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गहलोत की पिक्चर तो अभी शुरू हुई है !

जो लोग यह मान रहे हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत फिर से सिर्फ प्रदेश की राजनीति में सिमट कर रह जाएंगे, वे जरा अपना राजनीतिक ज्ञान सुधार लें। गहलोत न तो अब सिर्फ राजस्थान के दायरे में बंधनेवाले हैं और ना ही यहां की उलझनों में भटककर सिमटनेवाले हैं। थोड़ा से गहरे देखें, तो मुख्यमत्री भले ही वे राजस्थान के हैं, मगर राजनीतिक नजरिये में यह पद उनके लिए कांग्रेस को देश भर को ताकतवर बनाने का मजबूत प्लेटफॉर्म मात्र है। इसलिए मुख्यमंत्री भले ही वे राजस्थान के बने हैं, लेकिन तीसरी बार मिला यह पद गहलोत के लिए हर तरह से बहुत ही जिम्मेदारी भरा रहेगा। निश्चित रूप से उन्हें मुख्यमंत्री पद की भूमिका तो निभानी ही है, देश भर में कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का काम भी उन्हें लगातार करते रहना होगा। कांग्रेस को उनसे उम्मीदें बहुत ज्यादा है। क्योंकि दिल्ली में रहकर गहलोत ने जिस तरह से कांग्रेस में जान फूंकी, उसे देखते हुए राहुल गांधी और उनकी पूरी कांग्रेस को उनसे मुख्यमंत्री पद के मुकाबले देश के मामले में ज्यादा आस हैं। गहलोत का राजनीतिक सफर देखते हुए यह माना जा रहा है कि वे दोनों मोर्चों पर मजबूत भूमिका निभाने में कामयाब रहेंगे।

दरअसल, गहलोत देश के उन प्रतिभावान नेताओं में गिने जाते हैं, जिन्होंने चार दशक के अपने लंबे राजनीतिक जीवन के बावजूद अपनी छवि को किसी गहरे धब्बे से बचाए रखा। पांच बार सांसद, पांच बार केंद्रीय मंत्री, पांच बार विधायक, तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्य़क्ष, दो बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और इस बार से पहले भी दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद किसी बड़े विवाद में गहलोत का नाम नहीं आया। बहुत ही नपे-तुले सीमित शब्दों में अपनी बात रखने में माहिर अशोक गहलोत सोनिया गांधी के खासमखास माने जाते हैं और राहुल गांधी की आज जो एक गंभीर, जुझारू एवं लड़नेवाले नेता की छवि बनी है, उसमें भी गहलोत का बहुत बड़ा योगदान है। फिर भी गहलोत पर भारी साबित होने की कोशिश में सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री बनने की रेस में तेज घोड़ा बनने की कोशिश की, मगर वे सारी नाकाम रहीं। पायलट को आखिर गहलोत मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में शपथ लेनी पड़ी। दरअसल, संविधान में उपमुख्यमंत्री पद की कोई व्यवस्था है ही नहीं। सो, उपमुख्यमंत्री पद तो सिर्फ कहने भर का होता है। वास्तव में होता तो वह केबीनेट मंत्री पद ही है। वैसे, गहलोत पर भारी पड़ना पायलट के बस की बात न तो पहले थी और न अब है। फिर आगे तो उनको और भी बहुत संभलकर चलना होगा। क्योंकि वे अपने नेता से जितना टकराव बढ़ाएंगे, कांग्रेस को उतना ही नुकसान होगा। वैसे, गहलोत को धकेलकर मुख्यमंत्री बनने की जिद लेकर पायलट पहले से ही अपना बहुत नुकसान करवा बैठे हैं। कांग्रेस के कई नेताओं की राय में जब उनको जब इस बात का अंदाजा हो गया था कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी और यहां तक कि प्रियंका गांधी भी, तीनों गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं तो पायलट को खुद के लिए इतनी जिद नहीं करनी चाहिए थी।

राष्ट्रीय परिदृश्य़ में देखें, तो निश्चित रूप से गहलोत का कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं और देश के अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ गजब का समन्वय है। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हीं की सलाह पर राहुल गांधी ने पंजाब में अमरिंदर सिंह को नेता के रूप में पूरी छूट दी थी और मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी वरिष्ठ नेताओं को ही मुख्यमंत्री बनाया। आप देखिये, एक तरफ पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश में कमलनाथ, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और राजस्थान में वे स्वयं। आनेवाले दिनों में इन सारे वरिष्ठ राजनीतिक योद्धाओं साथ राहुल गांधी कितने मजबूत किरदार में होंगे। कल्पना कीजिये, इन वरिष्ठ नेताओं के बदले अगर तीनों राज्यों में युवा लड़कों को मुख्यमंत्री बना दिया गया होता, तो लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी की कैसी लड़कपन छवि बनती और उनकी सेना कितनी कमजोर लगती।

वैसे, कहने को अशोक गहलोत कहने को भले ही राजस्थान के 22वें मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन इन 22 में से 3 बार तो वे खुद ही बने हैं। गहलोत पहली बार सन 1998 में मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भैरोंसिंह शेखावत को बेदखल किया था। सन 2008 में वे जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब वसुंधरा राजे को और अब 2018 में तीसरी बार भी वसुंधरा राजे को ही सत्ताच्युत करके मुख्यमंत्री बने हैं। जोधपुर के सरदारपुरा से लगातार पांचवी बार चुने गए गहलोत राजस्थान के अकेले नेता हैं, जो तीन-तीन प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में सहयोगी रहे हैं। फिर सोनिया गांधी जब कांग्रेस अध्यक्ष थीं, तो उनके साथ और अब राहुल गांधी के साथ भी वे महासचिव के रूप में सहयोगी रहे हैं। आगे लोकसभा चुनाव सर पर है। राहुल गांधी का मुकाबले सीधे नरेंद्र मोदी से है। सो, गहलोत मुख्यमंत्री भले ही राजस्थान के बने हैं, लेकिन कांग्रेस की जीत की इस पताका को जारी रखना है, तो राहुल गांघी के साथ कांग्रेस के रणनीतिकार बनकर देश भर में पार्टी को जिताने में भी बड़ी जिम्मेदारी निश्चित रूप से उन्हीं को निभानी होगी, यह भी साफ है। इसलिए कहा जा सकता है कि गहलोत की असली पिक्चर तो अभी शुरू हुई है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)