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शिक्षा में अरुचि : दायित्व किसका ?

सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ‘शिक्षक दिवस’, विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में मनाये जाने वाले किसी उत्सव से कम नहीं है। पर कभी यह भी सोचिये कि जो बच्चे न तो शिक्षा के अर्थ को जानते हैं,न ही शिक्षा के महत्व और इसके अधिकार के प्रति जागरूक हैं,उनके लिए ये पर्व क्या मायने रखता है ?

शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों के लिए मेरा ये सन्देश है कि शिक्षकों को स्वयं भी अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए। शिक्षक अपने पद की गरिमा को स्वयं ही बना कर रखें और personality projection और popularity contest से बाहर आकर ईमानदारी के साथ शिक्षक की भूमिका का निर्वहन करें! किताबी पढाई के साथ साथ जीवन के उन पक्षों को भी अपने विद्यार्थियों के जीवन में आरोपित करने का प्रयत्न करें ,जो निश्चित रूप से उनके करियर की सफलता के लिए नितांत आवश्यक हैं ; जिनमे स्व अनुशासन [self discipline] , समय का महत्व [importance of time] , और जीवन मूल्यों की अखंडता [integrity] सबसे अधिक मायने रखते हैं ।

मेरे विचारानुसार प्रत्येक व्यक्ति में एक शिक्षक की प्रतिभा छिपी होती है ,जिसे वह अनायास जाने अनजाने प्रयोग करता रहता है,इसी विचार को आधार मान कर जब शिक्षा के प्रसार को लेकर विश्लेषण किया तो लगा कि शिक्षा के प्रसार के लिए आवश्यक है कि पहले बच्चो में शिक्षा के प्रति रूचि जागृत की जाए और शिक्षा को इतना रोचक बनाया जाए कि बच्चे,शिक्षा क्या है,ये समझ सकें।केवल मौखिक शब्दों,नीतियों के निर्माण और विद्यालयों में किये जाने वाले नित नए प्रयोग ,शिक्षा के महत्व का सूत्रपात करने में असफल साबित होते रहें हैं। यदि प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति ,व्यक्तिगत स्तर पर एक या दो अशिक्षित बच्चों में भी शिक्षा के प्रति रूचि जागृत करने में सफल हो जाए,तो शिक्षा के प्रसार में एक बड़ा योगदान होगा और डॉ राधाकृष्णन के प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि भी होगी!

ऐसा नहीं है कि अशिक्षित पृष्ठभूमि वाले परिवार अपनी भावी पीढ़ी को शिक्षित नहीं बनाना चाहते पर विद्यालय में प्रवेश दिलाने के बाद उन्हें जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है , उसके कारन वे निराश हो जाते हैं; बच्चे के पाठ्यक्रम से संबंधित किसी भी समस्या का समाधान न तो खुद करने में समर्थ होते हैं, न ही ट्यूशन लगाने पर बच्चे की class performance से संतुष्ट हो पाते हैं! इसका सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव बच्चे की मानसिकता पर पड़ता है और वह पढाई के पहले पायदान पर ही स्वयं को विद्यालय के लिए अनुपयुक्त सा अनुभव करने लगता है। बुद्धिमान होने के बावजूद बच्चा अपनी बुद्धि का प्रयोग मार्गदर्शन के अभाव में सही दिशा में नहीं कर पाता। और धीरे धीरे उसमें शिक्षा के प्रति अरुचि का संचार होने लगता है। इसी अरुचि से हमें बच्चों को बचाना है और ऐसे परिवारों को प्रोत्साहित भी करना है ,जो साधनों के अभाव में अपने बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा देते हैं! हम और आप इसमें सहयोग दे सकते हैं, करके देखिये,अच्छा लगता है! जिस दिन शिक्षा के प्रति रूचि जागृत हो जायेगी, उस दिन शिक्षा के अधिकार और महत्व का आरोपण स्वतः ही हो जाएगा !

मेरे विद्यार्थी का नाम है … दिव्यांश सिंह! मेरे पास K G 2 में पढ़ने आया था; काफी मेहनत करनी पड़ी, पर वार्षिक परीक्षा के बाद परीक्षाफल वाले दिन जब वो हाथ में शील्ड और सर्टिफिकेट लेकर आया और ये बताया कि उसका नाम ब्लैक बोर्ड पर सबसे ऊपर लिखा था , क्योंकि वो first आया था , तो हमें मेरा अवार्ड मिल गया ! आज वह class 2 में है , और बड़े आत्मविश्वास के साथ class में पहले 5 बच्चों में rank लाने की खुद कोशिश करता है .. आज वो शिक्षा का महत्व भी जानता है और अपना लक्ष्य भी पहचानता है ! आज वो self study करने में खुद को समर्थ पाता है ! अब उसका छोटा भाई शिवांश भी आने को तैयार है !

देश के भविष्य का निर्माण करने में एक छोटा सा योगदान, एक छोटा सा प्रयास हर जागरूक नागरिक से अपेक्षित है !