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अरावली पर्वतमाला के आंचल में स्वर्ण जैन मंदिर

भारत के अनेक विख्यात जैन मंदिरों में राजस्थान में पाली जिले का फालना का जैन मंदिर इस दृष्टि से अलग है कि यह सोने से बना है और देश का पहला स्वर्ण जैन मंदिर है। सुंदर वास्तुकला और सुंदर सुनहरे रंग के साथ जटिल नक्काशी मंदिर को शाही वैभव प्रदान करती है। इसलिए यह मन्दिर न केवल जैन मतावलंबियों के लिए वरन दुनिया भर के पर्यटकों के लिए एक प्रसिद्ध स्थान है।आध्यात्मिक और शांति केलिए तीर्थयात्री श्रद्धा और भक्ति के साथ यहां आ कर ध्यान और प्रार्थना करते हैं। पर्यटक इसकी सुनहरी आभा को अपलक निहारते हैं। देशभर के जैनियों खास कर श्वेताम्बर जैनियों के लिए विख्यात जैन स्वर्ण मंदिर प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।

राजस्थान की सुरम्य अरावली पर्वतमाला के आंचल में बसा मरुधर के गोडवाड क्षेत्र में स्थित ‘फालना’ का स्वर्ण जैन मंदिर पाली जिले में जिला मुख्यालय पाली से 75 किमी.दूरी पर फालना नगर पालिका क्षेत्र में स्थित श्वेताम्बर जैन धर्मावलंबियों का प्रमुख जैन तीर्थ है। स्वर्ण से मंडित त्रिशिखरी अलौकिक मंदिर में ग्रेनाइट पत्थर की श्याम वर्णी कलात्मक परिकर से युक्त मु नि श्री शंखेश्वर पाशर्वनाथ प्रभु की पद्मासन मुद्रा में 2 फुट ऊंची सुंदर प्रतिमा प्रतिष्ठित है। मन्दिर का प्रवेश द्वार अलंकृत है। मंदिर को खूबसूरती से सजाया गया है और वास्तुकला के जटिल कार्यों से सजाया गया है। मंदिर की एक विशाल छत उत्तम गुणवत्ता वाले संगमरमर से बनी है। मंदिर की मूर्तिकला में जटिल डिजाइन हैं और इसमें एक हजार से अधिक कलात्मक स्तंभ हैं, जिनमें से प्रत्येक स्तंभ एक दूसरे से भिन्न हैं। मन्दिर के सम्पूर्ण ढांचे दीवारों, छतों, स्तम्भ, दरवाजों, खिड़कियों, गुम्बद आदि सभी पर सोने की मोटी परत का पेंट किया गया है। बताया जाता है मन्दिर में करीब 100 किग्रा.सोना उपयोग में लाया गया जिसे स्थानीय समुदाय के लोगों ने दान दिया था। मन्दिर निर्माण के लिए महिलाओं ने अपने जेवर दान किए थे। श्वेताम्बर संघ के अधीन यह भारत का पहला जैन मन्दिर है जिसे सोने का मन्दिर होने का गौरव प्राप्त है।

मुख्य मन्दिर के नीचे भोयरे के कांच का मन्दिर बनाया गया है जो कांच की कारीगरी का अद्भुत नमूना है। कांच के मंदिर में विशाल पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा के साथ प्रभु के 10 भावों के आकर्षक पट बने हुए हैं। कांच के मंदिर को छोटे आकार के दर्पणों के साथ खूबसूरती से डिजाइन किया गया है। मंदिर के पास गुरु मंदिर में पंजाब केशरी गोडवाड उद्धारक श्री वल्लभसूरिजी की प्रतिमा एवं चरणयुगल इत्यादि स्थापित हैं। मन्दिर के द्वार के पास आचार्य श्री ललितसूरिजी के समाधी-स्थल पर छत्री में चरण-पादुका स्थापित है।

मन्दिर में प्रथम प्रतिष्ठा सन 1913 में भट्टारक आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरिजी के करकमलों द्वारा की गई थी। आगे चल कर आवश्यकता होने पर आचार्य श्री जिनेन्द्रसूरिजी के निर्देशन से जीर्णोद्धार कार्य किया गया। जून 1979 को मुनि श्री शंखेश्वर पाशर्वनाथ, श्री शीतलनाथ एवं श्री नेमिनाथ आदि जिनबिंबों की प्रतिष्ठा की गई। मुख्य ध्वजा के व स्वर्ण मंदिर उद्घाटन समारोह बुधवार 2 जून 2004 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत एवं मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधराराजे सिंधिया के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। साथ ही आचार्य श्री वल्लभसूरिजी गुरुमंदिर की भी प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इसी वर्ष ‘अतिथि गृह’ नूतन आधुनिक धर्मशाला एवं भोजनशाला का निर्माण भी किया गया।

फालना के महावीरनगर सागर कॉलोनी में नवनिर्मित शिखरबंध जिनालय श्री शांतिनाथजी मंदिर,श्री सर्वोदय पाशर्वनाथ मंदिर,फालना साण्डेराव सडक पर अम्बिका नगर में श्री चौमुखा शंखेश्वर पाशर्वनाथ मंदिर, अंबाजी नगर में नेमिनाथजी मंदिर, वल्लभ विहार में श्री शाश्वत चौमुखजी मंदिर,केशरियाजी नगर में (नेहरू कालोनी) में केशरियाजी मंदिर,श्री दादावाडी आदिनाथ जी मंदिर एवंश्री निम्बेश्वर महादेव का मन्दिर भी दर्शनीय हैं।

स्वर्ण मंदिर में सशुल्क ठहरने एवं भोजन की सुंदर व्यवस्था उपलब्ध है। फालना उत्तर-पश्चिम रेलवे के मुंबई – दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। फालना स्टेशन से यह मन्दिर 35 किमी दूर है। फालना, राष्ट्रीय राजमार्ग नं 14 के साण्डेराव से 12 कि.मी. दूर मीठडी नदी के पास बसा है। फालना से रणकपुर 36 किमी., राता महावीर 28 किमी., उदयपुर 110 किमी और जोधपुर 145 किमी., की दूरी पर है। सरकारी व प्राइवेट बस, टैक्सी-ऑटो आदि साधन यहां उपलब्ध हैं।