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ग़ज़ल का व्यापक रूप प्रस्तुत करती शाम ‘हुस्न-ए-ग़ज़ल’ का आयोजन

नई दिल्ली। शेरो-शायरी, ग़ज़ल कहने-सुनने का अंदाज! यह तो आम तौर पर किसी ग़ज़ल कन्सर्ट में देखने सुनने को भी मिल सकता है। लेकिन ग़ज़ल को कहने सुनने की सादगी, उसका अंदाज और मिठास तब कई गुना बढ़ जाता है जब श्रोताओं को ग़ज़ल के विभिन्न आयाम, उनकी बारिकियों को सुनने समझने का मौका मिले। ऐसा ही मौका दिल्लीवासियों को मिला शनिवार की शाम राजधानी के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में। मौका था डाॅ. मृदुला सतीश टंडन द्वारा अपने एनजीओ साक्षी-सिएट के तत्वावधान में आयोजित ग़ज़ल संध्या ‘‘हुस्न-ए-गजल’’ का।

अपने अंदाज में गजल प्रेमियों के लिए अनूठा अनुभव लेकर आई इस शाम में प्रसिद्ध गजल गायक एवम् संगीत कम्पोज़र शकील अहमद ने अपनी खूबसूरत गजलों से लोगों को लुभाया। साथ ही इस शाम का खास आकर्षण रहा प्रसिद्ध कवि, एवम् साहित्य क्षेत्र में जानी-मानी हस्ती लक्ष्मी शंकर बाजपेयी और उर्दू स्काॅलर डाॅ. खालिद अल्वी के साथ गजलों के अशआर में ‘हुस्न’ शब्द के प्रयोग पर डाॅ. मृदुला टंडन की चर्चा। विषय था ग़ज़लों के अशार में शायर किस प्रकार से कुछ ही शब्दों में अपनी सोच को ऐसे ढाल देता है कि हर बार जब पाठक उसको पढ़ता है तो एक नया मतलब उभरकर आता है। इस तरह हुस्न शब्द के प्रयोग पर कुछ रूमानी, कुछ मस्ती, प्रसंग, चुटीले व्यंग्य के रंगों से रंगी संध्या की शुरूआत पारम्परिक शमा प्रज्जवलित कर हुई। कार्यक्रम की औपचारित जानकारी देते हुए डाॅ. मृदुला टंडन ने बताया कि गजल के दो हिस्से होते हैं, कविता और संगीत और इन दोनों पहलुओं का शानदार अनुभव है यह शाम ‘‘हुस्न-ए-गजल’’।

किसी गजल को गीत में ढालने से संगीत, साहित्य, शब्द और भावनाओं को चेहरे पर उकेरने की कला आनी चाहिए। गजलकार शकील अहमद इस कला का एक पारंगत नाम हैं। संगीत की गहरी समझ और विषय को समझने का गहरा अनुभव उनकी प्रस्तुति को मोहक बना देता है। यही वजह रही कि वहां उपस्थित सभी स्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रह गए। हर गजल और गजल का हर अशआर मानो लोगों के दिल की छू रहा था। इस दौरान शकील अहमद ने साहित्यिक खूबी से समझौता किए बिना किसी कविता को किसी राग के अनुरूप ढालने की विधा पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे किसी कविता को किसी राग में ढाला जाता है और उसे उसकी सर्वोच्च ऊंचाई तक पहुंचाया जाता है। उनकी मखमली आवाज और गायन की कला मानों कविता के शब्दों को जीवित कर दे रही थी।

शकील अहमद की प्रस्तुति पर दर्शकों की प्रतिक्रिया ही यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि क्यों उन्हें मौजूदा समय में गजल गायकी का सरताज माना जाता है। उन्होंने गालिब, मीर, दाग देहलवी और साहिर लुधियानवी की गजलों से समां बांधा।

कार्यक्रम के दौरान डाॅ. मृदुला टंडन के साथ लक्ष्मी शंकर बाजपेयी (आॅल इंडिया रेडियो के पूर्व डीडीजी) और डाॅ. खालिद अल्वी (उर्दू के जानकार) ने गजलों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इस चर्चा से लोगों को उन बारीकियों को समझने में मदद मिली, जिससे एक कविता गजल में ढल जाती है। इसमें विचारों की प्रासंगिकता एवं शब्दों के चयन पर चर्चा हुई। इस चर्चा में बताया गया कि कैसे कभी-कभी कोई एक शब्द पूरी गजल में नए अर्थों का रास्ता खोल देता है।

बेहद संतुष्ट आयोजक और साहित्य प्रेमी डाॅ. मृदुला टंडन ने सफल आयोजन के लिए उपस्थित श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि “लोगों में इस बात को लेकर व्यापक समझ है कि गजल क्या है। इस शाम ने गजलों को लेकर लोगों की समझ को नया आयाम दिया है।“

वहीं लक्ष्मी शंकर बाजपेयी एवम् डाॅ. खालिद अल्वी ने डाॅ. टंडन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और गीत-संगीत, साहित्य क्षेत्र में ऐसे विचारपरक कार्यक्रमों और उनके योगदान का सराहा। डाॅ. अल्वी ने कहा जहां आज हम एक अलग की उदासीन दौर में है, अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि समय ही नहीं हम अपनी कला-संस्कृति और उसकी बारिकियों से जुड़े या ऐसे मौकों से जुड़ पायें लेकिन डाॅ. टंडन पिछले कई वर्षाें से लगातार जिस तरह के प्रयास कर रही हैं वह सराहनीय है और युवा पीढ़ी के लिए शानदार मंच। यहां हम लोगों को भी मौका मिल रहा है कि अपनी जानकारी व अनुभव श्रोताओं के साथ साझा करें।