हमारी महान सांस्कृतिक विरासत पर हमें गर्व होना चाहिए

विश्व के इतिहास में भारत वह महत्वपूर्ण देश है जो सभ्यता और संस्कृतियों का प्रथम ज्ञात था! जिसने गणित के जीरो से लेकर हिंदी की वर्णमाला तक , ध्वनियों से लेकर अक्षरों तक ,सुर से लेकर ताल तक, ज्ञान की हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया था! आज वही भारत देश डिजिटल इंडिया बन रहा है या बनने में लगा हुआ है !यह कार्य जितनी तेज गति से हो रही है उतनी ही तेज गति से मनुष्य का प्रतिस्थापन भी हो रहा है! धीरे-धीरे मशीन हमारे सारे कार्यों को आसान करते जा रहे हैं और हम उसके ऊपर निर्भर होते जा रहे हैं! यहां तक की एक अकेला व्यक्ति मशीनीकरण के द्वारा संपूर्ण कार्य करने में सक्षम होने से अहंकार का भी शिकार होते जा रहा है! परिवार तथा समाज सबसे कटता जा रहा है कि हमको किसी की आवश्यकता ही नहीं है, हम किसी के आश्रित नहीं है! हम तो स्वयं सब कुछ कर सकते हैं  फिर किसी और की क्यों सुने? किसी के लिए अपना नुकसान क्यों करें? हम किसी के सहारे नहीं!
हमारी इस आत्मनिर्भरता में हमारा स्मार्टफोन(मोबाइल फोन) हमारा हथियार या सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी साधन सिद्ध हो रहा है ! मोबाइल या कंप्यूटर या लैपटॉप के द्वारा सोशल मीडिया( इंटरनेट ,यु-ट्यूब, फेसबुक ,इंस्टाग्राम ,व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम  इत्यादि प्लेटफार्म जो हमें सोशल मीडिया से तो जोड़ रहा है लेकिन अपने समीप रहने वाले मनुष्यों से सारे रिश्ते तोड़ते जा रहा है ! हमें सबसे ज्यादा सीखने में सोशल मीडिया मददगार हो रहा है! लेकिन बात यहीं तक खत्म नहीं होती बल्कि पूरी शिक्षण -व्यवस्था  उनके कंधों पर ही आ पड़ी है! आज सबसे बड़े गुरु गूगल बाबा है !सबसे बड़े पंडित यू-ट्यूब है और फेसबुक है !कला- कौशल, गीत- संगीत सब कुछ इन्हीं के द्वारा सिखाया और सीखा जाता है !परंतु दुख की बात यह है कि हम इनके द्वारा चाहे जितनी भी पढ़ाई कर ले, जितनी भी कलाएं सीख ले, ज्ञान अर्जित कर ले, परंतु संस्कार से वंचित रह जाते हैं! अपनी रीति -रिवाजों, परंपराओं को अपने संस्कारों में नहीं ला पाते हैं और संस्कृतियां हमसे इस तरह गायब होती जा रही है जैसे गधे के सर से सिंग!
हमें अपने दैनिक दिनचर्या के साथ वह संस्कार जो माता-पिता और गुरुओं के साथ बैठकर सीखने में प्राप्त होता था वह आज पूर्णतया दुर्लभ होता जा रहा है! हमारी कमियां जो हमारे परिवार रूपी पाठशाला में अपने बड़ों के साथ रहकर अपने आप दूर हो जाती थी आज वह तमाम बीमारियों का रूप लेती जा रही है!  प्राय लोग डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं जबकि पहले पाठशाला में गुरुओं के द्वारा  मिलने वाले शिक्षा में डिप्रेशन को कोई स्थान नहीं था! विद्यालयों में जो सीख मिलती थी उसमें हमारा आत्म सम्मान हमारे व्यवहार में  पूर्ण रूपेण दिखाई देता था ! हमारे मन और मस्तिष्क का यथोचित विकास दिखाई देता था!
हमारी आत्मा में विवेक तत्व विकसित होते थे ,जिससे सही – गलत, उचित और अनुचित का भेद हम व्यवहारतन करने में सक्षम होते थे ! आज इस विवेक से व्यक्ति वंचित होने लगा है! जिसके परिणाम स्वरुप बच्चे अपने बड़ों के साथ बदत्मीजी करते देखे जा रहे हैं! बड़ों के पास बैठना और बात करना पसंद नहीं करते वल्कि केवल फोन में डूबे रहते हैं! और विडंबना तो यह है कि सिर्फ बच्चे ही नहीं युवा पीढ़ी भी इसी राह का अनुकरण कर रही है! हम यह नहीं कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर केवल बुराई है, अच्छी बातें भी बहुत हैं पर बुरी बातें बहुत तेजी से फैलती  हैं!  यही वजह है कि सभ्यता के नाम पर नग्नता और अश्लीलता ही दिखाई देने लगी है! बेशर्मी और उद्दंडता सोशल मीडिया पर इस तरह बढ़ती जा रही हैं जिसका कोई आर-पार नहीं है!
अब भारतीय संस्कृति जो शिक्षकों की अटूट श्रृंखला के माध्यम से अमर रूप से संरक्षित है, जहाँ प्राचीन भारत का प्रत्येक साहित्यकार स्वयं एक जीवंत पुस्तकालय था ,अनगिनत गुरुओं और आचार्यों ने इस शैक्षिक विरासत को आज भी अक्षुण्ण बनाए रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ,जो सभ्यता और संस्कृति का प्रथम ज्ञाता कहा जाता है वही भारतवर्ष  अपने आने वाली नई पीढ़ियों को , नौनिहालों को सही शिक्षा नहीं दे पा रहा ,सभ्यता का पाठ नहीं पढ़ा पा रहा! आज भारतीयों को भी अपने धर्म, संस्कृति , वेद- पुराणों का ज्ञान गूगल पर ढूंढना पड़ रहा है! जबकि प्राचीन गुरु अपने अंदर निहित  संपूर्ण ज्ञान  शिष्यों को एक बालक की भांति प्रदान कर उनके सर्वांगीण विकास करने के लिए मार्गदर्शन करता था!
गुरु और शिष्य के बीच प्रेम को देखकर ही निर्विवाद रूप से यह स्वीकार किया गया  कि ” गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और गुरु ही मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है!” ईश्वर तक जाने का रास्ता  गुरु ही बताता है! अब प्रश्न यह है कि क्या गूगल बाबा, फेसबुक और यु-टुब इस जिम्मेदारी को पूर्ण कर सकेंगे? हमारे देश में हर शुभ कार्य को करने से पहले गुरु की वंदना और आराधना करके उनकी आज्ञा ली जाती है, उनका आशीर्वाद लेकर कार्य करने की यह संस्कृति हमारी धरोहर है जो आज विलुप्त हो रही है!
हमारी भारतीय संस्कृति में जिस तरह व्यक्ति का महत्व है, उसी प्रकार प्रथाओं, परंपराओं और  रीति- रिवाजों का भी  महत्व है ,तो क्या हमारे भारतीय नव-युवक संस्कृतियों का वह ज्ञान अपने संस्कार में पूर्णतया ला सकेंगे? मानवीय आकांक्षाओं की पूर्णता के द्योतक ये गुरू(सोशल मीडिया)भारतीय  प्राचीन शिक्षकों का स्थान ले  सकेंगे?
हमारे  धर्म ग्रंथो में बताया जाता है कि दुनिया भर में प्रसिद्ध”महाभारत”ग्रंथ  का लेखन स्वयं गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास के बताने पर उनके समीप बैठकर किया था इसीलिए महर्षि वेदव्यास को संपूर्ण मानव जाति का “आदिगुरु” कहा जाता है यानि कि जिस भारत वर्ष में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर रखा गया है ,जीवन के किसी भी क्षेत्र में मार्ग बताने  वाले गुरु के लिए आदर प्रदान करने की प्रथा है,   जहाँ “विद्या ददाति विनयम्….!”का पाठ पढाया जाता है,माँ सरस्वती और गणेशजी के साथ गुरु की ही स्तुति की जाती है, गुरु सदैव विद्या और ज्ञान का संवाहक होता है , ऐसे भारत में हम  गुरु द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना ही अपना कर्तव्य और धर्म समझते हैं ऐसे दायित्वबोध कार्य को क्या यह सोशल मीडिया कर सकेगा?  यह एक ध्रुव प्रश्न बना हुआ है! वर्तमान समय में भारत विश्व गुरु बनने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है और भारत का बच्चा-बच्चा इस कार्य में अपना पूर्ण योगदान दे रहा है !तब क्या गूगल बाबा अथवा सोशल मीडिया के द्वारा इस  कार्य के दिशा को मंजिल प्राप्त हो सकेगी? चिंतनीय है……!
डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’
(अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ ,नई दिल्ली)