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राज्यसभा में डॉ. सुभाष चंद्रा का यादगार भाषण

हरियाणा से निर्दलीय सदस्य के रूप में राज्य सभा के लिए चुने गए डॉ. सुभाष चंद्रा ने जीएसटी बिल पर हो रही चर्चा में अपने पहले ही भाषण में देश के स्वर्णिम अतीत को रेखांकित करते हुए कई जीएसटी बिल का समर्थन किया।

डॉ. चंद्रा ने भारत सरकार, माननीय प्रधान मंत्री और खास कर के वित्त मंत्री को इस बात की बधाई दी कि कि उन्होंने अपनी मेहनत से इस बिल को राजनीति की बलि नहीं चढ़ने दिया और इसको क्रियान्वयन की स्थिति में ले आए।

डॉ. चंद्रा ने कई महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा-

· जब 2 हजार वर्ष पहले जब से ये सदी शुरु हुई जिसका रेकॉर्डेड हिस्ट्री हमारे पास है। 2 हजार वर्ष पहले हमारे देश की ग्लोबल जीडीपी में 32 प्रतिशत भागीदारी थी।

· 1950 में आज़ादी मिलने के समय में हमारी जीडीपी 4.2 प्रतिशत रह गई।

· 1950 में हमारी मेन्युफेक्चरिंग का हिस्सा पूरे विश्व के मुकाबले केवल 1.7 प्रतिशत रह गया।

· इंटरनेशनल ट्रेड में जो हमारी भागीदारी अंग्रेजों के समय में 20 प्रतिशत थी वो घटकर 1.4 प्रतिशत रह गई।

उन्होंने कहा कि अंग्रेज तो इस देश को लूटने ही आए थे। उनको इस देश से इस देश की संपदा को यहाँ से अपने देश में ले जाना था। इसलिए उन्होंने हमारी उत्पादन की क्षमता खतम की, टैक्सों का बोझ बढ़ाया, परन्तु लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद भी हम उनकी ही नीतियों पर चलकर देश के विकास को गति नहीं दे सके। उन्होंने बताया कि –
जो जीडीपी 1950 में 4.2 प्रतिशत थी वो 1980 में घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई।
2015 में वो बढ़कर अभी 7.5 से आठ प्रतिशत रही है।
मैन्युफेक्चरिंग 1950 में 1.7 प्रतिशत पर रह गई थी, 1980 में केवल 2.3 प्रतिशत पर बढ़ी।
2015 में केवल 4 प्रतिशत पर है।
ग्लोबल ट्रेड में जो हिस्सा 1.3 परसेंट 1950 में था, 1980 में वो घटकर 0.5 परसेंट रह गया।

हाँ एक परसेंट से भी कम यानी अधा प्रतिशत रह गया, जो अब वापिस केवल 1.7 प्रतिशत पर आया है।

इन आँकड़ों को अगर जितनी आबादी 1950 से बढ़ी उसके साथ मिलाकर के देखें तो 1950 से लेकर अब तक हमारे देश की ग्रोथ नेगेटिव रही है नाकि पॉज़िटिव रही है।

उन्होंने कहा कि हमारी सरकारें ऐसी ही नीतियाँ बनाती रहीं कि गरीब और गरीब होता गया है, अमीर और अमीर होता गया है। 10 प्रतिशत लोग हमारे इस देश के कानूनों की वजह से अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं।

प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी का उल्लेख करते हुए डॉ. चंद्रा ने कहा कि स्वर्गीय पूर्व प्रधान राजीव गाँधी जब कांग्रेस के महासचिव थे, तो स्वर्गीय श्रीमती गाँधी ने उनके साथ कई महत्वपूर्ण बातें बताई थी। स्वर्गीय राजीव गाँधी ने 28 दिसंबर 1985 में काँग्रेस के 100 वर्ष पूरे होने पर मुंबई अपने भाषण में इसका उल्लेख किया था। लगभग ये 100 मिनट से अधिक का भाषण था और दुर्भाग्य से हमारे देश के मीडिया ने उस समय कुछ कोरी हेड लाईन दे के कि राजीव गाँधी स्पीक अगेंस्ट द पॉवर ब्रोकर-ऐसा कहके उसको बात को आया गया कर दिया।

डॉ. चंद्रा ने कहा कि राजीव जी ने जो बातें कही उस समय की अगर उसको थोड़ा सा हम विचार करें तो मैं समझता हूँ कि जो स्थिति गरीब की और गरीब होती जा रही है वो ना हो। तब राजीव गाँधी ने कहा था कि जब मैं राजनीति में आया था तो उस समय मुझे लगा था कि भारत ने और हमारी कांग्रेस ने थोड़े से ही समय में बहुत प्रोग्रेस की है, लेकिन मैने पाया कि हम सरकार और पार्टी की कमजोरियों के कारण काफी कुछ नहीं कर पाए। इसके कारण मुझे उदासनीता हुई फिर भी मैने अपनी भावनाओं को अपने तक सीमित रखा, और अपने आपको समझाया कि मैं तो अभी इस खेल में नौसिखिया हूँ या आज की भाषा में कहें तो अप्रेंटिस हूँ। उसके बाद कि आगे उन्होंने कहा कि मैने दो वर्ष बहुत भ्रमण किया देश में, बहुत लोगों से मिला, काफी अध्ययन किया तब मुझे लगा कि मैं अब प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को मैं अपना अनुभव बता सकता हूँ। उन्होंने मुझे सुना, और उन्होंने कहा कि वो अपने मन की बातें अच्छी और बुरी सब मैं बता सकती हूँ। मुझे लगता है कि राजीव तुम अब तैयार हो गए हो मैं तुमको सब बता सकूँ। तो आगे वो कहते हैं-इंदिराजी ने मुझे अपने भारत की कई अच्छाईयों और क्षमताओं का जिक्र करते हुए भारत के उज्ज्वल भविष्य में आशावान होने की बातें बताई और साथ में उन्होंने कुछ ऐसी भी चिंताएँ जताई।

डॉ. चंद्रा ने कहा कि इस संवाद को जानने के बाद उनके मन में इन दोनों नेताओं के प्रति श्रध्दा और सम्मान की भावना पैदा हुई। इंदिराजी ने कहा था कि हमारे देश की बहुत सी महान प्रतिष्ठानों यानी इंस्टीट्यूशन के अंदर जाकर आप देखोगे तो पाओगे कि उनके बाहर से बहुत भव्य और पावन उद्देश्य वाली संस्थाएँ दिखती हैं बावजूद उनकी आत्मा, मूल्यों में कोई तेज नहीं रहा है। ये सारे इंस्टीट्यूशन किसी व्यक्तिगत या क्षेत्रीय स्वार्थों के नीचे दब गए हैं। हमारे कानून बनाने और बदलने वाले लोग दूसरों के सामने गुणवत्ता का परिचय नहीं रख रहे हैं ताकि लोग उनका अनुसरण कर सकें। उन्हें देखकर लगता है कि सामाजिक नैतिकता का अभाव हो गया।

जब 1971 मे स्व. इंदिराजी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम दिया गरीबी हटाने का उस समय भी जीएसटी जैसी स्थिति थी। उनके 20 सूत्रीय कार्यक्रम में कोई प्रकार की कमी नहीं थी लेकिन हमारे देश के तंत्र ने न तो उस 20 सूत्रीय कार्यक्रम लागू होने दिया न गरीबी हटी आज भी हम बार बार उस गरीबी की बात कर रहे हैं। आज भी मैंने माननीय वित्त मंत्री जी से निवेदन किया कि इस टैक्स ढाँचे को और भी सरल बनाएँ।

डॉ. चंद्रा ने कहा कि आज भी यही स्थिति है जैसी उस समय इंदिरा गाँधी के समय में थी, आज भी मेरे कई मित्र अपोज़िशन में रहते हुए भी वन टू वन मिलते हैं तो कहते हैं –यार ये मोदी काम तो ठीक कर रहा है और अगर ये कामयाब नहीं हुआ तो आगे कोई भी कामयाब नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि जीएसटी इस दिशा में पहला कदम है, इस देश में बहुत सी चीजें करने की आवश्यकता है, जो कि जिसकी वजह से इस देश में टैक्स देने वाले को भी तकलीफ ना हो, टैक्स अल्टीमेटली उपभोक्ता कंज्यूमर अल्टीमेटली टैक्स देता है। मेरे मित्र सीताराम यचुरी ने कहा कि डायरेक्ट टैक्सेस पैसे वालों पर लगते हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार चाहे जैसा टैक्स लगाए चाहे डायरेक्ट या इन डायरेक्ट लेकिन इसका सीधा असर तो आम आदमी पर ही पड़ता है। टैक्स का ढाँचा ऐसा होना चाहिए कि लोग टैक्स देने में रुचि लें और टैक्स चोरी नहीं करें। इस देश में इज़ ऑफ बिज़नेस ना होने के कारण एक इन डायरेक्ट सै इन डायरेक्ट टैक्स इतना है जो करप्शन की वजह से है उसको भी ठीक किये बिना आगे का ढाँचा ठीक नहीं हो पाएगा।

डॉ. सुभाष चंद्रा के भाषण की वीडिओ