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गौमाता ने किस्मत बदल दी, कंगाल से करोड़पति बना दिया

गौमाता ने किस्मत बदल दी, कंगाल से करोड़पति बना दिया

‘गरीबी इतनी थी कि पेट पालना मुश्किल था। हम लोग दूसरों की गाय चराते थे, इसके बदले महीने के महज 80 रुपए मिलते थे। घर ऐसा कि बरसात के दिनों में, बाहर से ज्यादा घर के अंदर पानी बरसता था।

कई बार तो ऐसा हुआ कि सड़क के किनारे लगे सुरंग में सोना पड़ा। मां दूसरों के घरों में काम करती, तब जाकर दो वक्त की रोटी नसीब हो पाती। बाद में जिन गायों को लोग सड़कों पर छोड़ देते थे, उन गायों को मैंने पालना शुरू किया। पहले दूध बेचा… फिर घर-घर जाकर घी।

आज जो गौशाला आप देख रहे हैं, यहां 250 से ज्यादा गाय हैं। इसके घी से सालाना 8 करोड़ का बिजनेस है। 123 देशों में घी को एक्सपोर्ट करता हूं। अनपढ़ हूं, लेकिन कॉलेज-यूनिवर्सिटी में लेक्चर और ट्रेनिंग देने के लिए जाता हूं। सफल एंटरप्रेन्योर बनने के तरीके बताता हूं।’

गुजरात का गोंडल शहर। राजकोट जिले से 40 किलोमीटर दूर… ‘श्री गीर गौ कृषि जतन संस्था’। 45 साल के सफेद कुर्ता-पजामा पहने रमेश भाई रूपारेलिया गायों को चारा खिला रहे हैं। यहीं पर मेरी उनसे बातचीत हो रही है। इस दौरान वो बार-बार गायों के माथे पर हाथ फेरते हुए कह रहे हैं, ‘यदि गाय मेरी जिंदगी में नहीं होती, तो मैं किसी गैराज में गाड़ी की सफाई कर रहा होता। पढ़ा-लिखा नहीं हूं, तो करता ही क्या…।’

रमेश भाई जब अपने पुराने दिनों में लौटते हैं, तो उनकी आंखें कई सारे दर्द को समेटे हुए दिखाई देती हैं। वो बताते हैं, ‘हम लोगों के पास कहने को तो 10 एकड़ जमीन थी, लेकिन बंजर। घर चलाने के लिए हम लोग दूसरे लोगों की गाय चराने के लिए जाते थे। मैं नाम का 7वीं तक पढ़ा… लिखना-पढ़ना कुछ नहीं आता। गाय चराने से महीने के 80 रुपए मिलते थे।

इसी बीच पापा को लगा कि यदि छोटी-सी गौशाला खोल लें, तो शायद घर के हालात ठीक हो जाए। उन्होंने कुछ गायें तो खरीदीं, लेकिन फायदा होने के बदले हम लोग कर्ज में डूब गए। घर-जमीन सब कुछ बेचना पड़ा। अब न रहने के लिए कोई आसरा था, और न खाने के लिए दाने।

2005-06 की बात है। हम लोग गांव से गोंडल शहर आ गए। एक जैन परिवार ने तरस खाकर रेंट पर जमीन दे दी, लेकिन वो जमीन भी उतनी उपजाऊ नहीं थी। शहर में भी हम लोग गाय चराते थे। एक साल प्याज की बंपर खेती हुई और 35 लाख की फसल बिकी। इसी ने मेरी किस्मत बदल दी। जिस गौशाला में बैठकर हम लोग बात कर रहे हैं, ये उसी कमाई की है।’

रमेश भाई गिर गायों के झुंड के बीच बैठे हुए हैं।

फिर ये घी का बिजनेस करने का आइडिया कैसे आया?

इस सवाल पर रमेश भाई मुझे घी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में लेकर चलते हैं। वो बताते हैं ‘तो क्या करता…। घी के अलावा दूसरा ऑप्शन भी नहीं था। गाय से लगाव तो था ही। जब शहर आया, तो मजदूरी के साथ-साथ गाय भी पालने लगा। मुझे याद है, एक छोटा-सा 10×10 का रेंट पर एक कमरा था, जिसमें हम 6-7 लोग रहते थे। यहीं पर घी तैयार करता था।

शुरुआत में तो घर-घर दूध ही बेचने जाता था। लेकिन एक ऐसा वाकया हुआ, जिसके बाद मैंने कमस खा ली कि अब दूध तो नहीं ही बेचूंगा… चाहे भीख ही क्यों न मांगनी पड़े।’

वो कहते हैं, ‘मुझे याद है, एक रोज एक परिवार को दूध पहुंचाने गया था। उस परिवार की महिला ने आरोप लगाया कि दूध में से बदबू आ रही है। अब उसे मैं कैसे समझाता कि गिर गाय के दूध का स्वाद ही ऐसा होता है। मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने दूध बेचना छोड़कर घी तैयार करना शुरू कर दिया।’

रमेश भाई कहते हैं कि 2010 के बाद जब उन्होंने घी बनाने और इसे बेचने की शुरुआत की, तो उन्हें न तो इसकी मार्केटिंग के बारे में कुछ समझ थी और न ही घी की क्वालिटी को लेकर…। पहले वो घर-घर जाकर बर्तन में घी लेकर बेचा करते थे।

घी तैयार किया जा रहा है।

रमेश भाई बताते हैं, ‘जब मैंने छोटे लेवल पर घी का बिजनेस शुरू किया था, तो पत्नी इसे बनाती थी और मैं साइकिल पर लादकर घर-घर बेचने के लिए जाता था। फिर शहर में बेचने लगा। कुछ दिनों बाद ऐसा हुआ कि लोग गिर गाय का प्योर, शुद्ध घी देखकर ही हाथों-हाथ खरीद लेते थे।

जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें घी को खरीदने में क्या-क्या दिक्कतें आती है, तो लोगों का कहना था कि ज्यादा पैसे खर्च करने के बावजूद भी उन्हें ओरिजिनल घी नहीं मिल पाता है।

दरअसल, मुझे पता था कि बिजनेस तो अब घी का ही करना है। इसलिए लोगों से घी बेचने के साथ-साथ फीडबैक भी लेने लगा। फिर क्या… गौ सेवा के साथ-साथ इसमें कमाई का भी बड़ा स्कोप दिखा। मैंने गायों के चारा से लेकर इसके खान-पान, औषधी… इन सारी चीजों के बारे में पता करना, जानकारी जुटाना शुरू किया।’

रमेश भाई की गौशाला में दूध देने वाली 50 से ज्यादा गाय एक कतार में बंधी है, जबकि जो गाय दूध नहीं दे रही है, उसे रमेश भाई ने दूसरे सेक्शन में बांध रखा है। वो कहते हैं, ‘अभी 250 से ज्यादा गाय है। जब मैंने शुरुआत की थी, तो महज 10 गाय थी।

जो गाय कमजोर, बूढ़ी या बीमार होती थी, लोग उसे या तो खुले में छोड़ देते थे, या कम पैसों में बेच देते थे। मैं इन गायों को अपनी गौशाला में ले आता था। उसी समय गुजरात सरकार एक पॉलिसी लेकर आई, जिसमें 10 से ज्यादा गाय रखने वाले लोगों को 10 लाख की सब्सिडी मिल रही थी। मुझे भी इसका लाभ मिला।

प्याज से हुए 35 लाख के मुनाफे से मैंने 4 एकड़ जमीन खरीदी और गौशाला के एरिया को बढ़ाना शुरू किया।’

रमेश भाई के पास दुबई और अमेरिका से घी एक्सपोर्ट करने को लेकर ऑर्डर आए हुए हैं। उसी को लेकर पैकेजिंग सेक्शन में घी को पैक किया जा रहा है। इस यूनिट के ठीक सामने किसी IT कंपनी की तरह दर्जनों लोग कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं।

आप का काम तो किसी प्रोफेशनल मैनेजमेंट की तरह दिखाई दे रहा है?

रमेश भाई हंसते हुए कहते हैं, ‘मैं तो पढ़ा-लिखा हुआ भी नहीं हूं, लेकिन मैंने टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया। मुझे किसी चीज को खंगालना, उसकी तह तक जाना अच्छा लगता है। आज मेरे टैलेंट और मैनेजमेंट की बदौलत ही इंजीनियर और MBA किए हुए लोगों की टीम साथ में काम कर रही है।’

रमेश भाई के साथ काम करने वाली महिलाएं घी की पैकेजिंग कर रही हैं।

रमेश भाई कहते हैं, ‘शुरुआत में तो मैं अपने शहर और जानने वाले लोगों को ही घी बेचता था, लेकिन जैसे ही मैंने सोशल मीडिया और वेबसाइट के जरिए बेचना शुरू किया, दूसरे राज्यों के लोग भी ऑर्डर करने लगे। मुझे फिर ऑफलाइन आउटलेट खोलने की जरूरत भी नहीं पड़ी।

दरअसल, घी ऐसी चीज है कि यदि शुद्ध मिल जाए, तो यह किसी दवा से कम नहीं। हर कोई चाहता है कि उसे शुद्ध घी मिले। इसलिए मैंने लोगों की जरूरतों के मुताबिक पैकेजिंग से लेकर प्रोडक्ट की क्वालिटी और कैटेगरीवाइज क्वांटिटी पर फोकस करना शुरू किया।

आज हर रोज हमारे पास 100 से ज्यादा लोगों के सिर्फ क्वेरी आते हैं। इसके लिए अलग से हमारी टीम काम करती है। हर दिन 40 किलोग्राम घी का प्रोडक्शन होता है। 60 कैटेगरी में घी तैयार करते हैं। इतना ही नहीं, घी के अलावा हम छाछ, मक्खन, गोबर से बने प्रोडक्ट समेत दर्जनों आइटम बेचते हैं।’

रमेश भाई घी की एक बॉटल दिखाते हुए कहते हैं कि घी को लेकर कुछ लोगों को ये भी लगता है कि यदि वो इसे खाएंगे, तो उन्हें कई तरह की परेशानियां होंगी। फैट वगैरह… बढ़ जाएगा। लेकिन यदि वो शुद्ध घी खाते हैं, वॉकआउट करते हैं, तो इस तरह की कोई परेशानी नहीं होगी।

यह कमाई के साथ-साथ सेहत का भी जबरदस्त फंडा है। आज मेरे 123 देशों में कस्टमर हैं। हमने घी से भरे कांच की बॉटल की ऐसी पैकेजिंग की है कि आप इसे जमीन पर भी फेंक देंगे, तो नहीं टूटेगी।’

रमेश भाई बताते हैं, ‘लोगों को लगता है कि घी, दूध, गोबर से हम क्या ही कर लेंगे? आप देख रहे हैं मुझे… कभी मेरे पास खाने के दाने नहीं थे, रहने को घर नहीं था, पहनने के लिए कपड़े नहीं थे। आज मेहनत की बदौलत करोड़पति हूं। कंपनी का सालना टर्नओवर 8 करोड़ के करीब है।’

रमेश भाई घी के प्रोडक्शन के साथ-साथ गोबर से बने दूसरे प्रोडक्ट और किसानों के लिए ऑर्गेनिक खाद को लेकर भी काम कर रहे हैं। रमेश भाई के पास भले ही एग्रीकल्चर से रिलेटेड कोई डिग्री नहीं है, लेकिन उनके खेत में कई तरह के एक्सपेरिमेंट दिखाई दे रहे हैं।

वो कहते हैं, ‘ये सब एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से अप्रूव हो चुका है। 15 सालों से मैं ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहा हूं। ये जो आप बड़ा-सा प्लास्टिक का बैग देख रहे हैं। इससे बायो-फर्टिलाइजर लिक्विड खाद तैयार होता है। इसे मैंने डेवलप किया है। हमारे किचन से हर दिन जो वेस्ट निकलता है, उससे यह तैयार होता है। गोबर को इस तरह का फर्टिलाइजर बनाने में 10 महीना लगता है, जबकि इस बैग के जरिए महज 20 दिन में खाद तैयार हो जाता है।

अब मैं नए युवाओं के लिए गौपालन और घी के बिजनेस को लेकर ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहा हूं। कॉलेज, यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट लेक्चरर जाकर सेशन लेता हूं।’

साभार- https://www.bhaskar.com/ से