैलानी यहां के कारीगरी पूर्ण मठों का अवलोकन कर आध्यात्म और बौद्ध संस्कृति से भी जुड़ते हैं। लेह – लद्दाख में लेह पैलेस, स्टोक पैलेस, हॉल ऑफ फेम संग्रहालय, द्रास युद्ध स्मारक, चुंबकीय पहाड़ी और द्रंग-द्रुंग ग्लेशियर कुछ अन्य स्थल सैलानियों के पर्यटन के शोक को भी पूरा करते हैं। इस उत्सव में दिनों दिन पर्यटकों की संख्या में अच्छा इज़ाफा होने लगा है। इन दिनों में पर्यटक लद्दाख भ्रमण का कार्यक्रम बनाने लगे हैं।

खुबानी खिलाना उत्सव
पर्यटकों को अधिक से अधिक आकर्षित करने के लिए पर्यटन विभाग ने अप्रैल माह में खुबानी खिलना उत्सव शुरू किया है। खुबानी को स्थानीय भाषा में ” चुली मेंडोक” कहा जाता है। यह उत्सव लेह के बिआमा, तुरतुक और त्याक्षी गांवों के साथ – साथ दारचिक, गरकोने, संजाक, हरदास और कार्कीचू में आयोजित किया जाता है। लद्दाख में खुबानी के पेड़ों की सबसे ज्यादा सघनता और करीब एक दर्जन से अधिक किस्में पाई जाती है।
इनके फूलों की महक और फलों से लदे रंगबिरंगे पेड़ देख कर ही पर्यटक प्रफुल्लित हो उठते हैं। करगिल और द्रास के लोगों के लिए खुबानी मुख्य नकदी फसल है और बहुत से लोगों की आजीविका खुबानी की खेती पर ही निर्भर है। ये फल लद्दाख की संस्कृति, विरासत और अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।

इस उत्सव को सांस्कृतिक कार्यक्रमों और लजीज व्यंजनों के स्टाल से सजाया जाता है। देशी-विदेशी पर्यटकों उत्सव का खूब लुत्फ उठाते है। यह और भी सुखद पहलू है की स्थानीय बाज़ार से खुबानी अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात करने की स्थिति में आ गई है। इस उत्सव को और अधिक व्यापक रूप प्रदान करने के प्रयास पर्यटन विभाग द्वारा। किए जा रहे हैं।

हेमिस उत्सव
हेमीस उत्सव बौद्ध संस्कृति का लोक प्रिय उत्सव है जिसे मठवासी बौद्ध लामा और बौद्ध भिक्षु रंग बिरंगी वेशभूषा पहन कर और कई प्रकार के मुखौटे पहन कर संगीत और नृत्य के साथ आयोजित किया जाता है। सबसे बड़े और प्रसिद्ध हेमिस गोम्पा में वार्षिक उत्सव की कोई तारीख निश्चित नहीं है परंतु तिब्बती कैलेण्डर के अनुसार पांचवें महीने जून में पूर्ण चंद्रमा दिखने के दिन से यह उत्सव आरंभ होता है जो तीन दिनों तक चलता है। उत्सव के समय, गुरु पद्मसंभव का 4 मंजिला थंकाचित्र प्रांगण में लटकाया जाता है और अन्य कीमती थांगका पेंटिंग प्रदर्शित की जाती है।

इस उत्सव का सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन लामा संतो द्वारा किया जाने वाला “छाम नृत्य” है जो की राक्षसों, यमो की भूमिका में सींगो के साथ मुखौटा पहन कर किया जाता है। इस नृत्य रूपी खेल में भाग लेने वाले संगीतकार आदि सभी लामा ही होते हैं, जो 15-15 फुट लंबे ढोलों, तुराहियों और मझीरो को बजाते हैं। यह खेल हेमिस गोम्पा के बरामदे में ही खेला जाता है और अच्छाई की बुराई पर जीत के नाटक का प्रदर्शन करते हैं। छाम नृत्य बौद्ध तांत्रिक परम्परा का एक भाग है और केवल मठो में ही अभ्यास स्वरूप किया जाता है।

हेमिस मठ को आकर्षक रूप से सजाया जाता है और मठ के दो भागों में दाईं ओर असेंबली हॉल और बाईं ओर मुख्य मंदिर में उत्सव आयोजित किया जाता है। उत्सव के कार्यक्रम मठ के मुख्य द्वार के सामने वाले परिसर में आयोजित किए जाते हैं। एक उँचे चबूतरे में गद्दे पर रंग बिरंगे तिबतियन मेज़ को रखा जाता है जिस पर अनुष्ठानिक वस्तुएं जैसे पवित्र जल के पात्र, कच्चे चावल, टॉरमस (आटें और मक्खन को गूंथकर बनाया गया मिश्रण) और अगरबत्तियां इत्यादि रख पूजा की जाती है। हेमिस उत्सव में कार्यक्रम में शामिल होने वाले भगवान से अच्छे जीवन की प्रार्थना करते हैं और हंसी खुशी के साथ इस उत्सव को संपन्न करते हैं।

लद्दाख में कई सैलानी इस नृत्य को देखने ही आते हैं। स्थानीय नागरिक भी बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। यहां सबसे प्रसिद्ध व बड़ी ‘थंका’ तस्वीर है जिसे 12 साल में एक बार ही जनता के लिए प्रदर्शित किया जाता है।

यह उत्सव तिब्बत में तांत्रिक बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु पद्मसंभव के जन्म की स्मृति में बहुत ही उत्साह और जोश के साथ आयोजित किया जाता है। गुरु पद्मसम्भवा भगवान बुद्ध के बाद दुसरे सबसे बड़े गुरु माने जाते है। यह माना जाता है कि गुरु पद्मसम्भवा ने तांत्रिक बुद्धिज़्म की मदद से सभी बुरी शक्तियों पर विजय पायी थी।

लेह से करीब 48 किमी की दूरी पर पूर्व-दक्षिण में सिंधु नदी के किनारे स्थित हेमिस गोम्पा अपनी कला की खूबसूरती तथा आकर्षण के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहीं पर बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तथा पुराने भवन हैं। इस गोम्पा में रखी गई मूर्तियों पर सोने से कारीगरी की गई है और बेशकीमती पत्थर भी जड़े गए हैं। अति मूल्यवान चित्रों तथा अभिलेखों से यह गोम्पा सुसज्जित है।

कैसे पहुंचे
लद्दाख नई दिल्ली, मुंबई , चंडीगढ़ श्रीनगर, जम्मू, जैसे अन्य शहरों से इसकी अच्छी कनेक्टिविटी है। इन जगहों से हवाई सेवा उपलब्ध है। सड़क मार्ग से भी लेह कई शहरों से जुड़ा है। दिल्ली – लेह-मनाली राजमार्ग के माध्यम से 1000 किमी, मनाली – लेह-मनाली हाईवे और केलांग लेह रोड के माध्यम से 475 किमी, चंडीगढ़ – लेह-मनाली राजमार्ग के माध्यम से 760 किमी ,अमृतसर – लेह-मनाली राजमार्ग के माध्यम से 870 किमी , शिमला – लेह-मनाली राजमार्ग के माध्यम से 720 किमी की दूरी पर स्थित है। श्रीनगर से लेह के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य सड़क परिवहन निगम डीलक्स और साधारण बसें उपलब्ध हैं। रेल सेवा की दृष्टि से जम्मू तवी नजदीकी रेलवे स्टेशन है। जम्मू कई शहरों से रेल सेवा से जुड़ा है। जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से लेह तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग करीब 700 किमी की यात्रा करनी होगी।

-(लेखक ऐतिहासिक व पर्यटन से लेकर साहित्य व संस्कृति से जुड़े विषयों पर निरतर
लेखन करते हैं)