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विद्वान और विद्यावान में अन्तर

विद्वान व विद्यावान में अंतर समझना हो तो हनुमान जी व रावण के चरित्र के अंतर को समझना पडे़गा* | आइए शुरू करते हैं श्री हनुमान चालीसा से | तुलसी दास जी ने हनुमान को विद्यावान कहा , विद्वान नहीं|

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

अब प्रश्न उठता है कि क्या हनुमान जी विद्वान नहीं थे? जब वे विद्वान नहीं थे तो वे विद्यावान कैसे हुए* ?? दोस्तों , विद्वान और विद्यावान में वही अंतर है जो हाइली क्वालिफाइड ( उच्च शिक्षित ) और वेल क्वालिफाइड ( सुशिक्षित ) लोगों में है | इन दोनों में बहुत ही बारीक लेकिन महत्वपूर्ण अन्तर है। उदाहरणार्थ *रावण विद्वान है और हनुमानजी विद्यावान हैं।

रावण के बारे में कहा जाता है कि उसके दस सिर थे । दरअसल यह एक प्रतीतात्मक वर्णन है | चार वेद और छह: शास्त्र दोनों मिलाकर दस होते हैं। इन्हीं को दस सिर कहा गया है | जिसके सिर में ये दसों भरे हों , वही दसशीश हैं।

रावण वास्तव में विद्वान है लेकिन विडम्बना देखिए कि उसने सीता जी का हरण कर लाया ।

विद्वान अक्सर अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शान्ति से नहीं रहने देते | उनका अभिमान दूसरों की सीता रूपी शान्ति का हरण कर लेता है, जबकि हनुमान जी उन्हीं खोई हुई सीता रुपी शान्ति को वापस भगवान से मिला देते हैं।

हनुमान जी ने कहा –

विनती करउँ जोरि कर रावन।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥

हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं विनती करता हूँ तो प्रश्न उठता है कि क्या हनुमान जी में बल नहीं है?

नहीं ! ऐसी बात नहीं है। विनती दोनों करते हैं – जो ” भय ” से भरा हो या जो ” भाव ” से भरा हो*।

रावण ने कहा , ” तुम हो क्या ! यहाँ देखो , कितने लोग हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े हैं ? ”

कर जोरे सुर दिसिप विनीता।
भृकुटी विलोकत सकल सभीता॥

यही अंतर है विद्वान और विद्यावान में ।

हनुमान जी गये थे रावण को समझाने। यहाँ विद्वान और विद्यावान का मिलन है।

रावण के दरबार में देवता और दिग्पाल भय से हाथ जोड़े खड़े हैं और भृकुटी की ओर देख रहे हैं परन्तु हनुमान जी भय से हाथ जोड़कर नहीं खड़े हैं।

रावण ने कहा भी –

कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही |
देखउँ अति असंक सठ तोही॥

“तूने मेरे बारे में सुना नहीं है ? तू बहुत निडर दिखता है !”

हनुमान जी बोले – आवश्यक नहीं कि तुम्हारे सामने जो आये , डरता हुआ ही आये !”

रावण बोला – “ देख ! यहाँ जितने देवता और अन्य खड़े हैं , वे सब डरकर ही खड़े हैं।”

हनुमान जी बोले – “ उनके डर का कारण है कि वे ” तुम्हारी ” भृकुटी की ओर देख रहे हैं।”

भृकुटी विलोकत सकल सभीता….

परन्तु मैं भगवान राम की भृकुटी की ओर देखता हूँ। उनकी भृकुटी कैसी है? जानना है ? तो सुनो….

भृकुटी विलास सृष्टि लय होई |
सपनेहु संकट परै कि सोई॥

( जिनकी भृकुटी टेढ़ी हो जाये तो प्रलय हो जाये और उनकी ओर देखने वाले पर स्वप्न में भी संकट नहीं आये। मैं उन श्रीराम जी की भृकुटी की ओर देखता हूँ ।)

रावण बोला – “ यह विचित्र बात है। जब राम जी की भृकुटी की ओर देखते हो तो हाथ हमारे आगे क्यों जोड़ रहे हो? ” तुमने ही कहा था न कि

विनती करउँ जोरि कर रावन।

हनुमान जी बोले –“ यह तुम्हारा भ्रम है। हाथ मैं तुम्हें नहीं उन्हीं श्री राम जी को जोड़ रहा हूँ।”

रावण बोला – “ वह यहाँ कहाँ हैं ? ”

हनुमान जी ने कहा कि “ यही तो समझाने आया हूँ।” मेरे प्रभु श्री राम जी ने कहा था –

सो अनन्य जाकें असि , मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर , रूप स्वामी भगवन्त॥

” भगवान ने कहा है कि सबमें मुझको देखना। इसीलिये मैं तुम्हें नहीं , बल्कि तुझ में भी भगवान को ही देख रहा हूँ।”

रावण ने पूछा कि तब तुमने ये क्यों कहा ….तुमने मुझे प्रभु व स्वामी क्यों कहा ….

खायउँ फल प्रभु लागी भूखा।
सबके देह परम प्रिय स्वामी॥

यहाँ हनुमान जी रावण को प्रभु और स्वामी कहते हैं ! जबकि रावण हनुमानजी को खल और अधम कहकर सम्बोधित करता है।

मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥

विद्यावान का लक्षण यही है । अपने को गाली देने वाले में भी जिसे भगवान दिखाई दे , वही विद्यावान है।

विद्यावान के लक्षण बताते हुए ही कहा गया है –

विद्या ददाति विनयं*।
विनयाद्याति पात्रताम् …..

शिक्षा प्राप्त करके जो विनम्र हो जाये , वह विद्यावान है पर जो पढ़ लिखकर अपनी विद्वता के घमंड में अकड़ जाये , वह विद्वान तो हो सकता है लेकिन विद्यावान नहीं।

तुलसी दास जी कहते हैं:

बरसहिं जलद भूमि नियराये।
जथा नवहिं वुध विद्या पाये॥

( जैसे बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं , वैसे ही विचारवान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं।)

इसी प्रकार हनुमान जी हैं ” विनम्र ” और रावण है – ” विद्वान “।

विद्वान कौन के उत्तर में कहा गया है कि जिसकी मानसिक क्षमता तो खूब हो परन्तु वैचारिक स्तर निम्न हो , साथ ही हृदय में अभिमान भी मल की भाँति भरा हुआ हो …..

अब प्रश्न है कि विद्यावान कौन ?

उत्तर है कि जिसके हृदय में भगवान हो और जो दूसरों के हृदय में भी भगवान को बिठाने की बात करे , जो किसी को भी कभी अपने से कमतर नहीं आंके, वही सच्चे अर्थों में विद्यावान है।

हनुमान जी ने कहा– “ रावण ! तुम विद्वान तो हो पर तुम्हारा हृदय ठीक नहीं है। अगर तुम अपने हृदय को ठीक करना चाहते हो तो मेरी सलाह मानो …

राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राज तुम करहू॥

(अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर आनंदपूर्वक लंका में राज करो।)

यहाँ हनुमान जी रावण के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं , इसलिये वे विद्यावान हैं |

मनुष्य को केवल विद्वान नहीं बल्कि सदैव विद्यावान बनने का प्रयत्न करना चाहिए | इसी तरह उंची – उंची डिग्रियां प्राप्त कर कोई विद्वान तो बन सकता है पर विद्यावान नहीं बन सकता | उंची – उंची डिग्रियां प्राप्त कर आप हाइली क्वालीफाइड तो कहला सकते हैं पर वेल क्वालीफाइड नहीं |

पुस्तकों से जो कुछ आप प्राप्त करते हैं वह केवल इनफॉरमेशन यानि सूचनाएं भर हैं | जब आप इन सूचनाओं को अपने आचरण में उतारते हैं , पढी़ हुई बातों के अनुसार जीवन जीने की कोशिश करते हैं तभी वह नॉलेज यानि ज्ञान है |

किसी ने सच ही कहा है कि डिग्रीयां तो केवल कागज का टुकडा़ भर है जो नकली भी हो सकती हैं | योग्यता तो वह है जो आपके आचरण में , आपके व्यवहार में झलकती है | इतना ही नहीं आपने सुना होगा कि knowledge is power. आपने गलत और अधूरा सुना है | knowledge is not a power. applied knowledge is power.यानि ज्ञान को जब आचरण व व्यवहार में उतारा जाता है तभी वह पावर बनता है , आपकी शक्ति बनती है |

अगर आप वाकई क्वालिफाइड हैं तो आपको कभी किसी को बताने की जरूरत नहीं पडे़गी कि आप कितने क्वालीफाइड हैं| आपका क्वालीफिकेशन आपके व्यवहार व आचरण में झलक जाता है |