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चुनाव से राष्ट्रीय मुद्दे गायब

न सभा चुनावों में प. बंगाल में ममता व केरल में वामपंथियों की जीत हुई , पर राष्ट्रवाद की हार हुई है जो बहुत दुखद है । केवल आसाम में बीजेपी की “हिंदुत्व के कारण ” हुई जीत मान कर खुशियां मनाने का समय नहीं है । क्योंकि दिल्ली व बिहार के चुनावों में बीजेपी की अपमानजक पराजय को भी अभी तक भुलाया नहीं जा सका ।

आज भी अनेक राज्यों में इस्लामिक शक्तियां जिहाद के लिए सक्रिय है बीजेपी उनको रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही है। राष्ट्रवाद का नारा शून्य होता जा रहा है। धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुसलमानों को हिंदुओं के धन से मालामाल करने वाली असंवैधानिक नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जिससे आपसी वैमनस्य फैल रहा है और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ने के कारण हिन्दुओ को प्रताड़ित होना पड़ता है ।मुसलमान यहाँ पाकिस्तान आदि मुस्लिम देशो से अधिक सुखी है , फिर भी लोकतंत्र में वोटो के भूखे व कुर्सी के लालची नेता उन्ही मुसलमानो की चाटुकारिता करने की वर्षो पुरानी कुरीति को अपनाने में कोई संकोच नहीं करते ।

पिछले कुछ माह से मोदी जी को भी अब इस्लाम में शांति व सूफ़ियों के रुप में शांति के दूत दिखाई देने लगे है। जबकि मोदी जी ने लगभग 4 वर्ष पहले मुस्लिम टोपी को अस्वीकार करके देश की राष्ट्रवादी जनता का मन मोह लिया था। जिसके परिणामस्वरुप ही 2014 में बीजेपी ने केंद्र में ऐतिहासिक जीत पाई थी। प्रधान मंत्री बनने के बाद मोदी जी अपनी विदेश यात्राओं में वहां के शासकों को पवित्र धर्मग्रन्थ “गीता” भेंट करते रहे । पर पिछले दिनों सऊदी अरब की यात्रा के अवसर पर मोदी जी सन् 629 में भारत (केरल) में बनी प्रथम मस्ज़िद के प्रतिरुप (replica) को वहां के सुल्तान को भेंट करके गौरवान्तित हुए और स्वयं भी वहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित भी हुए।

क्या यही राष्ट्रवाद है तो फिर अल्पसंख्यक वाद या मुस्लिमपरस्ती क्या है ?
आज सभी राष्ट्रवादी अपने को पूर्व की भाँति धीरे धीरे ठगे जाने का अनुभव करने लगे है। जिस प्रकार वाजपेई जी के काल (1999-2004) में हुआ था । सभी राष्ट्रवादियों की वैसे तो बीजेपी के अतिरिक्त कही ओर मुक्ति नहीं है फिर भी बीजेपी इनके लिए क्यों नहीं सोचती ? अगर बीजेपी अपने परम्परागत राष्ट्रवादी वोटो की पूर्व की भाँति अवहेलना करेगी तो फिर इतिहास दोहराया जा सकता है और जिस प्रकार 2004 में बीजेपी के हाथों से सत्ता चली गयी थी उसकी 2019 में पुनरावर्ति हो तो कोई आश्चर्य नहीं। देश का विकास तो बाद में भी होता रहेगा जिहादियों से मुक्ति कौन दिलवायेंगा ? सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण नित्य जगह जगह ये जिहादी सक्रिय होते जा रहे है और हिन्दू समाज को असहिष्णु व साम्प्रदायिक बता कर हतोत्साहित किया जा रहा जिससे वह उदासीन हो कर पछतावे के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पा रहा।
अनेक अवसरों पर धैर्य रखो और प्रतीक्षा करो हिन्दुओ के साथ भेदभाव नहीं होगा फिर भी अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय को राजकोष से खरबो रुपये मुस्लिमो को शक्ति शाली बनाने के लिए बाटें जा रहे है ? कहां है धर्मनरपेक्ष संविधान का सम्मान ?

क्या हिन्दू असहाय, निर्धन व अनपढ़ नहीं है क्या वह समाज में उपेक्षित नहीं होता ?
यह मत भूलो की आंकड़ो के अनुसार बहुसंख्यक हिंदुओं के देश में आज भी अल्पसंख्यकों से अधिक हिन्दू गरीबी रेखा के नीचे जीने को विवश है ! इस पर भी विचार करो कि आत्महत्या करने वाले किसान कौन है ?

अतः बीजेपी को चुनावों में विजय मिलती रहे इसको सुनिश्चित करने के लिये ढोंगी धर्मनिरपेक्षता का बुर्का उतार कर राष्ट्रवादी नीतियों को प्रोत्साहन देना होगा और लोकतंत्र में बहुसंख्यकों की उपेक्षा नहीं उनके अनुकूल चलना होगा ।”सभी का साथ व सभी का विकास ” के नारे की सार्थकता भी तभी स्थिर रह पायेगी ।

विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद