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देवस्नान पूर्णिमा और भगवान जगन्नाथ का जन्मोत्सव 4 जून को

श्रीजगन्नाथ पुरी धाम के श्रीमंदिर में देवस्नान पूर्णिमा ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अर्थात् आगामी 4जून को है। उस दिन भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव पर उन्हें गजानन वेश में देश-विदेश के करोडों जगन्नाथ भक्त दर्शन करेंगे।देवस्नान पूर्णिमा की सुदीर्घ परम्परा यह है कि उस दिन श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रहों को भोर में (लगभग साढे चार बजे) पहण्डी विजय कराकर श्रीमंदिर के देव स्नानमण्डप पर लाया जाता है जहां पर उन्हें कुल 108 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल से महास्नान कराया जाएगा। उसके उपरांत समस्त देवविग्रहों को गजानन वेष में सुशोभित किया जाएगा। चूंकी श्रीमंदिर के सिंह द्वार के समीप ही निर्मित है देवस्नान मण्डप इसलिए चतुर्धा देवविग्रहों को बडदाण्ड से ही समस्त भक्तगण उन्हें मलमलकर महास्नान करते हुए दर्शन करेंगे।

श्रीमंदिर प्रांगण में ही है माता विमला देवी का स्वर्ण कूप जहां से 108 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल लाकर चतुर्धा देवविग्रहों को महास्नान कराया जाएगा। 35 स्वर्ण कलश जल से जगन्नाथ जी को,33 स्वर्ण कलश जल के बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश जल से सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश जल से सुदर्शन जी को महास्नान कराया जाएगा। उसके उपरांत जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेव जी महाराजा अपने पुरी राजमहल श्रीनाहर से पालकी में आकर छेरापंहरा का दायित्व निभाएंगे। अत्यधिक स्नान करने के चलते देवविग्रह बीमार प़ड जाएंगे तब उन्हें उनके बीमार कक्ष में लाकर 15 दिनों तक एकांतवास कराया जाएगा। उनका वहां पर आयुर्वेदसम्मत इलाज होगा। उन 15 दिनों तक श्रीमंदिर का मुख्य कपाट बन्द कर दिया जाएगा। उस दौरान जो भी जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आएंगे वे जगन्नाथजी के दर्शन ब्रह्मगिरि अवस्थित भगवान अलारनाथ के दर्शन के रुप में करेंगे।

ब्रह्मगिरि जो पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है वहां पर भगवान अलारनाथ की काले प्रस्तर की भगवान विष्णु की मूर्ति है और जो बहुत ही सुंदर है।वहां आगत समस्त जगन्नाथ भक्तगण भगवान अलारनाथ के दर्शनकर जगन्नाथ जी के दर्शन का लाभ उठाएंगे। भगवान अलारनाथ को प्रतिदिन निवेदित किए जानेवाले खीर भोग को समस्त जगन्नाथ भक्त बडे चाव से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद के रुप में ग्रहण करेंगे।श्रीमंदिर की सुदीर्घ परम्परानुसार देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है।उस दिन अर्थात् ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जगन्नाथ जी को महास्नान कराकर गजानन वेष में सुशोभित किया जाता है।

गौरतलब है कि एक समय में महाराष्ट्र के एक गाणपत्य भक्त (विनाय भट्ट) देवस्नान पूर्णिमा को पुरी आया और जगन्नाथ भगवान को गजानन वेश में दर्शन की कामना की और तभी से प्रतिवर्ष देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ ही नहीं समस्त चतुर्धा देवविग्रहों को गजानन वेश में सुशोभितकर उनके दर्शन किया जाता है। इसप्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि भक्तों की आस्था और विश्वास के जीवंत और साक्षात प्रमाण हैं जगन्नाथ जी।यह भी एक अनोखी बात पुरी की यह है कि पुरी धाम अपने आप में धाम भी है,तीर्थ भी है और श्रेत्र भी है जहां पर भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव को गजानन वेष में दर्शन का अति विशिष्ट महत्त्व माना गया है।उस पावन दिवस पर चतुर्धा देवविग्रहों को गजानन रुप में दर्शन का भी विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है क्योंकि श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमन चतुर्धा देवविग्रह साक्षात चारों वेदों के जीवंत स्वरुप हैं।

जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद हैं,बलभद्र जी साक्षात सामवेद हैं,देवी सुभद्रा माता साक्षात यजुर्वेद हैं तथा सुदर्शनजी साक्षात अथर्ववेद के जीवंत प्रतीक हैं।महास्नान के उपरांत लगातार 15 दिनों तक आर्युवेदसम्मत इलाज के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह पूरी तरह से स्वस्थ होकर आषाढ शुक्ल प्रतिपदा तिथि को अपने भक्तों को अपने नवयौवन वेष में दर्शन देंगे और उसके अगले दिन आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन अर्थात् 20जून,2023 को जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करेंगे।रथारुढ होकर वे अपनी मौसी के घर गुण्डीचा मंदिर जाएंगे। वहां पर वे सात दिनों तक विश्रामकर पुनः आगामी 28 जून,2023 को बाहुडा यात्रा कर श्रीमंदिर के सिंहद्वार पर लौटेंगे जहां उन्हें सोना वेष में सुशोभित किया जाएगा।उनका अधरपडा होगा तथा आगामी पहली जुलाई को वे नीलाद्रि विजय कर अपने रत्नसिंहासन पर पुनः आरुढ होंगे जहां पर प्रतिदिन की तरह वे अपने भक्तों को दर्शन देंगे तथा समस्त मनावता को शांति,मैत्री,एकता,सद्भावना तथा भाईचारे का संदेश जगत के नाथ के रुप में देंगे।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा के धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक व ऐतिहासिक संदर्भों पर शोधपूर्ाण लेख लिखते हैं)