आजकल चुनावों का दौर चल रहा है। ऐसे में हिंदी न्यूज चैनल भी अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। लगभग सभी न्यूज चैनल व्युअरशिप बढ़ाने और रेवेन्यू जुटाने के लिए तमाम तरह की स्ट्रेटजी अपना रहे हैं।
इस बारे में ज़ी न्यूज़, ज़ी बिज़नेस, विॉन और डीएनए के मुख्य संपादक के श्री सुधीर चौधरी का कहना है कि ‘ज़ी मीडिया’ के बैनर तले चार नेशनल न्यूज चैनल ( ज़ी न्यूज़, ज़ी बिज़नेस, विॉन और डीएनए ) चल रहे हैं। लेकिन, जहां तक रेवेन्यू की बात है ज़ी न्यूज इनमें सबसे प्रमुख भूमिका निभा रहा है। इसलिए, यह मीडिया ग्रुप अपने प्रमुख चैनल की रेटिंग में मामूली सी भी गिरावट का जोखिम नहीं उठा सकता है।
सुधीर चौधरी का कहना है कि यदि पूरे न्यूज जॉनर की बात करें तो 90 प्रतिशत मार्केट पर हिंदी ने कब्जा जमाया हुआ है। यदि पूरे टीवी जगत की बात करें तो तकरीबन 10 प्रतिशत लोग ही न्यूज देख रहे हैं और अब चुनावों के रूप में हमें इस प्रतिशत को बढ़ाने का बहुत अच्छा मौका मिला है। हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं को मिलाकर यदि टीवी पर न्यूज की व्युअरशिप 10 प्रतिशत रहती है तो चुनाव के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 15 प्रतिशत तक पहुंच जाता है और इसमें 12 प्रतिशत हिस्सेदारी हिंदी न्यूज मीडिया की रहती है। इसलिए चुनाव न्यूज चैनलों के लिए काफी अच्छा मौका रहते हैं, क्योंकि इस दौरान बड़ी संख्या में लोग राजनीति से जुड़ी खबरों और इलेक्शन अपडेट के लिए न्यूज चैनल का रुख करेंगे। इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती ये है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले अपनी प्रोग्रामिंग को किस तरह अलग और खास रखते हैं। डिबेट शो और इलेक्शन की ग्राउंड रिपोर्टिंग देख-देखकर लोग बोर हो चुके हैं।‘
उनका कहना है, ‘इसी को देखते हुए ज़ी अपने दर्शकों के लिए ‘भाई vs भाई ’ शो लेकर आया है, जिसमें दो भाई तहसीन और शहजाद पूनावाला एक खास अंदाज में यूपीए और एनडीए की राजनीति पर चर्चा करेंगे। टीवी पर चुनाव का विश्लेषण करते हुए जो लोग नजर आते हैं, उनमें से अधिकतर ने कभी चुनाव नहीं लड़ा होता है। ऐसे में ग्राउंड पर क्या हो रहा है, इस बारे में वे सतही विचार देते हैं। इसलिए हमने फैसला किया है कि इस बार हम ऐसे लोगों को शामिल करेंगे, जिन्होंने चुनाव लड़ा है और वे नीति निर्माता अथवा मंत्री रहे हैं। ऐसे में हमारा पैनल खास होगा और लोगों को चुनाव की असली तस्वीर देखने को मिलेगी।‘
सुधीर चौधरी के अनुसार,‘रही बात चैनल की चुनौतियों की तो किसी जमाने में ‘आजतक’ का मार्केट शेयर 50-60 प्रतिशत रहा होगा, लेकिन उस समय हिंदी न्यूज में दो-तीन प्लेयर्स ही थे। अब नेशनल लेवल पर 10 से ज्यादा बड़े प्लेयर्स हैं। न्यूज चैनलों के साथ सबसे बड़ी परेशानी ये है कि वे सभी एक जैसे दिखाई देते हैं और सबसे बड़ी बात है कि आजकल कोई भी स्टोरी सोशल मीडिया पर पहले ब्रेक होती है और इसके बाद टीवी पर आती है। सैटेलाइट चैनलों के बीच ही नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बीच भी प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ चुकी है। मैं मानता हूं कि देश में टीवी न्यूज का दौर ऐसे ही चल रहा है, जैसे 1990 के आखिर में और वर्ष 2000 के शुरुआत में था।‘
उन्होंने कहा, ‘वास्तव में हमारे अंदर बदलाव नहीं हुआ है। स्टूडियो सेट भी पहले जैसे दिखाई देते हैं, एंकरिंग की स्टाइल भी वही है। जिस तरह के पैकेज हम चलाते हैं और रिपोर्टिंग करते हैं, वह भी लगभग पहले जैसी ही है। इसमें हम डिबेट और ब्रेकिंग न्यूज कल्चर भी जोड़ सकते हैं। क्या ये खराब बात नहीं है कि पहला न्यूज चैनल शुरू होने के 20 साल से ज्यादा समय बाद भी इस जॉनर में टीवी की व्युअरशिप 10 प्रतिशत से भी कम है। कहने का मतलब है कि इसमें नया कुछ भी नहीं हुआ है।
ऐसे में हम एक अलग विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहते हैं, हम लोगों की 50-60 साल पुरानी आदतों को चुनौती देना चाहते हैं। हमारा ध्यान इस बात पर भी है कि हम स्टोरी को कैसे अप्रोच करते हैं।‘
साभार- http://www.samachar4media.com से