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हिन्दी समय में इस बार

चौथीराम यादव हिंदी के एक विरल अध्येता हैं। वे कम लिखते हैं पर जब भी लिखते हैं उसकी गूँज दूर और देर तक सुनी जाती है। इस बार हिंदी समयपर प्रस्तुत उनका आलेख अवतारवाद का समाजशास्त्र और लोकधर्म ऐसी ही एक विचारोत्तेजक रचना है। यह आलेख जब ‘तद्भव’ में प्रकाशित हुआ था तब इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक प्रतिक्रियाएँ आई थीं। यह भक्तिकाल की रचनात्मकता और सगुण-निर्गुण विभाजन को लेकर अनेक तीखे सवाल उठाता है। इन सवालों से टकराना या उनके बीच से होकर गुजरना निश्चय ही हमें वैचारिक तौर पर समृद्ध करने वाला अनुभव है। चर्चित आलोचक रोहिणी अग्रवाल का आलेख कबीर का वैचारिक दर्शन भी ऊपर के आलेख से जोड़कर पढ़ा जा सकता है।

कहानियों के अंतर्गत पढ़ें चर्चित कथाकार ऋता शुक्ल की सात कहानियाँ – प्रतीक्षा , सातवीं बेटी, कदली के फूल, मानकी की पीड़ा, सपना सुदामी का, कासों कहों मैं दरदिया और आयी गवनवा की सारी…। धरोहर के अंतर्गत पढ़ें एक समय के बेहद चर्चित कवि द्विजेश की कविता पुस्तक द्विजेश दर्शन । बुद्धिनाथ मिश्र का निबंध कन्या है सुहागिन है जगत माता है भी हमारी इस बार की खास प्रस्तुति हैं। विमर्श के अंतर्गत पढ़ें अमरनाथ का आलेख दलित विमर्श के अंतर्विरोध । युवा रचनाकार अवनीश मिश्र दो नोबेल पुरस्कार विजेता कथाकारों के बारे में बता रहे हैं। उनके आलेख हैं पैट्रिक मोदियानो : स्मृति का संरक्षक और मो यान के संग लौह दरवाजे के भीतर । मीडिया के अंतर्गत पढ़ें कृपाशंकर चौबे का आलेख हिंदी पत्रकारिता को सींचनेवाले बांग्लाभाषी मनीषी । इसी क्रम में बाल साहित्य के अंतर्गत पढ़ें ज़ाकिर अली रजनीश की कहानी सबसे बड़ा पुरस्कार । और कविताएँ है हिंदी के दो विशिष्ट युवा कवियों सर्वेंद्र विक्रम और शिरीष कुमार मौर्य की। देशांतर के अंतर्गत पढ़ें सुप्रसिद्ध रूसी कवि अन्ना अख्मातोवा की कविताएँ।

मित्रों हम हिंदी समय में लगातार कुछ ऐसा व्यापक बदलाव लाने की कोशिश में हैं जिससे कि यह आपकी अपेक्षाओं पर और भी खरा उतर सके। हम चाहते हैं कि इसमें आपकी भी सक्रिय भागीदारी हो। आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। इन्हें हम आने वाले अंक से ‘पाठकनामा’ के अंतर्गत प्रकाशित भी करेंगे। हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

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अरुणेश नीरन
संपादक, हिंदी समय