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गुरू गोविंद सिंह के बलिदान को भूल गए तो हिंदुत्व भी नहीं बचेगा

इतिहास साक्षी है कि पूस की इन्हीं सर्द दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार धर्म की बलिवेदी पर न्योछावर होकर ज्योति-जोत में समा गए थे।

उनके इस बलिदान के लिए ही गुरु महाराज को *”सरवंश दानी”* कहा कहा जाता है यानि वो जिन्होंने अपने चारों औलाद को देश और धर्म के लिए बलिदान कर दिया।

कहा जाता है कि जिस समय गुरुपुत्रों को दीवार पर ज़िंदा चुनवाया जा रहा था, उस समय मलेकोटला का नबाब शेर मोहम्मद खान ने इस सजा का विरोध करते हुए दो शब्द कहे थे :- हाय-हाय

कहा ये भी जाता है कि मलेकोटला को उस नबाब के वंशज आज भी अपने उन पूर्वज के *पाप के प्रायश्चित* के लिए नमाज़ पढ़ने आते हैं।?

अब ऊपर जिन बातों को मैंने फूल से घेरा है उसे हाईलाइट करने की वजह भी बता देता हूँ।

किसान आंदोलन के बहाने जो *नई-नई मोहब्बत* परवान चढ़ी है, उसके बाद कुछ सिख भाई कुछ घटनाओं को इतना दुहराने लगे हैं कि मतलब मैं क्या ही कहूँ इस धिम्मीयत वाली मासूमियत पर️। मलेकोटला के नबाब के कथित वंशजों के माफी वाली फोटो शेयर करते हुए और उसके हाय-हाय करने पर क्लीनचिट देने वाले यही लोग ये नहीं बताते कि जब पिता दशमेश ने बाबा बंदा वैरागी को अपने पुत्रों के बलिदान का बदला लेने भेजा था, तो उस संत सिपाही का रास्ता रोकने के लिए मलेकोटला का वही नबाब खड़ा था। लेकिन हिंदुओं से इन्हें घृणा है न तो ये बात ये न बताएंगे।

आज कल हरिमंदिर साहिब की नींव रखने की बात बड़ी फैलाई जा रही है। लेकिन-वो आपको ये नहीं बताएंगे कि कम से कम तीन बार
*हरिमंदिर साहिब को किसने तोड़ा* था, किन लोगों ने वहां हमला कर पवित्र ग्रंथ का अपमान किया था और अमृत सरोवर में मिट्टी भरवाकर उसके जल को दूषित किया था।

ये आपको आजकल ये जरूर बता रहे हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी को पहाड़ी राजाओं ने तंग किया था, पर-ये नहीं बताएंगे कि *गुरु गोविंद सिंह जी को छुरा मारकर किन लोगों ने घायल किया था, जिसके बाद वो ज्योति जोत में समा गए थे।आजकल आपको ये लोग शबद को तोड़मरोड़ कर ये बात जरूर बताएंगे कि नानक ने कहा था : न मैं हिन्दू न मैं मुसलमान!” पर आपको ये नहीं बताएंगे कि गुरु नानक देव जी ने बसंत, *अष्टपदी महला-1* में कहा था—-

“आदि पुरखु कऊ अलहु कहीए, सेखां आई वारी
देवल देवतिआ करू लागा, ऐसी कीरति चाली
कूजा, बांग, निवाज, मुसला, नील रूप बनबारी
घरि घरि मीआ, सभनां जीआं, बोली अवर तुमारी
जे तू मीर महीपति साहिबु कुदरति कउण हमारी
चारे कुंट सलामु करहिगै धरि धरि सिफति तुम्हारी।”

अर्थात्- “विदेशी शासकों के कारण भारतीयों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गयी है, अब तो शेखों का ही बोलबाला हो गया है ; इस्लामी शासकों के भय से आदि पुरुष परमात्मा को भी अल्लाह बोलना पड़ रहा है। शासन ने ऐसी व्यवस्था बना रखी है कि मंदिरों और देवालयों को भी टैक्स देना पड़ रहा है। भारतीयों को भी अपनी *पूजा-पद्धति का भी इस्लामीकरण* करना पड़ रहा है। पूजा के पात्र, ईश्वर का नाम स्मरण, उसकी पूजा और पूजा स्थान सभी का इस्लामीकरण करना पड़ रहा है। चारों तरफ अज़ान की ही आवाज़ सुनाई पड़ रही है, हालत यहाँ तक हो गई है कि बनवारी यानि श्रीकृष्ण को नील वस्त्रधारी कहना पड़ रहा है और उनको नीला वस्त्र में रखना पड़ रहा है, केवल इसलिए ताकि विदेशी शासक प्रसन्न रहें।

घर-घर मियाँ-मियाँ शब्द गाया जा रहा है ; लोगों की बोली ही बदल गई है। अर्थात्, विदेशी शासकों को प्रसन्न रखने के लिए विदेशी भाषा बोली जा रही है। हे ईश्वर ! तुम तो सर्वशक्तिमान हो, यदि तुम हम भारतीयों को यही दिन दिखाना चाहते हो हमारी क्या बिसात है। सब ओर सलाम ही सलाम हो रहा है और सब लोग मुगलों की ही प्रशंसा में लगे हुए हैं।” ये आपको ये तो जरूर बताएंगे कि जहाँगीर तो #इनोसेंट था, वो तो किसी गंगू बाभन के कारण जहांगीर गलतफहमी का शिकार हो गया, पर ये न बताएंगे कि जब-हमारे पंचम गुरु अर्जुन देव जी ने जब पवित्र ग्रन्थ का संकलन/ संपादन शुरू किया तो मुग़ल दरबार आग बबूला हो गया था। और कई तरह से उन पर दबाब बनाने की कोशिश की ताकि ये ग्रन्थ संकलित/ संपादित न हो सके।
जहाँगीर ने गुरु महाराज पर यह तक दबाब बनाया कि आदिग्रन्थ में उनके *नबी की शान में* भी कुछ पद जोड़ें जायें, जिसे सख्ती से गुरु महाराज ने मना कर दिया। गुरु महाराज के खिलाफ़ दिल्ली दरबार की *नाराजगी की एक बड़ी वजह* यह भी थी कि उन्होंने ग्रन्थ को उनके मन-मुताबिक़ नहीं संपादित किया।

ये आपको ये तो बताएंगे कि गुरु गोविंद जी की मदद कुछ पठानों और सूफियों ने की पर ये न बताएंगे कि पिता दशमेश के साथ रहने वाले गुरसिखों के रहतनामे में मलेच्छ लोगों से खान-पान की *दूरी रखने* , उनकी स्त्री का संग करने से बचने का आदेश है।

आजकल एक-दूसरे को रोटी खिलाने वाले ये लोग आपको न बताएंगे कि अपने ऊपर मुगल काल से लेकर *भारत विभाजन तक हुए जुल्मों का दस्तावेजीकरण* करके इन्होंने ही एक के बाद एक कई प्रतिवेदन ब्रिटिश हूकूमत को सौंपे थे।

गुरुओं की अमर और पीयूष वाणी को हमसे छिपाकर, इतिहास से आँखें बंद करने वाले ये लोग वही हैं जो सिख पंथ को अनाचारियों के बारे में उदारमना बताते हैं।

धिम्मी मानसिकता ऐसी ही होती है।