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जीएसटीः कुछ बातें जो न कही गई न समझी गई

जीएसटी लागू होने के बाद कहा जा रहा है कि अब एक राष्ट्र एक टैक्स होगा. एक हज़ार से ज़्यादा चीज़ों पर जीएसटी दरें तय कर दी गई हैं. जीएसटी के तहत चार टैक्स स्लैब बनाए गए हैं. ये टैक्स स्लैब हैं- 5%, 12%, 18% और 28%. ज़्यादातर वस्तुओं को 12 फ़ीसदी और 18 फ़ीसदी टैक्स के दायरे में रखा गया है. जीएसटी में पेट्रोलियम, बिजली, शराब और और रियल एस्टेट को शामिल नहीं किया गया है. आख़िर इन अहम चीज़ों को जीएसटी से बाहर क्यों रखा गया? इसी को लेकर हमने अर्थशास्त्री अरुण कुमार और अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर डीएम दिवाकर से बात की.

क्या वाकई एक राष्ट्र एक टैक्स है?

प्रोफ़ेसर अरुण कुमार का कहना है कि यह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि पेट्रोलियम, रियल एस्टेट, शराब और बिजली को जीएसटी के दायरे में नहीं रखा गया है.

ऐसे में जीएसटी लागू होने के बावजूद आपको दिल्ली में जिस क़ीमत पर पेट्रोल या डीजल मिलेगा उसी क़ीमत पर पटना में नहीं मिलेगा.

हर राज्य में बिजली की दरें भी अलग-अलग होंगी. जीएसटी के बाद भी शराब दिल्ली के मुकाबले उत्तर प्रदेश में अलग क़ीमत पर मिलेगी. यही हाल रियल एस्टेट का है. अरुण कुमार का मानना है कि ऐसा राज्यों के नहीं मानने के कारण हुआ है.

प्रोफ़ेसर अरुण कुमार का मानना है कि राज्य इस पर सहमत इसलिए नहीं थे क्योंकि इन चार वस्तुओं से उन्हें भारी राजस्व मिलता है. उन्होंने कहा कि राज्य नहीं चाहते थे कि इतने बड़े राजस्व को वो अपने हाथ से जाने दें. ऐसे में केंद्र सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था.

उन्होंने कहा, ”राज्य चाहते थे कि इन वस्तुओं पर उनकी स्वायतता बनी रहे. रियल स्टेट को लेकर कहा जा रहा है इसमें ब्लैक मनी का प्रवाह ज़्यादा होता है. ऐसे में अगर यह जीएसटी के भीतर रहता तो उस पर लगाम कसाी जा सकती है।

उन्होंने कहा, ”अगर इन चारों वस्तुओं को इस जीएसटी के दायरे में रखा जाता तो अच्छा रहता. इन चारों वस्तुओं का मार्केट में बड़ा असर होता है.”

हालांकि पटना में एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर डीएम दिवाकर शराब, बिजली, रियल एस्टेट और पेट्रोलियम को जीएसटी से बाहर रखने की वजह केंद्र सरकार की कमज़ोरी मानते हैं.

प्रोफ़ेसर दिवाकर ने कहा, ”रियल एस्टेट और शराब में सबसे ज़्यादा काला धंधा होता है, लेकिन इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. अगर सरकार काले धन पर काबू चाहती है तो रियल एस्टेट को बेलगाम कैसे छोड़ सकती है? सरकार नहीं चाहती है कि रियल एस्टेट में लगने वाले काले धन को नियंत्रण में रखे इसलिए उसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है.”

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डीएम दिवाकर ने कहा कि शराब के साथ भी यही बात है. उन्होंने कहा कि सरकार शराब माफ़ियाओं पर नियंत्रण करना चाहती तो सबसे पहले उसे जीएसटी के दायरे में लाती.

निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा?

उन्होंने कहा, ”शराब माफ़ियाओं को जो छूट मिली थी वह जारी रहेगी. इसी तरह बिजली का निजीकरण किया जा रहा है ऐसे में सरकार पूंजीपतियों से कोई टकराव मोल नहीं लेना चाह रही है. उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम भी निजीकरण की पटरी पर लगभग आ चुका है इसीलिए इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है.”

दिवाकर ने कहा, ”शिक्षा पर भी जीएसटी कर नहीं लगेगा. ऐसे में शिक्षा का निजीकरण बढ़ेगा. कोई कैसे मान ले कि प्राइवेट स्कूलों की कमाई नहीं होती है? और अगर होती है तो फिर इन्हें जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाया गया? जीएसटी पूंजीपतियों के हिसाब से मार्केट बनाने की प्रक्रिया है.”

उन्होंने कहा, ”सैनिटरी पैड पर सरकार 12 फ़ीसदी टैक्स लगा रही है जबकि सोने पर तीन फ़ीसदी. टैक्स का जो स्लैब बनाया गया है उसे तोड़कर सोने पर तीन फ़ीसदी टैक्स लगाया गया है. जो ब्रेल टाइप राइटर मुफ़्त में मिलता था अब उस पर पांच फ़ीसदी का टैक्स लगेगा. सरकार ने नाम तो दिव्यांग दे दिया लेकिन काम देखिए.”

प्रोफ़ेसर दिवाकर ने कहा कि सरकार टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन की भी कमर तोड़ने में लगी है. 15-16 में टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन का बजट 26 हज़ार 11 करोड़ था जो 16-17 में 22 हज़ार 91 करोड़ हो गया. जीएसटी के बाद इसे 12 हज़ार 699 करोड़ कर दिया गया है. इस कटौती से साफ़ है कि सरकर की नियत में खोट है. उन्होंने कहा कि बिना टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन को मजबूत किए जीएसटी को मज़बूत कैसे किया जा सकता है?”

पूंजीपतियों के लिए जीएसटी

प्रोफ़ेसर दिवाकर ने कहा कि सरकार ने ग़रीबों को लिए जन धन अकाउंट खोला लेकिन अब उन ग़रीबों को इस अकाउंट को हैंडल करने के लिए आठ फ़ीसदी सर्विस टैक्स देना होगा. उन्होंने कहा कि इतने सारे विरोधाभासों के साथ कोई सरकार कैसे दावा कर सकती है कि इससे ग़रीबों को फ़ायदा होगा?

प्रोफ़ेसर दिवाकर ने कहा कि जीएसटी से कंज़्यूमर स्टेट को फ़ायदा होगा न कि बिहार जैसे ग़रीब राज्यों को. उन्होंने कहा कि जीएसटी की पूरी व्यवस्था विदेशी पूंजी के स्वागत के लिए है. दिवाकर ने कहा कि यदि गोदरेज का साबुन सस्ता मिलेगा तो लोग कुटीर उद्योग का मंहगा साबुन क्यों लेंगे और अगर ऐसा होता है तो छोटे व्यापारियों के हित में नहीं है.

क्या विदेशी निवेश बढ़ेगा

अरुण कुमार मानते हैं कि जीएसटी लागू करने का दबाव मल्टिनेशनल कंपनियों की ओर से भी था. उन्होंने कहा कि ये नहीं चाहते थे कि उन्हें भारत के अलग-अलग राज्य में अलग-अलग टैक्स से जूझना पड़े. हालांकि इससे छोटे व्यापारियों पर असर पड़ सकता है.

उन्होंने कहा, ”जो एक छोटा व्यापारी जिस मार्केट से लोहा ख़रीदता है और उसी मार्केट में गेट बनाकर बेचता है उसे जीएसटी का कोई फ़ायदा नहीं होना है.”

टैक्स भरने वालों की संख्या

अरुण कुमार के मुताबिक भारत में कुल एक करोड़ 70 लाख लोग प्रभावी रूप से आय कर भरते हैं. यह भारत की आबादी का 1.2 फ़ीसदी है. ऐसा कहा जा रहा है कि जीएसटी छोटे व्यापारियों को आयकर के दायरे में लाएगा और पांच करोड़ लोग कर व्यवस्था से जुड़ सकते हैं और इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा.