अंतिम साँसें ले रही है परिवारवादी राजनीति

राजनीति सरल शब्दों में सेवा भाव ,अपने काम के प्रति लगाव और कार्य की लोकप्रियता है। राजनीति इच्छा विहीन संकल्पना है, लेकिन जब राजनीति में मोह /माया/ वासना प्रवेश करती है तो राजनीतिक गंदा खेल,छल और बुराई की विधा हो जाती है। लोकतांत्रिक राजनीति में राजनीतिक दल ऑक्सीजन का कार्य करते हैं ,क्योंकि राजनीतिक दलों के द्वारा लोकतांत्रिक निकाय को ऊर्जा प्रदान की जाती है। संगठन की क्षमता को बढ़ाया जाता है। भारतीय लोकतंत्र का अभ्युदय परिवारवाद/ वंशवाद के बिना हुआ है, लेकिन लोकतांत्रिक दलों की राजनीति में परिवारों को पैर जमाते देरी नहीं लगा था, जब राजनीति में परिवारवाद/ वंशवाद का चलन प्रारंभ हो जाती है तो सरकारी दुर्बल होने लगती हैं।

महाराष्ट्र राज्य की दो क्षेत्रीय राजनीतिक दल जिनको क्रमशः स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे जी और श्रीमान शरद पवार जी ने बनाई थी, दोनों ही राजनीतिक दल उत्तराधिकार के सवाल पर पारिवारिक झगड़ों से प्रभावित हुए हैं।स्वतंत्रता से पहले कांग्रेस( 1947 के पहले )स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाली राजनीतिक दल और भारतीयों का सुरक्षा वाल्व के रूप में जाने जाती रही है, लेकिन स्वतंत्रता के उपरांत वहीं कांग्रेस गांधी- नेहरू परिवार के रूप में जाना जाता है ।लोकतंत्र में राजनीतिक दलों में आंतरिक विचार- विमर्श (लोकतंत्र) का अभाव ही पाया जाता है। कांग्रेस की समानांतर क्षेत्रीय राजनीतिक दल व्यक्तित्व और राजनीतिक दलीय नियमावली में समाजवादी हैं ,लेकिन कार्य निष्पादन और लोकतांत्रिक रूप में परिवारवादी है।

अखिल भारतीय स्तर पर आरएसएस (लोकप्रिय नाम संघ परिवार) ही परिवारवाद की राजनीति से तटस्थ है, जबकि आरएसएस सांस्कृतिक और सामाजिक उन्नयन करने वाली संगठन है ,जिसमें विकेंद्रीकरण और आम राय की प्रधानता है। संघ परिवार में संघचालक, सरकार्यवाह और सर सह – कार्यवाह का चुनाव कार्य की योग्यता, ऊर्जावान कार्यक्षमता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से होता है ।इन महोदय के कार्य चरित्र और व्यक्तित्व में समाज सेवा और राष्ट्र सेवा के प्रति भरा होता है। संघ की कार्यप्रणाली राष्ट्र सेवा के सारतत्व पर कार्य करती है।