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वेद में विभिन्न रोगों का निदान – भाग १

स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के प्रथम नियम में यह कहा है कि “ वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है | वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है |” स्वामी जी वेद के स्वाध्याय को केवल धर्म ही नहीं मानते किन्तु स्वामी जी इसे परम धर्म मानते हैं | इस प्रकार स्वामी जी वेद ज्ञान को सब से ऊपर का , सब से श्रेष्ठ धर्म मानते हैं | इस का कारण भी है और वह यह कि परम पिता परमात्मा ने प्राणी मात्र के कलयाण के लिए सृष्टि के आरम्भ में वेद के इस ज्ञान को दिया था | सृष्टि के आरम्भ में दिया ज्ञान उस प्रभु का दिया गया सीधा ज्ञान होने के कारण सदा सर्वश्रेष्ठ ज्ञान होता है | इसी से ही सब का कल्याण संभव होता है |

वेद के इस ज्ञान में विश्व के सब प्रकार के ज्ञानों को समाविष्ट किया गया है | सब ज्ञानों में से एक ज्ञान चिकित्सा शास्त्र को भी माना गया है | इस लिए इश्वर प्रदत ज्ञानों में से एक “चिकित्सा विज्ञान” भी एक महत्व पूर्ण विज्ञान है | यह एक एसा विज्ञान है जिस के प्रयोग से न केवल मानव अपितु सब प्राणियों को स्वस्थ व निरोग रखते हुए , उनकी आयु को बढ़ाने का कार्य करता है | यदि कभी किसी प्राणी को कोई रोग हो जावे तो इस विज्ञान की सहायता से उसके रोग का निदान करने में सहायता करता है | इस प्रकार उसे पुन: स्वस्थ कर उस प्राणी को पुन: स्वस्थ व प्रसन्न जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है | इस सब का माध्यम सदा एक चिकित्सक ही होता है | इस कारण ही समाज में चिकित्सक को बहुत ही सम्मान पूर्ण स्थान मिला है तथा उसका आदर सत्कार करने से कोई भी पीछे नहीं रहता |

चिकित्सा के सम्बन्ध में ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में जब हम इस सम्बन्ध में कुछ खोजने का प्रयास करते हैं तो हम पाते हैं कि इन तीन वेद में चिकित्सा सम्बन्धी अत्यधिक ही नहीं अपितु गहन चिंतन हुआ है तथा चिकित्सा के सम्बन्ध में इन तीन वेद में एक हजार से भी अधिक मन्त्र हमें प्राप्त होते हैं | जब भी चिकित्सीय विमर्ष किया जाता है तो यह आवश्यक हो जाता है कि इन तीन वेद में वर्णन किये गए इन एक हजार मंत्रो को देखा जावे , इन पर मनन चिंतन किया जावे किन्तु यह सब करने से पूर्व मानव शरीर की रचना तथा इसकी कार्य प्रणाली पर भी विचार आवश्यक हो जाता है | जब तक हम मानव शरीर की रचना तथा इसकी कार्य प्रणाली को नहीं जानें समझेंगे तब तक हम इस के किसी भी रोग के निदान के लिए ठीक से चिकित्सा नहीं कर सकते | इसलिए सर्व प्रथम इस सब को समझना आवश्यक हो जाता है | शरीर रचना व इसकी कार्य प्रणाली को समझने के पश्चात हम इस शरीर में आये रोग के कारणों को जानने का प्रयास करते हैं | जो रोग आया है , उसके लक्ष्ण क्या हैं, इसे भी समझने का यत्न करते हैं | इस रोग का निदान किस प्रकार संभव हो सकता है ?, इस तथ्य को भी विचारना आवश्यक होता है | इन सब बिन्दुओं पर विचार के पश्चात ही रोग का निदान संभव हो पाता है | अत: आओ हम मिलकर इन सब बिन्दुओं पर चिंतन करें , विचार करें |

मानव शरीर की रचना और कार्य प्रणाली
ऋग्वेद और अथार्ववेद , यह दो वेद इस प्रकार के हैं , जिन में मानव शरीर कि रचना तथा इस शरीर कि कार्य प्रणाली पर एक से अधिक अर्थात̖ अनेक सूक्तों में वर्णन मिलता है | इस सम्बन्ध में विचार करते हुए सर्व प्रथम हम अथर्ववेद मन्त्र संख्या १० .२.१ पर विचार करते हैं |
मंत्र इस प्रकार है :
केन पार्ष्मी आभ्रि̢ते पूरुषस्य केन मांसं संभृतं केन गुलफ़ौ |
केनाड∙गुली: पेशनी: केन खानि केनोच्छलड्∙खौ मध्यात: क:
प्रतिष्ठाम || अथर्ववेद १०.२.१ ||
मन्त्र हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर विचार करते हुए प्रश्न करता है कि हमारे शरीर के इन अंगों को , जिन से हम प्रतिदिन काम लेते हैं, पुष्ट कौन करता है ?

हमारी एड़ी को कौन पुष्ट करता है?
इस मन्त्र के माध्यम से एक प्रश्न किया गया है | प्रशन ही नहीं किया गया अपितु उस आविष्कारक प्रभु का गुणगान किया गया है | मन्त्र कहता है कि वह कौन है, जिसने मनुष्य की एडियों को पुष्ट किया है ?

मनुष्य के शरीर का पूरा भार चलते समय एडी पर ही होता है | यदि हमारी एडी पुष्ट न हो , शक्तिशाली न हो, तो हम ठीक से चल ही नहीं सकते और चलने के बिना हमारे सब कार्य अधूरे रह जाते हैं | इसलिए हमारी एडी का पुष्ट होना आवश्यक होता है किन्तु मन्त्र हमारे से प्रश्न कर रहा है कि वह कौन है, जो हमारी एडियों को सदा पुष्टि देने का कार्य करता है ?
मांस कौन जोड़ता है

मांस प्रत्येक प्राणी के शरीर का एक आवश्यक भाग होता है | यदि शरीर पर मांस न हो तो हमारे शरीर पर केवल हड्डियां ही हड्डियां दिखाई देंगी | इन हड्डियों का दर्शन केवल बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी भयभीत करने वाला होता हैं | यह हड्डियां इतनी कमजोर होती हैं कि किंचित से झटके से ही चटक जाती है और फिर इस शरीर से मांस मज्जा के बिना चलना फिरना और जीवन व्यापार का कार्य भी कैसे संभव हो पाता ? इस से स्पष्ट है कि शरीर के संचालन में हड्डियों का विशेष योगदान होता है | इन हड्डियों की रक्षा कौन करेगा ? यदि हड्डियों पर मांस का आवारण नहीं तो हड्डियों का यह ढांचा किसी काम का न होता | इस लिए हमारे शरीर पर मांस मज्जा का एक आवरण चढ़ाया गया है | यह आवरण ही इन्हें मजबूती देता है | हड्डियों को पुष्टि देने वाला यह मांस हमारे शरीर पर किसने सजाया है ? मन्त्र इस प्रश्न का भी उत्तर मांग रहा है |

शरीर के विभिन्न अंग किसने बनाए हैं
हमारा शारीर अनेक प्रकार के सुन्दर अंगों से सजा है | जैसे हमारी टांगों को बल प्रदान करने वाले सुन्दर टखने , हमारे शरीर के कार्य संचालन के लिए बड़ी ही सुन्दर अंगुलियाँ , हमारे कार्य तथा हमारी आवश्यकता को अनुभव करने वाली यह हमारी इन्द्रियाँ , इतना ही नहीं यदि हमारे पावों के नीचे तलवे न होते तो हम भ्रमण भी कर पाने में असमर्थ होते , इन साफ़ सुंदर तलवों को , तलवों के साथ इस भूलोक के बीच आ कर हमने पाँव रखे , यहाँ भ्रमण करने लगे , घूम घूम करइसकी ओषध व फल फूलों को चखने लगे | हमारे शरीर के यह सब अंग किसने बनाए हैं ? कोई तो एसा कारीगर होगा , जिसने हमारे शरीर में यह सब सुन्दर सुन्दर अंग लगा दिए हैं |

इस प्रकार मन्त्र हमें उपदेश करते हुए पूछ रहा है कि हमारे शरीर की हड्डियां , पाँव की एडियाँ , टखने , अंगुलियाँ तथा पाँव के सुन्दर तलवे हमारे शरीर पर सजाने वाला कौन कारीगर है ? यह सब अपने आप तो हुआ नहीं , इसके लिए कोई तो निर्माता होगा, कोई तो निर्माण करने वाला होगा ? मन्त्र संकेत करता है कि हमारे शरीर के यह सब अवयव बनाने वाला वह परम पिता परमात्मा ही हो सकता है , अन्य कोई नहीं| इसलिए उस प्रभु का हमें सदा स्मरण करना चाहिए |

डॉ. अशोक आर्य
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