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भाई के रूप में प्रभु की भक्ति करें

परमपिता परमात्मा भाई के समान रक्षक , सबको जानने वाला और सब सुखों का स्वामी है | हम भी उस मोक्ष स्वरूप परमात्मा के गुणों को देखते हुए छोटे परमात्मा बनने का यत्न नित्य करते हैं |इसलिए हम प्रतिदिन भाई के रूप में उस परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं | इस तथ्य का ही हम इस मन्त्र में इस प्रकार अवलोकन करते हैं :-

स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा |यत्र देवा अम्रित्मानसाना धामंन्ध्यैरायंत || यजु. ३२.१० ||
ऋषि भाष्य में इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार किया गया है- हे मनुष्यों ! वह परमात्मा अपने लोगों को भ्राता के समान सुखदायक सकल जगत् का उत्पादक , वह सब कामों को पूर्ण करनेहारा , सम्पूर्ण लोकमात्र के नाम , स्थान और जन्मों को जानता है और जिस सांसारिक सुख-दु:ख से रहित नित्यानंद–युक्त मोक्ष स्वरूप धारण करने हारे परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त हो के विद्वान् स्वेच्छापूर्वक विचरते हैं , वही परमात्मा अपना गुरु, आचार्य राजा और न्यायाधीश है | अपने लोग सदा मिलके उसकी भक्ति किया करें |

स्वामी जी द्वारा इस मन्त्र की व्याख्या का अवलोकन करने के पश्चात् जब हम इस व्याख्या के आधार पर मन्त्र का मनन चिंतन करते हैं तो जो परिणाम हमारे सामने आते हैं , वह इस प्रकार हैं :-

सांसारिक अवस्था में देखते हैं कि एक माता की जब एक से अधिक संतान होती है तो उसे हम भाई के सम्बन्ध से जानते हैं | यह भाई आपस में बहुत प्रेम करते हुए सुख पूर्वक निवास करते हैं | कभी किसी एक भाई पर कोई दु:ख या कष्ट आता है तो दूसरा भाई उस पर आये इन कष्टों को दूर करने के लिए अपने जीवन तक का बलिदान देने को तैयार होता है | मन्त्र ने परमपिता परमात्मा को भी भाई के सम्बन्ध से जोड़ दिया है | अत: परमात्मा भी हमारे कष्टों में हमें भाई के समान ही सहायता करता है | इसलिए ही हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं |

इस संसार में हमें जो भी वनस्पतियाँ ओषधियाँ, फल–फूल, वन, पर्वत, जीव अथवा अन्य कुछ भी दिखाई देता है, इन सब का उत्पादक परमपिता ही है| उस निर्माता की सुन्दर कला को देखते हुए हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं|

इस जगत् में हम प्रतिदिन जो भी कार्य करते हैं, जो भी पुरुषार्थ करते हैं, वह सब उस परमात्मा के आशीर्वाद से ही पूर्ण होते हैं| हम कितना भी पुरुषार्थ करें किन्तु यदि उसमें प्रभु का आशीर्वाद नहीं जुड़ता तो उस कार्य का पूर्ण होना संभव ही नहीं होता क्योंकि वह ही सब कामों को पूर्ण करने हारा है| इसलिए हम प्रतिदिन परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं|

परमात्मा तीनों लोकों का स्वामी होने के कारण सब लोकों को भली प्रकार जानता है, इतना ही नहीं वहां की सब प्रकार की वस्तुओं और व्यक्तियों के नामों को भी जानता है| उस क्षेत्र में जितने भी स्थान आते हैं उन सब का सम्पूर्ण ज्ञान परमात्मा को रहता है| वह एक ऐसा जन्मदाता है जो हमारे विगत् जन्मों के कर्मों को भी जानता है और अब किये जा रहे कर्मों को भी देख रहा है | इतने विस्तृत ज्ञान वाले परमात्मा की हम स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं|

वह ईश्वर एक इस प्रकार की शक्ति है, जिस के लिए सुख-दुःख का समान महत्व है| न तो वह सुख में प्रसन्न ही होता है और न ही वह दुःख में कष्ट ही अनुभव करता है| इस कारण हम उसे नित्यानंद स्वरूप जानते हैं अर्थात् वह सदा ही आनंद में रहता है| हम भी आनंद चाहते हैं इसलिए हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं |

परमात्मा न तो कभी जन्म लेता है और न ही कभी उसकी मृत्यु ही होती है| इस कारण वह मोक्ष स्वरूप को सदा धारण किये रहता है| इसलिए हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं |

पारमात्मा के मोक्ष स्वरूप को देखकर उसमें मिलने वाले सुखों का परिचय हमें मिलता है | हम भी चाहते हैं कि हम भी जन्म–मरण के बंधन से छूट जावें| इसलिए हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं|

इस प्रकार सब सुखों का दाता, सब जन्मों, स्थानों व व्यक्तियों के जानने हारा, मोक्ष रूप प्रभु का परिचय पाकर हम लोग उसके समान गुणों वाले बनने के लिए हम परमात्मा की स्तुतिरुप प्रार्थना करते हैं |

डॉ.अशोक आर्य
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