“राष्ट्रकवि ही नहीं विश्व कवि थे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर”

(भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर की 7 अगस्त को पुण्यतिथि है)

76 साल पहले 7 अगस्त 1941 को उन्होंने कोलकाता में अंतिम सांस ली थी। गुरुदेव बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। उन्हें कौन नहीं जानता। वे एक महान कवि, साहित्यिक सम्राट,दार्शनिक, नाटककार, चित्रकार और महान संगीतज्ञ थे, जिन्होंने अपने जीवन में 2000 से भी ज्यादा गीत लिखे हैं।

गुरुदेव टैगोर भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनकी रचना गीतांजलि के लिए मिला था। इस पुरस्कार को वह स्वयं नहीं लिए थे बल्कि ब्रिटेन के एक राजदूत ने उनकी जगह आकर प्राप्त किया था। यही नहीं ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “नाइटहुड” यानी “सर” की उपाधि से नवाजा था।

टैगोर भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता ही नहीं थे अपितु तीन देशों का राष्ट्रगान उन्होंने लिखा था। सिर्फ टैगोर ही ऐसे व्यक्ति हैं जिनके द्वारा लिखे राष्ट्रगान को इतना ज्यादा पसंद किया गया था कि अन्य देशों ने भी उसे अपना राष्ट्रगान बना लिया ।

भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन”है और बांग्लादेश का राष्ट्रगान “आमार सोनार बांग्ला” टैगोर जी ने ही लिखा है ।वहीं श्रीलंका ने अपनी राष्ट्रगान में एक हिस्सा टैगोर की कविता से लिया है।

राष्ट्रगान के रचयिता गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 18 61 को कोलकाता में हुआ था उनके बचपन का नाम रवि था। उनके तेरह भाई बहन थे ।वह सबसे छोटे थे ।उनके घर में शुरू से ही साहित्यिक माहौल था इसीलिए उन्हें बचपन से ही साहित्य में रुचि हो गई थी । आठ साल की उम्र में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था और 16 साल की उम्र में उनकी पहली कविता संग्रह- भानु सिंह जारी किया गया।

टैगोर जी बैरिस्टर बनना चाहते थे इसलिए वह स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी गए लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और 1880 में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर भारत वापस आ गए और देश की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। देश उनके अमूल्य उपहार के लिए युगों -युगों तक उनको नमन करता रहेगा।

डॉ सुनीता त्रिपाठी
पड़रौना, कुशीनगर