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दानिश सिद्दिकी को ऐसे याद किया जाना चाहिए

अफगानिस्तान में तालिबान के हाथों मारा गया राइटर का फोटोग्राफर ,पत्रकार दानिश सिद्दीकी को जो लोग भी बहुत बड़ा और निष्पक्ष तथा सेक्युलर पत्रकार फोटोग्राफर मानते हो, उन्हें निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए?

पहला यह कि कोरोना से मरने वाले मुस्लिम देह की दफन होती कोई तस्वीर क्यों नहीं खींची थी और उस तस्वीर को वायरल क्यों नहीं किया था ? दूसरा यह कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कोरोना से कोई एक या दो नहीं, बल्कि 50 से अधिक मुस्लिम प्रोफेसर मारे गए थे पर उसने उनकी तस्वीर वायरल क्यों नहीं क्यो नहीं किया था! तीसरा यह कि कोरोना काल में तबलीगी जमात के हजारों लोग कोरोना फैला रहे थे, पुलिस पर सरेआम थूक रहे थे, पुलिस पर सरेआम थूकने वाले मुस्लिमों की कोई तस्वीर उसने वायरल क्यों नहीं किया था? चौथा यह कि लॉकडाउन को लागू कराने के लिए कराते समय उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों में मुस्लिम भीड़ सरेआम पुलिस को पिटती है ,बर्बर मुस्लिम भीड़ की कोई तस्वीर उसने क्यों नहीं वायरल किया था? पाचवा यह कि ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सरेआम लोक डाउन की धज्जियां उड़ाई थी पर क्या उसने कोई तस्वीर वायरल किया था? छठवां यह कि हर साल शबे बरात के दिन दिल्ली की सड़कों पर रात में गुंडागर्दी होती है ,राहगीरों को पीटा जाता है, पुलिस को चुपचाप रहने के लिए विवश किया जाता है, शबे बरात की गुंडागर्दी की तस्वीर उसने कभी वायरल क्यों नहीं किया था? सातवां यह कि सीए कानून के खिलाफ प्रदर्शनों का उसने खुब तस्वीरें खींची थी, विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुसलमानों द्वारा पत्रकारों और आम लोगों की हुई पिटाई की की तस्वीरें क्यों नहीं वायरल किया था? आठवां यह कि रोहिंग्या मुसलमान किस प्रकार से बच्चे पैदा कर रहे हैं, रोहिंग्या मुसलमान कई कई बीवियां और दर्जन बच्चे पैदा कर रहे हैं, इसकी कोई तस्वीर क्यों नहीं वायरल किया था? मोब लिनचिंग में हिंदुओं की हुई बर्बर हत्या की कोई तस्वीर उसने क्यों नहीं वायरल किया था? दसवां यह कि दिल्ली की सड़कों पर चहल कदमी करने वाली गायों और अन्य जानवरों को मुस्लिमों के बच्चे दिन में बेहोशी की सुई दे देते हैं और रात में मुस्लिमों के बच्चे के पिता और अन्य मुस्लिम उन गायों और अन्य जानवरों को उठाकर बध कर देते हैं ,इस साजिश और अपराध की कोई तस्वीरें उसने क्यों नहीं खींची और वायरल किया था ?

इसके उल्टा दानिश सिद्दीकी का मुस्लिम जिहाद देखिए, हिंदू द्रोह देखिए, भारत को बदनाम करने वाला उसकी देशद्रोही करतूत तो देखिए, उसकी एजेंडा बाज पत्रकारिता देखिए , उसकी इस्लाम के की काफिर मानसिकता के प्रति समर्पित पत्रकारिता देखी देखिए । कोरोना की दूसरी लहर के दौरा उसने हिंदुओं की जलती चिताओं की खूब तस्वीर खींचकर भारत को बदनाम करने का काम किया था। उसकी एजेंडाबाज तस्वीरों की भारत विरोधियों ने खूब सराही थी और भारत विरोध का हथकंडा बनाया था । रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में उसने खूब दिलचस्पी दिखाई थी, रोहिंग्या को पीड़ित बताने का जिहाद चलाया पर उसने कभी भी उनकी आतंकवादी करतूत नहीं खोली थी, नहीं बताया कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार में आतंकवादी करतूत में लिप्त थे, रोहिंग्या मुसलमान भारत में आतंकवादी और आबादी आक्रमण के प्रतीक हैं।

दिल्ली दंगा एक बड़ी मुस्लिम साजिश की करतूत थी , दिल्ली दंगे के तार देश के मुस्लिम संगठनों और पाकिस्तान, आईएएसआई तक जुड़े हुए थे । पीएफआई जैसे मुस्लिम संगठनों की भी संलिप्तता थी। पर उसने कभी भी इसे उजागर नहीं किया। दिल्ली दंगों में मारे गए हिंदू की कोई उल्लेखनीय तस्वीर या रिपोर्ट उसने नहीं की थी।

हलाला से प्रतिवर्ष हजारों मुस्लिम महिलाएं आहत होती हैं ,पीड़ित होती हैं पर उसने कभी भी हलाला पीड़ित मुस्लिम महिलाओं का दर्द नहीं समझा ,विपत्ति नहीं समझी । हलला पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं खींची और न हीं कोई तस्वीर वायरल किया। मौलवी सरेआम अंधविश्वास फैलाते हैं पर उसकी नजर में सिर्फ साधु ही गुनाहगार थे। देश के कोने कोने में मुसलमानों द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ना ,अपमानित करना जारी है। पर वह उस पर खामोशी नहीं तोड़ता था। कश्मीर में लाखों हिंदू विस्थापित होकर दर-दर की ठोकरें खाते रहे हैं पर उसकी कोई प्रतिक्रिया फोटोग्राफी में नहीं दिखती थी।

अभी पड़ताल की बात यह है कि उसने इस्लाम से जुड़ी ही कुरीतियों, जिहाद और करतूतों पर कभी भी कलम या फोटोग्राफी चमकाई क्यों नहीं ? जाहिर तौर पर दानिश कोई सर्कुलर तो था नहीं ,वह कोई निष्पक्ष तो था नहीं, उसके अंदर में कोई मानवता के प्रति समर्पण तो था नहीं, वह फिर था क्या? उसका समर्पण किसके प्रति थी ? वह एक घोषित तौर पर मुसलमान था और उसका समर्पण सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के प्रति था। कोई भी मुसलमान सच्चा मुसलमान तभी होगा जब वह इस्लाम को पूर्णत: स्वीकार करने वाला होता है, इस्लाम के मूल्यों के प्रति बंधा होता है, इस्लाम की काफिर मानसिकता के प्रति उनका समर्पण होता है, इस्लाम की बुराइयों और कुरीतियों के प्रति चुपचाप रहता है । दानिश सिद्दीकी की एक कट्टर और समर्पित मुसलमान था। इसलिए इस्लाम की क्रूरता, आतंकवाद एवं काफिर मानसिकता के खिलाफ में उसकी कलम, फोटोग्राफी कैसे चमकती? इसीलिए वह हलाला आबादी बढ़ाओ ,इस्लामी घुसपैठियों के खिलाफ फोटोग्राफी चमकाने से परहेज करता था।

इस्लाम की काफी मानसिकता कोई एक नहीं बल्कि कई स्तरों पर कार्य करती है। कुरान में काफी को मारने के लिए आदेश दिया गया है। काफिर की महिलाओं को रखेल बनाकर रखना,काफिर महिलाओं के साथ बलात्कार करना ,काफिर की छवि खराब करना ,काफिर की संपत्ति पर कब्जा करना आदि की करतूत को अपराध नहीं माना गया है, बल्कि ऐसा करने वालों को सच्चा मुसलमान कहा जाता है। और उसे जन्नत मिलने, जन्नत में हूरे और सुंदरियां मिलने का आश्वासन मिलता है। यही कारण है कि ऐसा करने वाले मुसलमानों ,आतंकवादियों अपराधियों को मुसलमानों द्वारा संरक्षण दिया जाता है, उसकी करतूतों पर पर्दा डाला जाता है, ऐसी मुस्लिम करतूत भारत से लेकर पूरी दुनिया में देखी जाती है ,प्रमाण के साथ सच देखने को मिलता है।

दुनिया के अंदर में क्या कभी आपने यह देखा या सुना है कि कोई मुस्लिम या कोई मुस्लिम समूह अपराधी आतंकवादी आदि को पकड़कर पुलिस, सेना या पीड़ित पक्ष को प्रस्तुत करता है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण इजराइल की नीति है, इजरायल की सुरक्षा नीति कहती हैं कि उसके बम और मिसाइल वहीं गिरेंगे जहां आतंकवादी और अपराधी छिपे हुए हैं। आतंकवादी तो आसमान में रहते नहीं है, यह तो मुस्लिम आबादी के बीच में ही शरण पाकर रहते हैं।

दानिश सिद्दीकी जैसे के लिए भारत एक काफिर देश ही है। भारत के हिंदू उसके लिए काफिर ही हैं । इसीलिए वह इस्लाम का काफिर विरोधी कुरान की आयतों का पालन करता है और भारत की छवि, हिंदुओं की छवि खराब करता है। इस्लाम और मुसलमानों की छवि को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बचाव करता है, उसके ऊपर पर पर्दा डालता है।

दानिश सिद्दीकी को पुलज्जर जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार क्यों मिलता है? उसे बहुत बड़ा पत्रकार और फोटोग्राफर क्यों कहा जा रहा है ?उसकी हत्या पर छाती क्यों पिटी जा रही है ?उसे श्रद्धांजलि देने के लिए कुकुरमुत्ता की तरह लोग क्यों मरे जा रहे हैं ? इसको समझने बुझने के लिए दो प्रमुख उदाहरणों को देखना होगा , समझना होगा । पहला उदाहरण भारत विरोधियों एवं मुस्लिम समर्थकों की सोच है ,इसी सोच पर आधारित अभी-अभी एक अमेरिकी अखबार के रिपोर्टर की नियुक्ति का विज्ञापन आया था। विज्ञापन में रिपोर्टर की अहर्ताएं यह रखी गई थी कि वह भारत विरोधी हो, भारतीय अस्मिता के खिलाफ लिखता हो और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का घोर विरोधी हो आदि आदि। इसी अमेरिकी अखबार कसौटी पर दानिश सिद्दीकी, भारत , हिंदू और नरेंद्र मोदी का विरोधी था। इसी कारण वह राइटर का फोटोग्राफर की ऊपरी सीढ़ियों तक पहुंच जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार पुल्जर हासिल कर लेता है।

दूसरा उदाहरण अल जजीरा का है ।अल जजीरा एक मुस्लिम मीडिया संस्थान है। उसने आईएस को कितने मुस्लिम अपना आइकन मानते हैं इस पर एक सर्वे आयोजित किया था । सर्वे में चिंताजनक और खतरनाक तौर पर तथ्य सामने आए। कोई एक दो नहीं बल्कि 82 प्रतिशत मुसलमानों ने आतंकवादी संगठन आईएस को अपना आइकॉन माना। अल जजीरा इस्लामिक जिहाद देखिए ,इस्लाम के प्रति उनका समर्पण देखिए ,पत्रकारिता की कब्र खोदने वाली उसकी मानसिकता को देखिए। उसने अपने रिपोर्ट में कहा कि कुछ ही मुसलमान आतंकवादी संगठन आईएस को अपना आइकॉन मानते हैं । जबकि उसे अपनी रिपोर्ट में यह कहना चाहिए था कि अधिकतर मुस्लिम आतंकवादी संगठन आईएस को अपना आइकॉन मानते हैं । जिस तरह सेअल जजीरा ने मुस्लिमों के प्रति अपना समर्पण दिखाया उसी प्रकार दानिश सिद्दीकी जैसे हजारों मुस्लिम पत्रकार सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के प्रति एजेंडा पत्रकारिता करते हैं । बीबीसी सहित अधिकतर विदेशी मीडिया संस्थान ,मुस्लिम वर्ग से आने वाले पत्रकारों की नियुक्ति कर भारत की कब्र खोदने में लगे रहते हैं। दुनिया की मुस्लिम और ईसाई मानसिकता से ग्रसित मीडिया को हिंदुओं की जागरूकता और नरेंद्र मोदी के शासन से खुजली होती है।

अब भारत में दो प्रकार के नागरिक हो गए हैं । एक नागरिक वह है जो अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं, जिन्हें देश भक्ति भाती है ,देशभक्ति पर मरने मिटने की तमन्ना रखते हैं, पर उन्हें दंगाई कह कर उपहास उड़ाते हैं । दूसरे किस्म के नागरिक वे लोग हैं जो भारत को अपना भविष्य बनाने का हथकंडा तो जरूर बनाते हैं पर उन्हें भारत की अस्मिता, भारत का गौरव, भारत की पुरातन संस्कृति स्वीकार नहीं है। इसीलिए ऐसे किस्म के नागरिक हमेशा कभी भारत की कब्र खोदते हैं तो कभी भारत विरोधी नारे लगवाते हैं ,तो कभी भारत की छवि खराब करने वाली पत्रकारिता को अंजाम देते हैं । दूसरे किस्म के नागरिकों के लिए दानिश सिद्दीकी जैसे मुस्लिम एजेंडा बाज पत्रकार आइकॉन तो हो सकता है पर राष्ट्रभक्त नागरिकों के लिए दानिश सिद्दीकी जैसे प्रतीकों के प्रति सतर्क और सजग रहने की जरूरत है । राष्ट्र भक्त नागरिकों के लिए दानिश सिद्दीकी जैसे मुस्लिम एजेंडा बाज पत्रकार खलनायक ही है।

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