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स्वतंत्रता सैनानी चौ.ज्ञानचन्द आर्य

आपका जन्म विक्रमी सम्वत् 1948 अमावस्या मंगसर को स्व चौधरी शिवसहाय व माता बुजी के घर गांव भापड़ोदा जिला रोहतक में एक प्रसिद्ध किसान परिवार में हुआ। चार बहनों व तीन भाइयों के पश्चात् 8 वीं संतान के रुप में जन्म लिया। आपकी माता जी हर अमावस व पूर्णिमा को पंडितो को भोजन कराती व दान दक्षिणा देती। गांव में ही आपकी पढ़ाई हुई तथा कक्षा चार पास की।

जब ये 10 वर्ष के थे तो गांव भापड़ोदा में पंडित बस्तीराम जी का प्रचार हो रहा था। वहां बहुत से बच्चे व आदमी हवन पर बैठे यज्ञोपवित ले रहे थे।

महाशय प्यारेलाल जी से आपका घनिष्ठ संबंध था। वहीं पर प्यारेलाल जी के ताऊ के बेटे झाबर ने आपका जबरदस्ती कमीज निकालकर आपको यज्ञोपवित पहनवा दिया। इसके बाद आपको आर्यसमाज भापड़ोदा का सदस्य बनाया गया। पंडित बस्तीराम जी आपके घर आकर भजनोपदेश करने लगे। गांव में आर्यसमाज की पाठशाला में पं. रामस्वरुप महरोली ने इन्हें सत्यार्थप्रकाश पढ़ाया।

गुरुकुलों के सम्पर्क बढ़ने से आप स्वामी दयानंद के पक्के अनुयायी हो चूके थे। सत्य असत्य का आपको पूर्ण ज्ञान हो चूका था। इसी काल में स्वामी श्रद्धानन्द जी का शुद्धि आंदोलन चला हुआ था। आप भी परनाला गांव के भटके राठी गौत्र के मुस्लिम बने 45 जाट घरों को शुद्ध करने में लगे हुए थे। किंतु वे न माने। भक्त फुलसिंह जी ने यहां अनशन भी किया किंतु वे फिर भी नहीं माने। लेकिन धुन के धनी चौधरी ज्ञानचंद जी के अथक प्रयासों से वो 1946 में शुद्ध कर दिये गए। उन्हें पुन: सनातन बनाया गया।

बंटवारे के वक्त झज्जर का गुढा गांव जो पूरा का पूरा मुस्लिम धर्म अपना चूका था, उनको पुन: शुद्ध करके वैदिक धर्मी बनाया गया। इस पुरे घटनाक्रम में आपकी भूमिका एक शूरवीर योद्धा की रही। जितनी तारिफ की जाए कम है।

सन् 1938-39 में हैदराबाद का सत्याग्रह का बिगुल बजा हुआ था। ये गांव के 28 और इलाके के 151 लोगों के साथ गुरुकुल मटिण्डू से सत्याग्रह के लिए हैदराबाद गये। इनके जत्थे के 151 लोगों को डेढ़ साल की सख्त सजा तथा 500-500 रुपए जुर्माना हुआ। इन्हें
साढ़े चार महिने औरंगाबाद जेल में रहना पड़ा। आर्यसमाज की सभी शर्तों को मानकर समझौता हुआ तो इन्हें जेल से छोड़ा गया।

पंजाब के हिंदी रक्षा आंदोलन में ये चार महिने दस दिन की जेल संगरुर में काटकर आये। गौरक्षा आंदोलन में चार महिने की तिहाड़ जेल में सख्त सजा काटी।

चौधरी साहब आर्यसमाज तथा दयानंद के दीवाने थे। गांव में एक बार वर्षा बेहद कम हुई, इन्होंने 12 मन घी से यज्ञ किया। इन्द्र महाराज की कृपा हुई। गांव में बारिश भी हुई। गांव में प्यारेलाल जी, नर सिंह जी, पृथ्वी सिंह बेधड़क, ईश्वर सिंह, जौहरी सिंह, नित्यानंद जी इत्यादि भजनोपदेशकों को बुलाकर वैदिक प्रचार करवाया। आप भापड़ोदा आर्यसमाज के प्रधान रहे।

पुस्तक :
हैदराबाद सत्याग्रह में हरियाणा का योगदान

प्रस्तुति :
अमित सिवाहा