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पृथ्वी दिवस पर गूगल के डूडल की सचेतक साझेदारी

अंतरजाल की दुनिया के सबसे चहेते और चर्चित सर्च इंजन गूगल ने पृथ्वी दिवस को अपने निराले अंदाज़ में 'सेलिब्रेट' किया। धरती के बढ़ते तापमान और बिगड़ती तस्वीर के प्रति लोगों को जागरूक करने के मद्देनज़र गूगल ने एक खूबसूरत सा डूडल बनाकर अपने असंख्य चाहने वालों को खुश कर दिया। उन्हें जगाया और अपनी धरती, अपने पर्यावरण के लिए संजीदगी से सोचने और समय निकालने की प्रेरणा भी दी। पर्यावरण संरक्षण के सन्देश का वाहक बना यह डूडल धरती के अवदान को समर्पित किया गया। 

गूगल का होम पेज आज सचमुच बेहद आकर्षक और विश्व प्रथ्वी दिवस मनाने की मूल भावना का जीवंत प्रतीक बन गया। इस डूडल को इतना मनोहरी और अर्थपूर्ण बनाया गया कि उसने एकबारगी पूरी कहानी खुद बयां कर दी। यह डूडल नेट और अखबारों की डिजिटल दुनिया में भी तुरंत चर्चित हो गया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पृथ्वी दिवस एक सलाना जश्न है जिसे गूगल ने जानदार तोहफे की तरह पेश कर दिखाया। कुछ इस अंदाज़ में कि उसके हम जैसे अनगिनत उपयोगकर्ता भी गर्व की अनुभूति कर सकें कि जिससे हम जुड़े हैं लगातार वो खुद वास्तव में कितना सजग और रचनात्मक है। याद रहे कि हर साल दुनियाभर में 22 अप्रैल का दिन धरती के नाम पर ख़ास तौर पर मनाया जाता है, लेकिन इसे मनाने की के पीछे की कहानी कुछ अलग है। उसकी चर्चा हम बाद में करेंगे। 

बहरहाल, आइये अब  गूगल के इस डूडल की कारीगरी की थोड़ी सी चर्चा पहले कर लें। सर्च इंजन गूगल ने पृथ्वी दिवस को ध्यान में रखकर अपने होम पेज पर उकेरे जाने वाले छह वर्णो यानी 'जी', 'ओ', 'ओ', 'जी', 'एल', व 'ई' को पूरी तरह पर्यावरणमय बना दिया। डूडल के  दूसरे 'ओ' के स्थान पर नीले गृह यानी पृथ्वी को  बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया। यही नहीं उसे अपनी धुरी पर लगातार घूमते देखना भी बहुत सुखप्रद और रोमांचक था। गूगल के बाकी वर्णो में अंतरिक्ष, वनस्पतियों व अन्य वन्य जीव-जंतुओं, जिनके संरक्षण की दुहाई हम  हैं,को जगह दी गई। 

अब बात की जाये पृथ्वी दिवस की कहानी की। स्मरण रहे कि कि 22 अप्रैल का पृथ्वी पृथ्वी दिवस की पृष्ठभूमि में युवाओं का एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था। जी हाँ ! वियतनामी युद्ध विरोध में उठ खड़े हुए विद्यार्थियों के संघर्ष की इसमें भूमिका थी। 1969 में सान्ता बारबरा (कैलिफोर्निया) में बड़े पैमाने पर बिखरे तेल से क्षुब्ध विद्यार्थियों को देखकर अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेलसन ने सोचा कि यदि इस आक्रोश को पर्यावरण चेतना और प्रकृति के सरोकारों की दिशा में मोड़ दिया जाय तो बात बन सकती है। मालूम हो कि नेलसन,विसकोंसिन से अमेरिकी सीनेटर थे। उन्होंने बड़ी समझदारी से इसे देश को पर्यावरण शिक्षा देने के अनोखे अवसर के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने इसमें लोगों को सहभागी बनाया। अपने इस ख्याल पर मीडिया से बातचीत की। अमेरिकी कांग्रेस के पीटर मेकेडलस्की ने भी इसमें यादगार भागीदारी की। डेनिस हैयस राष्ट्रीय समन्वयक बनाये गए। 

गौरतलब है कि पृथ्वी दिवस का विचार देने वाले गेलॉर्ड नेलसन ने एक बयान में कहा था, ''यह एक जुआ था, जो काम कर गया।'' सचमुच ऐसा ही है। आज यह चमत्कार से कम नहीं है कि दुनिया के करीब 184 देशों के हजारों अंतर्राष्ट्रीय समूह इस दिवस के सन्देश को आगे ले जाने का काम कर रहे हैं। तो बात ऎसी है कि यह पृथ्वी दिवस दरअसल दूसरे अर्थ में पर्यावरण चेतना दिवस है। ये अलग बात है हमने विश्व पर्यावरण दिवस के लिए जुड़ा तारीख तय कर रखी है, किन्तु ऐतिहासिक आंदोलन और घटनाक्रम के लिहाज़ से 22 अप्रैल पर्यावरण के लिए बेहद मौज़ूं मालूम पड़ता है। 

मशहूर लेखक और पर्यावरणविद् वरुण तिवारी बताते हैं कि गेलॉर्ड नेलसन की युक्ति का नतीजा यह हुआ कि 22 अप्रैल,1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों, पार्कों, चौराहों, कॉलेजों, दफ्तरों पर स्वस्थ-सतत पर्यावरण को लेकर रैली, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, यात्रा आदि आयोजित किए। विश्वविद्यालयों में पर्यावरण में गिरावट को लेकर बहस चली। ताप विद्युत संयन्त्र, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयाँ, जहरीला कचरा, कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा वन्यजीव व जैवविविधता सुनिश्चित करने वाली अनेकानेक प्रजातियों के खात्मे के खिलाफ एकमत हुए दो करोड़ अमेरिकियों की आवाज़ ने इस तारीख को पृथ्वी के अस्तित्व के लिये अहम बना दिया। तब से लेकर आज तक यह दिन दुनिया के तमाम देशों के लिये खास ही बना हुआ है। वर्ष 1970 के प्रथम पृथ्वी दिवस आयोजन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के दिल में भी ख्याल आया कि पर्यावरण सुरक्षा हेतु एक एजेंसी बनाई जाए। 

लिहाज़ा  श्री तिवारी के मुताबिक वर्ष 1990 में इस दिवस को लेकर एक बार उपयोग में लाई जा चुकी वस्तु के पुर्नोपयोग का ख्याल व्यवहार में उतारने का काम विश्वव्यापी सन्देश का हिस्सा बना। 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन ने पूरी दुनिया की सरकारों और स्वयंसेवी जगत में नई चेतना व कार्यक्रमों को जन्म दिया। एक विचार के इस विस्तार को देखते हुए गेलॉर्ड नेलसन को वर्ष 1995 में अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान ‘प्रेसिडेन्सियल मेडल ऑफ फ्रीडम’ से नवाजा गया। नगरों पर गहराते संकट को देखते हुए अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का यह दिन ‘क्लीन-ग्रीन सिटी’ के नारे तक जा पहुँचा है।इस दिवस के नामकरण में जुड़े सम्बोधन अन्तरराष्ट्रीय माँ ने इस दिन को पर्यावरण की वैज्ञानिक चिन्ताओं से आगे बढ़कर वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति से आलोकित और प्रेरित होने का विषय बना दिया है। 22 अप्रैल अपने अस्तित्व के लिये जागने और लोगों को जगाने का दिन है। 

प्रकृति की महत्ता और पर्यावरण की महान सत्ता के हक़ में गूगल के नायाब डूडल को सलाम करते हुए मुझे बस यही कहना है कि –

जागते रहिये,जमाने को जगाते रहिये 
की आवाज़ में आवाज़ मिलते रहिये। 
हम अगर सो गए तो तकदीर भी सो जायेगी 
अब कोई सो न सके, गीत वो गाते रहिये। 
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लेखक शासकीय दिग्विजय पीजी 
ऑटोनॉमस कालेज, राजनांदगांव 
के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर हैं।