कश्मीरी हिंदुओं के हत्याकांड पर उचित निर्णय!

यह समाचार सुनकर अत्यधिक प्रसन्नता हुआ कि तत्कालीन जम्मू- कश्मीर राज्य में 1989 से 1995 अर्थात 34 साल पश्चात कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं, शारीरिक यातनाएं और ऐसी परिस्थिति उत्पन्न की गई ,जिससे वे अपने आप को विस्थापित कर लिए। इन अमानुषिक और कलुषित घटनाओं की जांच होनी चाहिए। न्याय ग्रीक शब्द “Decoisune” से बना है, जिसका आशय उचित(Rightiousness )होता है।

सामान्य भाषा में कहें कि 1989 से 1995 की घटनाएं उचित नहीं थी, इसलिए उनका न्यायिक व निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। सरकार का लिया गया निर्णय उचित ही होता है,क्योंकि सरकार सुरक्षा,संरक्षा और औषधि प्रदान करती है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सरकार के शासकीय अधिकारियों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होता है। न्यायाधीशों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होता है, क्योंकि वह मूल अधिकारों के संरक्षक होते हैं।

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अंतर्गत मूलाधार किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के मूलभूत अवयव होते हैं। 1989 से 1995 के बीच बड़ी संख्या में कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की गई थी, उनके घरेलू महिलाओं के साथ दुष्कर्म किए गए थे; इसके अतिरिक्त कश्मीरी हिंदुओं को प्रत्येक तरह से प्रताड़ित और आतंकित किया गया था। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को समानता, स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त होते हैं, जिससे कोई समाज किसी के साथ दुर्व्यवहार ना कर सके, किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण ना कर सके एवं उसके मौलिक अधिकार और मानवाधिकार का सम्मान करें। कश्मीरी हिंदू ने इसी प्रताड़ना के कारण कश्मीर घाटी से विस्थापित हुए कश्मीरी हिंदुओं को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा ,क्योंकि तत्कालीन सरकार केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने इसको तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के दृष्टिकोण से लिया था जिससे इसका दुखद परिणाम यह हुआ कि भारत के नागरिकों को अपने राज्य व्यवस्था में शरणार्थी बनने के लिए विवश होना पड़ा था ।इन लोगों को दयनीय गुजर-बसर करनी पड़ी थी ।कश्मीरी हिंदुओं ने तत्कालीन सरकार से न्याय का निवेदन करते रहे ,लेकिन सरकारों ने उनके विषयों को उनके हालात पर छोड़ कर अपने क्षेत्रीय और जातीय राजनीति में व्यस्त रहे।

टिप्पणी के तौर पर कह सकते हैं कि कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार, जातीय हिंसा और दैहिक हत्या की गंभीरता से जांच किया जाए ,बल्कि दोषियों को त्वरित स्तर पर सजा दी जाए। कश्मीरी हिंदुओं को घाटी छोड़ने के लिए बाध्य करने वाले अराजक तत्वों को दंडित किया जाए और सरकार को उनके पुनर्वास और जीविका का उचित प्रबंध करना चाहिए।