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हैदराबाद के प्रथम आर्य बलिदानी वेद प्रकाश जी

जन्म फाल्गुन शुक्ला ५ – देहांत मार्ग शीर्ष ४

देश अथवा धर्म पर बलिदान होने वाले बलिदानी का सम्बन्ध चाहे किसी भी जाति अथवा धर्म से हो किन्तु वह कभी किसी जाति या किसी धर्म का नहीं होता| वह सबका होता है| इस कारण इन बलिदानियों का जन्म दिन और बलिदान दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है| यह दिन ही वास्तव में इनका सच्चा स्मारक होता है| अन्य भौतिक स्मारक तो केवल दिखावा मात्र होते हैं, जिन पर सारा दिन कुत्ते तथा अन्य पशु अपना बसेरा बनाए रखते हैं और गंदगी फैलाते रहते हैं| इसलिए इन पत्थरों के रूप में स्मारक होने के स्थान पर इन के स्मृति दिवस मना कर इन्हें अवश्य ही स्मरण करते हुए इनके जीवनों की चर्चा करते हुए इनसे प्रेरणा लेते रहना ही उत्तम होता है| इतना ही नहीं इनके जीवनों का स्मरण कर हम भी उस प्रकार के कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं| हम भी उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करते हैं| ताकि समय की धूलि पर हमारे पद चिन्ह भी अंकित हो सकें| हमारे स्वनाम धन्य बलिदानी वेद प्रकाश जी भी एक इस प्रकार के बलिदानियों की सूची का एक पृषठ हैं, जो अपने पद चिन्ह समय की धूलि पर छोड़ गए और जन जन आज भी उनको स्मरण करता है और उनके जीवन से प्रेरणा ले रहा है| इन्होंने सदा ही अपने देश के वेदधर्मी त्यागी तथा तपस्वी महापुरुषों से प्रेरणा लेते हुए स्वयं को बलिदान कर हमारे लिए भी धर्म रक्षा के इए बलिदान का मार्ग खोल दिया| आओ हम भी उनके जीवन का संक्षिप्त सा अवलोकन करें और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को भी सफल बनावें|

हैदराबाद राज्य में एक स्थान का नाम गुन्जोटी पायगा था, जो आज भी है| इस स्थान पर एक श्री वसप्पा जी नामक व्यक्ति निवास करते थे, जिनकी धर्मं पत्नी का नाम माता रेवती बाई था| इनके यहाँ फाल्गुन शुक्ला ५ शाके १८२७ को एक बालक ने जन्म लिया| इस समय कोई नहीं जानता था कि आगे चलकर यह बालक धर्म पर बलिदान हो कर बलिदानी वेद प्रकाश कहलावेगा| बालक का नाम दासप्पा रखा गया| स्कूल जाने के लायक होने पर इस बालक को स्कूल भेजा गया किन्तु इसकी शिक्षा मात्र सातवीं कक्षा तक ही हो पाई| उस युग में इतनी शिक्षा आज के एम ऐ से भी अधिक मानी जाती थी| इस आधार पर देखें तो वह काफी पढ़े लिखे थे| बालक का ध्यान आरम्भ से ही किताबी ज्ञान एकत्र करने से कहीं अधिक व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने की ओर था| ज्यों-ज्यों इस बालक की आयु बढती गई त्यों- त्यों यह बालक धार्मिक शिक्षा की और ध्यान देने लगा तथा धार्मिक कार्यों में खूब भाग लेने लगा| धीरे- धीरे बीतते जा रहे समय के साथ उसकी रूचि धार्मिक कार्यों की ओर तीव्र होती चली गई| अब वह समय आ गया जब बालक दासप्पा नियमित रूप से आर्य समाज के सत्संगों में भाग लेने लगे| आर्य समाज में सदा सत्याचरण की और चलने के लिए प्रेरित किया जाता है| आर्य समाज की इस विशेषता को देखकर दासप्पा की आस्था आर्य समाज के लिए दृढ होने लगी| धीरे-धीरे यह आस्था पूर्णता में बदल गई और अब दासप्पा पूर्ण रूप से आर्य समाज के लिए समर्पित हो गए| इस आर्य समाज की सेवा करते करते दासप्पा कब वेद प्रकाश बन गए इसका किसी को पता भी नहीं चला|

धीरे-धीरे वह समय भी आया जब वेद प्रकाश आर्य समाज का कार्य करते हुए अपने आपको अत्यधिक आनन्द में अनुभव करने लगे| उनके इस आनंद का ही परिणाम था कि एक दिन आपने गुन्जोटी में आर्य समाज की स्थापना कर दी| जब आपकी प्रेरणा से गुन्जोटी में आर्य समाज स्थापित हो गया तो आप ही की प्रेरणा और मार्ग दर्शन के कारण इस क्षेत्र में आर्य समाज के प्रचार और प्रसार को भी बल मिलने लगा| अपके कारण आर्य समाज को अत्यधिक गति मिली| आप लाठी तथा तलवार में अत्यधिक दक्ष थे| इस कारण जब-जब भी आप पर मुसलमानों का आक्रमण होता, आप अपने लाठी अथवा तलवार के कौशल दिखाते हुए सदा ही इन आक्रमणों से बचते रहे|

गुन्जोटी क्षेत्र में एक मुसलमान छोटूखान पहलवान के नाम से भी रहता था| इस पहलवान की बुरी दृष्टि सदा ही हिन्दू महिलाओं पर रहा करती थी| उसकी इस कुदृष्टि को वेद प्रकाश जी ने भाँप लिया और उसे चेतावनी भी दे दी कि वह महिलाओं पर अपनी बुरी दृष्टि डालना बंद कर दे| उनका इतना सा कहना मात्र ही अनेक शत्रु पैदा करने का कारण बन गया| अत: न केवल वह पहलवान ही बल्कि पूरे का पूरा मुस्लिम समाज उनका शत्रु बन गया| हिन्दू पान खाने में रूचि रखते थे किन्तु क्षेत्र में हिन्दुओं की कोई पान की दुकान न होने के कारण उन्हें अत्यधिक परेशानी हो रही थी| इस कारण वेद प्रकाश जी ने उनके लिए एक पान की दूकान की व्यवस्था कर दी| वह स्वयं पान की दुकान चलाने लगे| उनके इस व्यवहार से वहां की पान का मुख्य दुकानदार चाँद खान भी उनसे बुरी तरह से वैर रखते हुए उनका शत्रु बन गया| अब वह प्रतिदिन इस अवसर की खोज में रहता ताकि जिस आधार पर वह वेद प्रकाश जी की जान ले ले|

इन सब घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए वेद प्रकाश जी को अपना आगे के लिए प्रत्येक कदम अत्यंत समझ और सूझ से रखने की आवश्यकता थी किन्तु हम यह भी जानते हैं कि जो व्यक्ति किसी भी धुन का धनी हो जाता है, वह कभी किसी भी विपत्ति से डरा नहीं करता अपितु उस विपत्ती का डटकर सामना किया करता है| अपनी इस धुन तथा अपनी निर्वैर कीप्रवृति के कारण सदा निश्चिन्त रहने की प्रवृति के कारण ही आज भी वेद प्रकाश जी स्मरण किये जाते हैं|

जब मार्गशीर्ष ४ संवत् १९९४ विक्रमी के दिन वेद प्रकाश जी को यह समाचार मिला कि मुसलमानों ने आर्य समाज के मंत्री जी के निवास पर भारी संख्या में एकत्र हो आक्रमण कर दिया है तो वेद प्रकाश जी इस बात को सुनकर सह नहीं सके, रह भी नहीं सके| उनको यह भी होश नहीं रहा कि इस समय उनके हाथ में कुछ शस्त्र होने चाहियें| बस निहत्थे ही अपने आर्य बंधू की रक्षा के लिए भाग पड़े|

इस समय वेद प्रकाश जी अकेले थे और निहत्थे भी थे जबकि उनको दो चार नहीं सैंकड़ों सशस्त्र मुसलमानों का समना करना था| लगभग दो तीन सौ मुसलमानों ने वेदप्रकाश जी को चारों और से घेर लिया| आठ दस मुसलमानों ने उन्हें पकड़ कर नीचे गिरा दिया| इस प्रकार नीचे गिरा कर उन्हें पीट- पीट कर उनका बलिदान कर दिया| इस पर मुसलमानों के विरूद्ध कुछ कार्यवाही होती इसके स्थान पर वहां की पुलिस ने अनेक हिन्दुओं को थाने में बुलाया और थाने में ही बैठा लिया|

शीघ्र ही बधिक को पहचान भी लिया गया और पकड़ भी लिया किन्तु उन पर मुकदमा केवल दिखावे के लिए ही चलाया गया| बधिकों के द्वारा किये गये वध की साक्षियां भी भरपूर थीं किन्तु उन पर हैदराबाद रियासत के निजाम की पूरी-पूरी कृपा दृष्टि बनी हुई थी| अत: इन दोषियों को, कातिलों को निर्दोष बताते हुए छोड़ दिया गया| इस अन्याय के कारण पूरी की पूरी हैदराबाद रियासत में असंतोष की लहर उठ खड़ी हुई| यह हैदराबाद में प्रथम आर्य बलिदानी हुए| इसका ही परिणाम था कि आर्य समाज के बलिदानियों का इस रियासत में एक तांता सा ही आरम्भ हो गया| इस प्रकार से देखने में आने लगा कि मानो आर्य समाज के लोगों में अपना बलिदान देने के लिए कोई प्रतिस्पर्धा सी ही चल रही हो| इस स्पर्धा का कारण था निजाम सरकार का अन्यायी तथा अत्याचारी मुसलमानों का साथ देना| जब-जब भी अन्याय तथा अत्याचारों को राजा की शह मिलती है, अत्याचारों का नग्न नृत्य होता है, तब-तब ही जन समुदाय में बलिदान की भावना ने बल पकड़ा है|

हैदराबाद रियासत में भी कुछ इस प्रकार का ही हुआ| इस कारण ही वहां के आर्यों का बलिदान लाल स्याही से लिखा मिलता है| इन बलिदानियों का इतिहास ही हमारी प्रेरणा का कारण होता है| इस कारण ही अब हम हैदराबाद के निजामी राज्य के इतिहास को देखते हैं तो इस रियासत का पूरा इतिहास ही यहाँ के आर्य बलिदानियों के नामों से भरा हुआ और लाल स्याही से सना हुआ मिलता है| यह बलिदानी इतिहास ही हम आर्यों की प्रेरणा का स्रोत है| इससे ही हमें प्रेरणा लेनी है तथा समाज का पुन: उत्थान करना है|

डॅा.अशोक आर्य
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