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अस्सी कोस अपना गांव छोड़ दिया , तुम ने कैसे मेरा उल्लू नाम जान लिया

अमेठी से ज़्यादा बेहतर और सुलझे हुए वोटर वायनाड के हैं , इस बहाने उत्तर-दक्षिण का विवाद बेकार है। राहुल गांधी के इस वक्तव्य की बड़ी चर्चा रही आज। मेरा मानना है कि इस विषय पर राहुल गांधी की निंदा करना भी गुड बात नहीं है। राहुल गांधी वास्तव में राजनीतिक व्यक्ति हैं ही नहीं। उल्लू और गधे टाइप के आदमी हैं। पूरमपुर लतीफ़ा हैं। उन्हें किसी गुरु ने यह भी नहीं बताया होगा कि आदमी को क्या बोलना है यह तो जानना ही चाहिए , यह भी ज़रूर जानना चाहिए कि क्या नहीं बोलना चाहिए। खैर , जब पढ़ाए हुए पाठ यथा नोटबंदी , जी एस टी , किसान आंदोलन आदि-इत्यादि विषयों से इतर जब भी कुछ राहुल गांधी बोलते हैं तो अपने उल्लूपने , गधेपन में कुछ भी बोल जाते हैं।

संसद हो या सड़क हर कहीं वह अपना यह परिचय अनायास देते रहते हैं। याद कीजिए अभी , बिलकुल अभी ही संसद में बजट पर उन्हें बोलना था पर वह किसान आंदोलन पर बेफिक्र बोलते रहे। स्पीकर ने कई बार टोका भी कि बजट पर बोलिए। पर वह बोले , बजट पर भी बोलूंगा। अभी फाउंडेशन बना रहा हूं। और बजट पर बिना कुछ बोले ही वह चले गए। कारण यह था कि उन को पाठ याद करवाने वालों ने बजट पर कुछ याद नहीं करवाया था , या यह याद नहीं कर पाए थे बजट पर पाठ। जो भी हो। विषय कोई भी हो , जगह कोई भी हो , राहुल गांधी लगभग एक ही रिकार्ड बजाते रहते हैं। हर कहीं। यह राहुल गांधी के उल्लूपने की प्रतिभा ही थी जो अभी पुडुचेरी में पूर्व मुख्यमंत्री नारायणसामी ने जाते-जाते उन्हें उल्लू बना दिया था। और यह लतीफ़ा समझ भी नहीं पाया था।

गांव में बचपन में सुनी एक बहुत छोटी सी कथा याद आती है। किसी गांव में कोई उल्लू रहता था। उल्लू था सो उसे हर कोई उल्लू ही कहता था। लेकिन उल्लू को , उल्लू कहलाना अच्छा नहीं लगता था। सो वह गांव छोड़ कर वह कोई अस्सी कोस दूर चला गया। लेकिन उस ने पाया कि वहां भी लोग उसे उल्लू कह रहे थे। वह परेशान हो गया। अंतत: उस ने एक व्यक्ति से अपना दुखड़ा रोया , अस्सी कोस छोड़लीं आपन गांव , तूं कइसे जनला उल्लू नाव । मतलब अस्सी कोस अपना गांव छोड़ दिया , तुम ने कैसे मेरा उल्लू नाम जान लिया। तो राहुल गांधी अभी उत्तर प्रदेश का अमेठी छोड़ , केरल के वायनाड गए हैं। और जो चुनावी स्थितियां बन रही हैं केरल में , बहुत मुमकिन है कि 2024 के चुनाव में वायनाड भी छोड़ कर कहीं और खिसक लें।

क्यों कि अमेठी के लोगों को राहुल गांधी का उल्लूपना और मूर्खता जानने में भले 15 बरस लग गए , वायनाड के लोगों को यह तथ्य जानने में 15 साल थोड़े ही लगेंगे। बकौल राहुल गांधी वायनाड के लोग बात बहुत जल्दी समझ लेते हैं। सो 5 बरस बहुत है , वायनाड के लोगों को राहुल गांधी का उल्लूपना समझने के लिए। बहुत मुमकिन है वह अभी ही समझ गए हों। पर वह भी बिचारे क्या करें चुनाव 2024 में है। वह अभी बताएं भी तो भला कैसे। लिख कर रख लीजिए राहुल गांधी 2024 का चुनाव वायनाड से नहीं लड़ेंगे। बहुत मुमकिन है , कहीं से भी न लड़ें और संसद का बोझ कुछ कम कर दें। संसद के बजाय बाहर ही आंख मारते रहें। वैसे आज त्रिवेंद्रम में जब राहुल गांधी कह रहे थे कि यहां के लोग मुद्दे की राजनीति समझते हैं। तब विश्वनाथ प्रताप सिंह की याद आ गई। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी एक समय मुद्दे की राजनीति की बात कह-कह कर राजीव गांधी की राजनीति पर लगाम लगा कर उन्हें सत्ता से बाहर कर , खुद सत्ता पर काबिज हो गए थे।

साभार- http://sarokarnama.blogspot.com/2021/02/blog-post_24.html से