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मेक इऩ इंडिया से घरेलू कंपनियों को हुआ 50 अरब का फायदा

सरकारी खरीद में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की सरकार की पहल से भारतीय कंपनियों को 50 अरब रुपये से अधिक का फायदा हुआ है। खरीद की शर्तों में बदलाव से घरेलू कंपनियों को रेलवे, गेल इंडिया और ऑयल ऐंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन सहित कई अन्य सरकारी महकमों से ऑर्डर मिले हैं। इस नीति का फायदा उठाने वाली कंपनियों में जिंदल स्टील ऐंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) भी शामिल है जिसे पहले पटरियों की खरीद प्रक्रिया से अलग रखा गया था। लेकिन नई नीति के तहत उसे पटरियों की आपूर्ति के लिए जारी निविदा में 20 फीसदी ऑर्डर मिलने की संभावना है। यह निविदा कुल 3,000 करोड़ रुपये की हो सकती है जिसमें से 600 करोड़ रुपये का ऑर्डर जेएसपीएल को मिल सकता है।

सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों की खरीद में घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देने की नीति को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद जून 2017 में औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने इस बारे में एक आदेश जारी किया था। इस्पात मंत्रालय की सचिव अरुणा शर्मा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एक साल से भी कम समय में भारतीय कपंनियों को 5,000 करोड़ रुपये से कम का फायदा नहीं हुआ है।’ उन्होंने कहा कि विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के मुताबिक ही भारतीय कंपनियों को तरजीह दी गई है।

अरुणा शर्मा ने कहा, ‘इसके बहुत मायने हैं क्योंकि भारतीय कंपनियों ने खरीदना सस्ता पड़ता है। लंबी पटरियों का आयात किया जाता है लेकिन अगर घरेलू कंपनियां इनका निर्माण करती है तो इसे वरीयता दी जाएगी। भारत उन्हें कीमत के मामले में कोई संरक्षण नहीं दे रहा है, उन्हें कोई सब्सिडी नहीं दी जा रही है और साथ ही गुणवत्ता के साथ कोई समझौता किया जा रहा है। गुणवत्ता की जांच को लेकर खरीदार को पूरी आजादी है और साथ ही वह कीमत के बारे में भी जांच पड़ताल कर सकता है।’

पटरियों का ऑर्डर देने के मामले में भारतीय रेलवे की यह शर्त थी कि कंपनी ने न्यूनतम संख्या में पटरियों की आपूर्ति की हो। जेएसपीएल ने पिछले साल अक्टूबर में ईरान रेलवे को 150,000 टन पटरियों की अंतिम खेप भेजी थी। इस तरह वह भारतीय रेलवे की शर्त को पूरा करती है। इसके अलावा रेलवे की रिसर्च डिजाइन ऐंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन ने जेएसपीएल द्वारा बनाई गई पटरियों पर 3 सप्ताह तक परीक्षण किए थे।

आरडीएसओ के मानकों के मुताबिक पटरियों में इस्तेमाल होने वाले स्टील में हाइड्रोजन की मात्रा 1.6 पर्टिकुलेट प्रति मिलियन से कम होनी चाहिए। भारतीय रेलवे को वर्ष 2017-18 में 14 लाख टन पटरियों की जरूरत थी। अब तक पटरियों की आपूर्ति करने वाली सेल ने 950,000 टन पटरियों के आपूर्ति का वादा किया था। बाकी कमी पूरी करने के लिए रेलवे ने वैश्विक निविदा जारी की थी लेकिन नए नियमों के कारण इसे रोक दिया गया। इसके तहत जेएसपीएल को कुल निविदा के 20 फीसदी की आपूर्ति की पेशकश की जाएगी। अरुणा ने कहा, ‘हम कभी भी निर्यात के खिलाफ नहीं थे लेकिन अगर भारतीय कंपनियों की दरें और गुणवत्ता अंतरराष्टï्रीय प्रतिस्पद्र्घा के मुताबिक हैं तो फिर उन्हें तरजीह मिलेगी।’

साभार- http://hindi.business-standard.com/ से