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एस्कलेटर

कोई मुझे कभी अकेले नहीं जाने देता। मॉल हो या मेट्रो स्टेशन मैं हमेशा लदा हुआ ही चलूँगा। कोई मुझे दो पल सांस भी नहीं लेने देता। और तो और मैं जब काम पर हड़ताल कर देता हूँ तब भी सब मेरे ऊपर से धप्प धप्प करके निकल जाते हैं. या ख़ुदा इन बड़े दिलवालों ने तो मेरी लाइफ ही छोटी कर दी!

हद तो तब हो जाती है, जब लोग मेरे हैंडरेल को भी अपनी गन्दी हरकतों से चिपचिपा देते हैं. कोई सिर खुजाकर उसे पकड़ लेता है, तो कोई नाक से चूहा निकालकर उसी पर चिपका देता है. बच्चों के खाने से चिपचिपे हाथों की तो किससे कहूँ। और जो मैं कभी कसमसाकर चूँ-चूँ करने लगता हूँ तो अपने पैरों को मेरी साइड वॉल पर रगड़कर चैक करते हैं कि आवाज़ आ कहाँ से रही है.

जब सुन्दर सुन्दर लड़कियां मेरी ओर आती हैं तो मुझे बड़ी ही ख़ुशी मिलती है, लेकिन वे तो अपने हाथ हैंडरेल पर रखती भी नहीं। और तो और उनकी हाई हील की नोक मेरे दिल को मानो छलनी कर देती है. अपने स्मार्ट फोन में वे इतनी खोयी रहती हैं कि मेरे स्मार्टपन पर उनकी नज़र भी नहीं जाती।

उफ़ इस दर्दे दिल का बयाँ मैं कहाँ तक करूँ, बस मेरे पास मरहम की एक बयार तब आती है, जब मेरे आगे वो लोग आकर खड़े हो जाते हैं, जिन्हे मुझ पर चढ़ना नहीं आता. ओ हो, तब तो पूछिये ही मत मैं कितनी रफ़्तार से अपना एक एक कदम बढ़ाता हूँ, और पीछे लाइन में लगे लोग कैसे खिसियाते हैं. बस मेरे जीवन में इतनी सी ख़ुशी है, लेकिन अब तो धीरे धीरे ऐसे लोग कम होते जा रहे हैं, न. मैं हूँ ही ऐसा, जो भी मेरे साथ एक दो सफर कर लेता है, वो मुझसे डरना छोड़ देता है, लेकिन हाय री किस्मत, एहसान मेरा मानता कोई नहीं !

कोई नहीं जी, मैं भी कम ढीठ नहीं हूँ, ऐसे ही अपना दर्द बताता रहूँगा ! अच्छा अभी विदा लेता हूँ.