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डिप्टी कमांडर की पीड़ाः कन्हैया के शोर में दो जवानों की शहादत को भूल गया मीडिया

जेएनयू प्रकरण से आहत कोबरा बटालियन के डिप्टी कमांडर ने फेसबुक पेज पर अपनी पीड़ा और गुस्सा जाहिर किया है। जेएनयू के भारत विरोधी शोर में भारतीय जवानों की शहादत भुलाए जाने पर दिल को छू लेने वाली पोस्ट लिखी है। सीआरपीएफ की यह बटालियन हमेशा से नक्सली उग्रवादियों से लोहा लेती रही है। जेएनयू के ही पढ़े इसी बटालियन के अफसर की तिलमिलाहट उन्हीं की जुबानी।

आज 03.03.16 को बस्तर के घने जंगलों में माओवादियों से भीषण मुठभेड़ में दो कोबरा कमांडो शहीद हो गए। इस भीषण हमले में 14 अन्य घायल हुए हैं। इसमें बुरी तरह से जख्मी एक कमांडेंट, एक असिस्टेंट कमांडेंट अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके उलट, भारत विरोधी नारे लगाने का एक आरोपी (कन्हैया कुमार) जमानत पर छूटा है। जेल से छूटते ही वह वामपंथियों रूढ़ियों से सराबोर भाषण दे रहा है। उसके भाषण से मीडिया मंत्रमुग्ध है। बुद्धिजीवियों ने उसे अपनी श्रेणी का मान लिया है। लेकिन इस सबमें सैनिकों के लिए कोई जगह नहीं है।

सैनिक चुपचाप गुमनामी में अपनी जान दे रहे हैं। उनके लिए ना तो मीडिया है, न जनजागृति है और ना ही जनता-जर्नादन के बीच कोई चर्चा हो रही है। क्या यही हमारा प्यारा भारत है जिसके लिए सैन्य बल हरेक मिनट मर-मिटने को तैयार रहते हैं। अपने परिवार को दुख और दर्द में पीछे छोड़कर खुद को हर वक्त बलिदान के लिए तैयार रखते हैं।

शायद इतिहास खुद को इसी तरह से दोहराता है। 06.04.10 को जब सीआरपीएफ के 76 जवान बस्तर में ही नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे, तब डीएसयू (डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन) के इन्हीं परजीवियों ने खुश होकर जेएनयू में जश्न मनाया था। कमोबेश इसी तरह समारोह हुआ था। बस फर्क इतना है कि आज वहां हाथों में तिरंगा लेकर जय हिंद के नारे लगाए गए। यह भी एक राजनीतिक हथकंडा है ताकि उनकी रिहाइश (जेएनयू में) बनी रहे।

सोचता हूं कि वह कभी जान पाते कि हमला, संघर्ष, बलिदान, अंत तक लड़ते रहना इत्यादि आखिर होता क्या है। वह सिर्फ जेएनयू की सुरक्षित चारदीवारियों में जब-तब चिल्लाते रहते हैं। बलिदान के असली मायने तो सिर्फ सैनिकों के शब्दकोष में हैं। मेरे प्यारे सैनिक भाइयों मैं जानता हूं आपने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दें। ईश्वर आपके परिवारों को शक्ति और शांति दें। जय हिंद।

सीआरपीएफ के तीन कमांडो शहीद

छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित सुकमा जिले में शुक्रवार को सुरक्षा बलों की नक्सलियों से कई स्थानों पर भीषण मुठभेड़ हुई। इस हमले में सीआरपीएफ के तीन कमांडो शहीद हो गए हैं। जबकि एक दर्जन से अधिक घायल हुए हैं।


साभार- http://naidunia.jagran.com/ से