1

भारत की दान धर्म की संस्कृति को नया क्षितिज देने में जुटे हैं श्री एस. गुरूमूर्ति

जब भी श्री एस गुरूमूर्ति का नाम सामने आता है तो एक ऐसे शख्स का व्यक्तित्व उभरता है जिसने 90 के दशक में सर्वशक्तिमान स्व. धीरूभाई अंबानी के कारोबार की चूलें हिला दी थी, या एक ऐसे आर्थिक विशेषज्ञ का चेहरा सामने आता है जिसके आगे देश के जाने माने कारोबारी घराने भीगी बिल्ली बन जाते हैं। एस. गुरूमूर्ति एक ऐसे शख्स हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत से अपनी एक ऐसी पहचान बनाई है कि उनकी कही हुई किसी बात को प्रधान मंत्री से लेकर बड़े कारोबारी घराने तक हल्के में नहीं लेते हैं। आज की पीढ़ी के सामने अपनी योग्यता और क्षमता से खास मुकाम बनाने वाले लोगों में दो ही नाम उभरकर सामने आते हैं एक तो स्व. एपीजे कलाम साहब का तो दूसरा श्री एस. गुरूमूर्ति का।

आज श्री गुरूमूर्ति प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार की भूमिका में भी हैं तो दूसरी ओर वे अपनी क्षमता, उर्जा और प्रतिभा का उपयोग एक ऐसे अभियान के लिए कर रहे हैं जिससे हमारी भारत की सनातन परंपरा, जीवन मूल्यों, दान-दक्षिणा, परोपकार, संस्कार और संस्कृति को एक नई पहचान मिल रही है। यह अभियान है हिन्दू अध्यात्मिक सेवा मेला। यह एक ऐसा अभियान है जिसने लाखों हिन्दू परिवारों को अपने गौरवशाली अतीत, सनातन संस्कृति के जीवन मूल्यों से परिचित ही नहीं कराया है बल्कि उसकी उन खूबियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित किया है जो आज फिल्म, टीवी और मीडिया के कुत्सित प्रचार की वजह से अपना महत्व खोती जा रही थी।

श्री गुरूमूर्ति कहते हैं, मैं एक बार अमरीका की यात्रा में गया तो मुझे वहाँ के लोगों के साथ आपसी बातचीत में ऐसा लगा कि लोगों के मन में ये आम धारणा है कि हिन्दू लोग सेवा कार्यों में रुचि नहीं लेते। उन्होंने कहा कि बिल गेट्स के दान की खबरें अखबारों की हेडलाईन बन जाती है लेकिन हमारे हिन्दू समाज की सैकड़ों हजारों संस्थाएँ जो परोपकार के काम कर रही है, वो बिल गेट्स के दान से हजारों गुना है। उनका आर्थिक चिंतक मन इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था कि भारत, जहाँ सुबह उठते ही गाय और कुत्ते को रोटी देने से लेकर अतिथि को भोजन कराने से लेकर मंदिर में दान करने की परंपरा है वहाँ का समाज दान के मामले में इन विदेशी उद्योगपतियों से कहीं कम होगा। इसी प्रश्न का जवाब खोजते खोजते उनके मन में हिन्दू अध्यात्मिक सेवा मेले की कल्पना ने जन्म लिया।

image (2)श्री गुरूमूर्ति ने कहा कि मेरा बचपन गाँव में बीता और मैं बचपन से ही देखता था कि मेरी माँ गाय और कुत्ते को रोटी देने के बाद घर के बाहर आंगन में बैठकर इस बात का इंतजार करती थी कि कोई अतिथि आए तो उसे खाना खिलाकर वो खाना खाए।

श्री गुरूमूर्ति बताते हैं, जब आठ साल पहले चेन्नई में हमने ये मेला आयोजित करने का निर्णय लिया तो हमारा खूब मजाक बनाया गया, मीडिया से लेकर हमारे आसपास के लोगों ने भी इसको गंभीरता से नहीं लिया, यहाँ तक कि हमने जब इस मेले के आयोजन के लिए मठों, मंदिरों और आश्रमों के प्रमुखों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इसके आयोजन को लेकर तमाम तरह के संदेह पैदा किए। कई आश्रमों, मंदिरों और मठों के संचालकों का कहना था कि दान-धर्म परोपकार हम स्वांतः सुखाय करते हैं, इसके प्रचार की क्या ज़रुरत। लेकिन जब पहला मेला आयोजित किया गया और वहाँ आकर लोगों ने हमारे हिन्दू संगठनों के परोपकार, शिक्षा, दान-धर्म के कामों को देखा तो लोगों को आश्चर्य हुआ। जिन कामों के बारे में लोग सोच ही नहीं सकते थे ऐसे काम हमारे हिन्दू संगठनों द्वारा बगैर किसी प्रचार के किए जा रहे हैं।

पहले मेले की सफलता के बाद तो स्थिति यह हो गई कि तमिलनाडु की सरकार के कई विभाग तक इसमें भागीदारी के लिए आगे आने लगे और जहाँ पहली बार हमें सरकार से लेकर समाज के की वर्गों से उपेक्षा मिल रही थी, दूसरी बार में हमें हर तरह का सहयोग मिलने लगा। मीडिया ने भी आगे आकर इसको हर तरह से प्रचारित किया। लगातार आठ साल तक चेन्नई में मेला आयोजित करने के बाद जब इसे पिछले साल जयपुर में आयोजित किया गया तो वहाँ पहले साल ही इतनी भीड़ थी जितनी पाँचवें साल में चेन्नई में थी।

श्री गुरूमूर्ति बताते हैं सत्य साईं बाबा ने 1800 करोड़ रु. की लागत से आंध्र प्रदेश के 3 जिलों में 7 हजार किलोमीटर की पाईप लाईन बिछवा दी और 5 हजार ओवरहेड टैंक बनाकर लाखों लोगों को जल संकट से मुक्ति दिलवाई। ये तो एक उदाहरण मात्र है, ऐसे हजारों काम हिन्दू मठों, मंदिरों और आश्रमों द्वारा देश भर में किए जा रहे हैं। श्री गुरूमूर्ति ने बताया कि रामकृष्ण सेवा मिशन हर साल 84 लाख लोगों का मुफ्त इलाज करवाता है। चेन्नई में आई बाढ़ के दौरान रामकृष्ण मिशन ने लाखों लोगों को खाने के पैकेट बाँटे। जब सुनामी का कहर बरपा था तो माता अमृतानंदमयी मठ ने 25 हजार लोगों के लिए घर बनाकर दिए। उन्होंने कहा कि ऐसे हजारों लाखों कार्य हिन्दू संस्थाओँ, साधुओँ और संतों द्वारा किए जा रहे हैं लेकिन मीडिया में हिन्दू संतों की एक गलत छवि पेश की जाती है।

उन्होंने बताया कि हमने जब चेन्नई में इस मेले की शुरुआत की तो कई लोगों ने हिन्दू शब्द से ही आपत्ति जताई और कहा कि इसमें से हिन्दू शब्द हटा लें नहीं तो हम इसमें भागीदारी नहीं करेंगे लेकिन हम अपनी बात पर अड़े रहे पहली बार इस मेले में 300 संगठनों ने भागीदारी की।

उन्होंने कहा कि इस मेले के माध्यम से हम बच्चों को संस्कार भी दे रहे हैं। इस मेले में आने वाले माता-पिता और बच्चे ऐसे संस्कार लेकर जाते हैं जो जिंदगी भर उनको नई दिशा देते रहेंगे।

श्री गुरूमूर्ति ने कहा कि आज पूरी दुनिया में भारत के लोग जिस ऊँचाई पर पहुँचे हैं उसमें सबसे बड़ा योगदान हमारे हिन्दू संस्कारों का है।

उन्होंने बताया कि सन् 2002 में पार्टिसिपेट्री रिसर्च इन एशियाकी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में दस में से चार लोग अपनी कमाई में से कुछ न कुछ नियमित रूप से दान करते हैं। इसी तरह 2010 में आई हड्सन रिपोर्ट में कहा गया था कि एशिया के अपनी कमाई का 12 प्रतिशत हिस्सा दान कर देते हैं जबकि अमरीकी लोग 8 प्रतिशत हिस्सा दान करते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में दान की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। लेकिन हमारे देश में मंदिरों के माध्यम से दान की परंपरा 800 साल के मुगलों और अंग्रेजी राज की वजह से नष्ट हो गई।

मुंबई के गोरेगाँव पश्चिम के बांगुर नगर में 12 से 14 फरवरी तक आयोजित किए जा रहे हिन्दू अध्यात्मिक एवँ सेवा मेले की आयोजन समिति कि अध्यक्ष अलका माँडके ने बताया कि इस मेले में हम सभी प्रमुख कंपनियों में सीएसआर का काम देखने वाले अधिकारियों को भी आमंत्रित कर रहे हैं ताकि वे खुद आकर देख सकें कि वे किन संगठनों को सीएसआर के माध्यम से सहायता दे सकते हैं।