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जीडीपी यानी लूट, बेईमानी, धूर्तता और राष्ट्र को बीमार करने का अर्थशास्त्र

जब आप टूथपेस्ट खरीदते हैं तोजीडीपीबढ़ती है परंतु किसी गरीब से दातुन खरीदते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती।
100% सच…

जब आप किसी बड़े अस्पताल मे जाकर 500 रुपये की दवाई खरीदते हैं तो जीडीपी बढ़ती है परंतु आप अपने घर मे उत्पन्न गिलोय नीम या गोमूत्र से अपना इलाज करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती।
100% सच…

जब आप घर मे गाय पालकर दूध पीते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती परंतु पैकिंग का मिलावट वाला दूध पीते हैं तो जीडीपी बढ़ती है।
100% सच

जब आप अपने घर मे सब्जियाँ उगा कर खाते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती परंतु जब किसी बड़े एसी माल मे जाकर 10 दिन की बासी सब्जी खरीदते हैं तो जीडीपी बढ़ती है।
100% सच…

जब आप गाय माता की सेवा करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती परंतु जब कसाई उसी गाय को काट कर चमड़ा मांस बेचते हैं तोजी डीपी बढ़ती है। रोजाना अखबार लिखा होता है की भारत की जीडीपी 8 .7 % है कभी कहा जाता है के 9% है; प्रधानमंत्री कहते है की हम 12 %जीडीपी हासिल कर सकते है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलम कहते थे की हम 14 % भी कर सकते हैं।

रोजाना आप जीडीपी के बारे में पढ़ते हैं और आपको लगता है की जीडीपी जितनी बड़े उतनी देश की तरक्की होगी। कभी किसीने जानने की कौशिश की के ये जीडीपी है क्या ? आम आदमी की भाषा में जीडीपी का क्या मतलब है ये हमें आज तक किसी ने नही समझाया गया। जीडीपी माने जो पैसा आप आदान प्रदान करते हैं लिखित में वो अगर हम जोड़ ले तो जीडीपी बनती है। अगर एक पेड़ खड़ा है तो जीडीपी नही बढ़ती, लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते हैं तो जीडीपी बढ़ती है क्योंकि पेड़ को काटने के बाद पैसा आदान प्रदान होता है, पर पेड़ अगर खड़ा है तो तो कोई आर्थिक गतिविधि नहीं
होती जीडीपी भी नही बढ़ती।

अगर भारत की सारे पेड़ काट दिया जाये तो भारत की जीडीपी 27 % हो जाएगी जो आज करीब 7 % है। आप बताइए आपको 27 % जीडीपी चाहिए या नहीं! अगर नदी साफ़ बह रही है तो जीडीपी नही बढ़ती पर अगर आप नदी को गंध करते है तो जीडीपी तिन बार बढ़ती है । पहले नदी पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ़ गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट लेके ए जीडीपी फिर बढ़ गयी, फिर लोगोने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने फीस ली , फिर जीडीपी बढ़ गयी।

अगर आप कोई कार खरीदते है, आपने पैसा दिया किसीने पैसा लिया तो जीडीपी बढ़ गयी, आपने कार को चलाने के लिए पेट्रोल ख़रीदा जीडीपी फिर बढ़ गयी, कार के दूषित धुँए से आप बीमार हुए , आप डॉक्टर के पास गए, आपने फीस दी उसने फीस ली और फिर जीडीपी बढ़ गयी। जितनी कारें आयेगी देश में उतनी जीडीपी तिन बार बढ़ जाएगी और इस देश रोजाना 4000 जादा कारे खरीदी जाती है, 25000 से जादा मोटर साइकल खरीदी जाती है और सरकार भी इसकी तरफ जोर देती है क्योंकि यही एक तरीका है कि देश की जीडीपी बढ़े।

हर बड़े अख़बार में कोका कोला और पेप्सी कोला का विज्ञापन आता है और ये भी सब जानते हैं कि ये कितने खतरनाक और ज़हरीले हैं सेहत के लिए पर फिर भी सब सरकारें चुप है और आँखे बंद करके बैठी है, क्योंकि जब भी आप कोका कोला पीते हैं देश की जीडीपी दो बार बढ़ती है। पहले आप कोकाकोला ख़रीदा पैसे दिया जीडीपी बढ़ गया, फिर पीने के बाद बीमार पड़े डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर को फीस दी और जीडीपी बढ़ गई।

आज अमेरिका में चार लाख लोग हर साल मरते हैं क्योंकि वो खाना खाते हैं, क्योंकि जो जंक फ़ूड है कार्बोनेटेड ड्रिंक्स है वो खाने से मोटापा और बीमारी होती है, आज 62 % अमेरिका के लोग क्लीनिकली मोटापा के सिकार है और हमारे देश में 62 %लोग तो कुपोषन के सिकार है। ये भी जीडीपी बढ़ने का एक तरीका है, जितना जादा प्रदूषण खाने में होगा उतना जादा जीडीपी बढ़ता है। आज 62 % अमेरिका के लोग क्लीनिकली मोटापा के शिकार हैं और हमारे देश में 62 %लोग तो कुपोषण के सिकार है। ये भी जीडीपी बदने का एक तरीका है।

जितना जादा प्रदूषण खाने में होगा उतना जादा जीडीपी बढ़ता है । पहले फ़ूड इंडस्ट्री की वृध्दि हुई जीडीपी बड़ी, उसके साथ फार्मासिटीकल्स की वृध्दि हुई फिर जीडीपी बढ़ गयी , फिर इसके साथ इंश्योरेंस की भी वृध्दि हुई। ये तीनों इंडस्ट्री आपस में जुडी हुई है इसीलिए आज इंश्योरेंस कंपनी वाले खाद्य कंपनियों मेमें पैसा लगा रहे है क्योंकि आप जितना ज्यादा ख़राब खाना खायेंगे इन तीनों उद्योगों का कारोबार बढ़ेगा और जीडीपी बढेगी।

अब क्या आपको जीडीपी बढानी है या घर में खाना बनाना है ! अब घर में खाना बनाने से जीडीपी नही बढ़ती । इस मायाजाल को समझें।

अमेरिका में आज करीब चार करोड़ लोग भूखे पेट सोते है यूरोप में भी चार करोड़ लोग भूखे सो रहे है, भारत में सरकारी आंकड़ा के अनुसार करीब 32 करोड़ लोग भूखे सोते है , अगर जीडीपी ही एक विकास का सूचक होती तो अमेरिका में भूख ख़तम हो जानी चाहिए थी पर अमेरिका और यूरोप में भूख बढ़ रही है भारत में भी जीडीपी के साथ भूख बढ़ रही है ! किसी देश की सम्पत्ति या समृध्दि जीडीपी से नहीं, बल्कि जीएनपी से बढ़ती है। जीडीपी का अर्थ हुआ ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट – आपके देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर होने वाला कुल प्रॉडक्शन। फिर भले ही एक्साइड जैसी कम्पनियां प्रॉडक्शन यहां करती हों और मुनाफा अपने देश में ले जाती हों, और भोपाल गैस कांड की जिम्मेदारी से बच निकलती हों-लेकिन जीडीपी की ओर टकटकी लगाने वाले अर्थवेत्ता इसी को विकास कहते हैं।

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इससे उल्टा जीएनपी का शास्त्र है। ग्रॉस नेशनल प्रॉडक्ट मापते समय दूसरे देश के आए इन्वेस्टर ने कितनी लागत आपके देश में लगाई उसे नहीं जोड़ने बल्कि जो मुनाफा वे अपने दशे में ले गए थे उसे घटाते हैं और आप के देश के नागरिकों ने यदि विदेशों में इन्वेस्ट (निवेश) किया है और मुनाफा कमाकर देश में भेजा है, तो उसे जोड़ते हैं। इस प्रकार आपकी आर्थिक क्षमता की असली पहचान बनाता है जीएनपी न कि जीडीपी।

फिर भी हमारी रिजर्व बैंक, हमारे सारे अर्थशास्त्री और हमारी सरकार हमें जीडीपी का गाजर क्यों दिखाती है? क्योंकि बे-सिंग वाले प्राणी को ही गाजर दिखाया जाता है। आपसे निवेदन है कुछ समय निकालकर देश की आर्थिक स्थिति और उसके कारणों को समझने का प्रयास करें।