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डॉ. स्वामी ने कहा, चीन से बात हो और पाकिस्तान को सबक सिखाओ

सुब्रह्मण्यम स्वामी को सुनना एक रोमांचक, दुर्लभ और अपने आप में नई जानकारियों के समुद्र में गोते लगाने जैसा अनुभव होता है। मुंबई में श्री भागवत परिवार और हिंदी विवेक द्वारा आयोजित हिंदी विवेक के जम्मू कश्मीर विशेषांक के विमोचन के मौके पर जब डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जम्मू कश्मीर की राजनीतिक व आतंकवादी गतिविधियों से उपजी समस्याओं और उनके कारणों पर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अपनी बात कही तो खचाखच भरे मुंबई के वीर सावरकर सभा गृह में मौजूद श्रोताओँ की तालियों की गड़गड़ाहट लगातार गूँजती रही।

डॉ. स्वामी ने कहा कि कश्मीर की समस्या को हम 70 सालों से ढो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने 1947 में स्वतंत्रता के पहले लंदन की संसद में विचित्र तरीके से कश्मीर, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र को अलग अलग राज्य के रूप में विभाजित करने का बिल पेश किया गया था। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले इस देश में 584 रजवाड़ों की सत्ता थी, अंग्रेजों ने स बिल के माध्यम से इन सभी रजवाड़ों को मुक्त घोषित कर 584 देश के रूप में मान्यता दे दी।

1955 में जो संविधान बना उसमें प्रावधान था कि कोई भी रजवाड़ा अपनी सरकार का विलय ब्रिटिश इंडिया के साथ कर सकता है या अपने आपको स्वाधीन घोषित कर सकता है या अपने आपको भारत में या पाकिस्तान में मिला सकता है। लेकिन देश के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने अपनी दूरदृष्टि और राजनीतिक व कूटनीतिक चातुर्य से इन राजाओं के विश्वास में लेकर और डरा धमका कर भी इनका भारत में विलय करवाया।

डॉ. स्वामी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे राष्ट्र भक्त सरदार पटेल को कांग्रेस सरकार ने भारत रत्न नहीं दिया। 1991 में जब मैं चन्द्रशेखर की सरकार में मंत्री बना तो मैने सरदार पटेल को भारत रत्न देने की घोषणा करवाई। इसके पहले जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी ने सरदार पटेल का नाम भारत रत्न दिए जाने की सूची से काटा।

डॉ. स्वामी ने ठहाकों के बीच कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने प्रधान मंत्री रहते हुए खुद अपने लिए भारत रत्न की सिफारिश की-उस फाईल पर लिखा था-मैं प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु, जवाहरलाल नेहरू को भारत रत्न देने की सिफारिश करता हूँ।
डॉ. स्वामी ने कहा कि जूनागढ़ के राजा और हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय करने से इंकार कर दिया था और ये पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे। हैदराबाद के निजाम ने हजारों हिंदुओं की हत्या भी करवाई। लेकिन जब सरदार पटेल ने हैदराबाद की सीमा पर सेना भेज दी तो निजाम ने आत्म समर्पण कर दिया। उधर जूनागढ़ का नवाब अपने 500 कुत्तों को लेकर रातोंरात पाकिस्तान भाग गया।

डॉ. स्वामी ने कहा किसभी 584 रियासतों के भारत में विलय होने की एक ही शर्त थी कि एक बार राजा ने उस विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए तो फिर इस बारे में जनता की राय यानी जनमत संग्रह नहीं करवाया जा सकेगा कि जनता क्या चाहती है। राजा की इच्छा ही अंतिम इच्छा रहेगी और इस पर कोई पुनर्विचार भी नहीं होगा। डॉ. स्वामी ने कहा कि जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने जब भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए तो सी शर्त पर किए थे।

डॉ. स्वामी ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि 1965 के युध्द में भारतीय फौज ने पाकिस्तान में मुजफ्फरर नगर में घुसकर भारतीय झंडा फहरा दिया था। लेकिन जवाहरलाल नेहरू बगैर कैबिनेट मीटिंग या कैबिनेट की सहमति से संयुक्त राष्ट्र संघ में चले गए और ये कहा कि पाकिस्तान और हमारे बीच विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ हस्तक्षेप करे, जबकि भारत चाहता तो पाकिस्तान की सीमा में जहाँ तक फौज पहुँची थी वहाँ तक अपना कब्जा बरकरार रख सकता था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने दोनों देशों को फौज हटाने को कहा और भारतीय फौज को पीछे हटना पड़ा। 1957 तक संयुक्त राष्ट्र संघ में इस पर चर्चा होती रही लेकिन पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ की शर्त नहीं मानी।

डॉ. स्वामी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में लागू धारा 370 राष्ट्रपति के आदेश से लगाई गई थी और इसे संसद की अनुमति प्राप्त नहीं थी, इस धारा को राष्ट्रपति के आदेश से कभी भी हटाया जा सकता है। इसके लिए सरकार को राष्ट्रपति के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए।

डॉ. स्वामी ने कहा कि भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ को लिखना चाहिए कि नेहरू ने पाकिस्तान के साथ विवाद को लेकर अपनी व्यक्तिगत हैसियत से जो सुझाव दिया था उसे भारत की संसद या कैबिनेट की सहमति प्राप्त नहीं थी इसलिए इसे वापस लिया जाए। अगर सरकार ऐसा प्रस्ताव तैयार करती है तो 24 घंटे में ये आदेश लिया जा सकता है।

डॉ. स्वामी ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर राज्य का अलग से संविधान बनाया गया तो उसकी पहली लाईन में यही लिखा था-जम्मू कश्मीर हिन्दुस्तान का अटूट हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर को लेकर जब आंबेडकर ने नेहरू की नीतियों का विरोध किया तो नेहरू ने 1950 में उन्हें कैबिनेट से हटा दिया और तीन बार उनको चुनाव हरवाने के लिए जी जान लगा दी।

डॉ. स्वामी ने बताया कि 1944-45 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थपना हुई तो उस समय भारत गुलाम था और चीन आज़ाद हो चुका था। उस समय चीन को सदस्यता दी गई, लेकिन 1949 में जब कतिपय नियमों के उल्लंघन के आरोप में चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ से निष्कासित कर दिया और इसकी जगह भारत को सदस्यता का प्रस्ताव दिया गया तो नेहरू ने इसका विरोध करते हुए अपनी सदस्यता चीन को सौंप दी।

डॉ. स्वामी ने कहा कि अगर भारत सरकार चाहे तो चीन को हर तरह से झुका सकती है। उन्होंने बताया कि दुनिया भर के देशों में चीन का सारा सामान मलाका स्टेट के समुद्री मार्ग से जाता है जिसका कुछ हिस्सा इंडोनेशिया के अधिकार क्षेत्र में है और कुछ भारत के पास अंडमान निकोबार क्षेत्र में। जिस तरह से भारत सरकार ने ईरान से समझौता कर चबहार में बंदरगाह का निर्माण कर दूरदृष्टि का परिचय दिया है वैसा ही इंडोनेशिया से समझौता कर चीन को झुका सकता है। इंडोनेशिया से भी चीन के रिश्ते अच्छे नहीं है।

उन्होंने कहा कि 1990 से 1995 तक पाँच लाख कश्मीरी पंडितों को घाटी से मारकर भगा दिया। आज उन पंडितों को वापस कश्मीर घाटी में बसाना चाहिए। लेकिन कश्मीरी पंडित डरे हुए हैं और ऐसी स्थिति में मेरा सुझाव है कि देश में 1 करोड़ सेवानिवृत्त सैनिक हैं उनमें से दस लाख सैनिकों को हथियार देकर उन घरों में बसाया जाए जो कश्मीर पंडितों से छीने गए हैं। उन्होने कहा कि आने वाले समय में पाकिस्तान के तीन और टुकड़े होंगे। एक बलूचिस्तान, दूसरा पख्तून और तीसरा सिंध का।

डॉ. स्वामी ने कहा कि पाकिस्तान कभी भी भारत पर परमाणु हमला नहीं कर सकता क्योंकि सके पास परमाणु बम तो है लेकिन उसे निशाने पर लगाने के लिए कोई मिसाईल नहीं है। ऐसे में क्या वो परमाणु बम बैलगाड़ी में लाकर भारत पर हमला करेगा। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान भारत पर परमाणु हमला करे भी तो भारत का कुछ हिस्सा इससे तबाह होगा लेकिन अगर भारत ने परमाणु हमला कर दिया तो पाकिस्तान का तो नामोनिशान ही मिट जाए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में सब फैसले मिलिट्री लेती है और प्रधान मंत्री तो मात्र डमी होता है। ऐसे में आप प्रधान मंत्री से कितनी ही बात करो उसका कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने सीमा पार जो सात आतंकवादी कैंप लगा रखे हैं उन पर सर्जिकल स्ट्राईक की जाए तो हाफिज सईद और उसके गुर्गों का सफाया हो सकता है।

डॉ. स्वामी ने चेतावनी दी कि आने वाले समय में आईएसआईएस की गतिविधियाँ कश्मीर में बढ़ने वाली है और कश्मीर में हो रही अलगाववादी गतिविधियों को लेकर सरकार को सख्ती बरतनी होगी।

उन्होंने कहा कि हमारे देश ने 800 सालों तक मुसलमान शासकों के साथ जमकर संघर्ष किया और यही वजह है कि हमारे देश में आज भी 80 प्रतिशत हिन्दू आबादी है, जबकि इराक में 17 साल में, इजिप्ट में 21 साल के इस्लामी राज में 100प्रतिशत आबादी मुस्लिम हो गई।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में स्कूलों में और कॉलेजों में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है। अंग्रेजों ने हमें पढ़ा दिया कि हमारे पूर्वज आर्यन और द्रविड़ थे जो बाहर से आए थे। जबकि हम हजारों सालों से इस धरती के वासी हैं और सनातन हिन्दू संस्कृति से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि देश के मुसलमानों और हिन्दुओं का डीएनए एक ही है और मुसलमान चाहें तो इसकी जाँच किसी भी प्रयोगशाला में करवा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि कश्मीर में शंकराचार्य जिस पहाड़ी पर गए थे उसे शंकराचार्य हिल के नाम से जाना जाता है और अब उसका नाम बदलकर सुलेमान हिल कर दिया गया। अनंतनाग को इस्लामाबाद बनाने की साजिश की जा रही है। शंकराचार्य ने जिस शारदा मंदिर की स्थापना की थी वह आज पाकिस्तान के हिस्से में है।

डॉ. स्वामी ने कहा कि भारत अगर चीन से काथ लगातार बातचीत करता रहे तो चीन भारत की जमीन लौटा सकता है। उन्होंने कहा कि 1975 में जब मोरारजी प्रधान मंत्री बने थे तो मैने उन्हें कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए चीन से बात करने का सुझाव दिया था, तब मोरारजी ने मुझे ही यह काम सौंप दिया था और मेरे लगातार प्रयास करने पर चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग खोला ही नहीं बल्कि भारतीय तीर्थ यात्रियों को हर बार नई सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जा रही है। चीन खुद पाकिस्तान के आतंकवादियों से परेशान है। पाकिस्तान में प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी चीन के शियांग प्रांत में उत्पात मचा रहे हैं। 1952 तक अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थाई सीट देने के लिए भारत का समर्थन किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री भागवत परिवार के समन्यवयक व गीता व रामायण के मर्मज्ञ श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कहा कि कश्मीर महर्षि कश्यप की भूमि है और सुब्रह्मण्यम स्वामी के रूप में विष्णु के प्रतीक हमारे बीच में उपस्थित हैं। उन्होंने कहा कि श्री भागवत परिवार भारत की अध्यात्म, संस्कृति, मूल्यों और परंपरा की धारा को देश की नई पीढ़ी के सामने लाने की दिशा में प्रयत्नशील रहता है और इसी उद्देश्य से श्री भागवत परिवार ने अतुल्य भारत ग्रंथ का प्रकाशन किया है, जिसे समाज के हर वर्ग की प्रशंसा मिल रही है।

इस अवसर पर हिन्दुस्तान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष श्री रमेश पतंगे, महाराष्ट्र राज्य मराठी शब्दकोश निर्मिति मंडल के अध्यक्ष श्री दिलीप करंबलेकर ने भी जम्मू कश्मीर की समस्याओं से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत किए। हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अमोल पेडणेकर ने हिंदी विवेक ने मात्र पाँच वर्षों की अपनी यात्रा में हिंदी पाठकों के बीच अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।

इस अवसर पर दक्षिण अफ्रीका से लेकर गुजरात के गरीब परिवारों को शैक्षणिक व सामाजिक विकास के लिए आर्थिक सहायता देने वाले श्री रिज़वान आढ़तिया का सम्मान डॉ. स्वामी ने किया। श्री भागवत परिवार के अध्यक्ष श्री एसपी गोयल, सदस्यगण श्री शिव कुमार सिंघल, श्री कैलाश चौधरी और समाज में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए श्री विलास और हरिभाउ तांबलकर का सम्मान किया गया।

आभार प्रदर्शन श्री भागवत परिवार के श्री सुरेंद्र विकल ने किया।