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छत्तीसगढ़ के ‘धुनही बंसुरिया’ होगे मउन

राजनांदगाँव । छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय गीतकार और लोकगायक लक्ष्मण मस्तूरिया के असमय अवसान को दिग्विजय कॉलेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक और कॉलेज के लिटररी क्लब तथा शहर के रीडर्स क्लब के अध्यक्ष डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने लोक बांसुरी के स्वर का अकस्मात थम जाना निरूपित करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है । डॉ. जैन ने कहा है कि छत्तीसगढ़ महतारी अपने मस्तूरिया जैसे दुलरुवा बेटे को बार बार पुकारेगी कि वह फिर आये और संगी साथियों को फिर मोर संग चलव रे कहकर आवाज़ दे ।

डॉ. जैन ने कहा कि आजीवन अपने सहज सरल सच्चे माटी पुत्र के अंदाज़ में मिट्टी की महक को हर घर द्वार तक फैलाने वाली मस्तूरिया जी की आवाज़ की कमी हमेशा टीस पैदा करेगी । मय छत्तीसगढ़िया आंव जी गा कर अपने छत्तीसगढ़ी होने का जैसा मीठा और सधा हुआ ऐलान उन्होंने किया वैसा कोई बिरला ही कर पाता है ।

डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा लगभग आधी सदी तक चारों दिशाओं में छत्तीसगढ़ी लोक गीत-संगीत की दुनिया लक्ष्मण मस्तूरिया के साथ-साथ झूमती गाती रही है । वे सही अर्थ में छत्तीसगढ़ी सुमत के सरग निसैनी थे।उनकी जगह भर पाना मुश्किल और नामुमकिन भी है । डॉ जैन ने कहा कि सच तो यह कि लक्ष्मण मस्तूरिया अपने नाम से ही जाने जाते थे । उनका वह नाम अपनी खनकदार आवाज के साथ हमेशा आबाद रहेगा।