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भारत नाम और भारतीय भाषाओं के लिए जंतर-मंतर पर हुँकार !

‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ और ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ द्वारा भारत के नाम और भारतीय भाषाओं से संबंधित विषयों पर देश के विभिन्न प्रदेशों हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं से संबंधित पचासी सामाजिक साहित्यिक भाषा व अन्य व्यवस्थाओं से जुड़ी संस्थाओं के समर्थन एवं सहयोग से एक दिवसीय जागृति अभियान एवं धरने का आयोजन किया गया।

वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता आदित्य ने आंदोलन की मांगे प्रस्तुत करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि देश के लोगों को उच्चतम स्तर तक जन भाषा में न्याय दिया जाए विभिन्न कानूनों के अंतर्गत सूचनाएं अनिवार्यत: देश और राज्यों की भाषाओं में की भाषा में दी जाएँ तथा भारतीय भाषाओं को शिक्षा व रोजगार की भाषा बनाया जाना चाहिए। जनता की आवाज फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुंदर बोथरा ने कहा कि हजारों साल से हमारे देश का नाम भारत है इसलिए सभी भाषाओं में भारत का नाम केवल भारत होना चाहिए इसलिए इंडिया नाम को भारत के संविधान से हटाया जाना चाहिए।

सुप्रसिद्ध भाषा सेनानी व वरिष्ठ पत्रकार डॉ वेद प्रताप वैदिक ने इन विषयों का समर्थन करते हुए कहा कि उनके लिए सरकार से गुहार लगाने का कोई औचित्य नहीं है। इन विषयों के लिए जन जागरण करते हुए देशवासियों को स्वयं खड़े होना होगा। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि ज्ञान विज्ञान प्राप्त करने की दृष्टि से हमारा विरोध अंग्रेजी से नहीं है, लेकिन हम यह नहीं चाहते कि हमारी भाषाओं का स्थान अंग्रेजी ले।

धरने में उपस्थित उड़ीसा से पांच बार सांसद रहे व सन्यासी प्रसून पारसाणी ने आंदोलन की मांगों को पूर्ण समर्थन देते हुए कहा कि कोई कारण नहीं है कि मेरे देश को इंडिया कहा जाए। उन्होंने राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के महत्व को प्रस्तुत करती हुई भारतीय भाषाओं को शिक्षा रोजगार की तरफ ले जाने पर जोर दिया।

माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी व अंग्रेजी का भ्रम जाल के सुप्रसिद्ध लेखक संक्रांत सानू ने कहा कि लोग अंग्रेजी में इसलिए नहीं पड़ते कि उन्हें अंग्रेजी से प्यार है बल्कि सच्चाई यह है कि भारतीय भाषाओं के लिए शिक्षा रोजगार के विकल्प ही उपलब्ध नहीं है इसलिए गरीब से गरीब व्यक्ति का अंग्रेजी की तरफ जाना विवशता है हमें यह समाप्त करना है।

भारी बरसात के बावजूद जंतर मंतर की खुली सड़क पर बड़ी संख्या में भारत नाम और भारत भाषा-प्रेमी लोग सुबह से शाम तक धरने पर बैठे रहे।

एक दिवसीय धरने में भारतीय भाषाओ के सेनानी पुष्पेंद्र सिंह चौहान, प्रसिद्ध हिंदी सेवी डॉ. महेश चंद्र गुप्त, प्रेमपाल शर्मा, आशीष कंधवे विनोद बब्बर, अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी मंच के अध्यक्ष मुकेश जैन, भारत बोलो अभियान की प्रणेता विजयलक्ष्मी जैन, नेशनल एक्सप्रेस के संस्थापक विपिन गुप्ता, हिंदी सेनानी हरपाल सिंह राणा, मुंबई के सुप्रसिद्ध कानूनी सक्रियता वादी राजेंद्र ठक्कर, नवरत्न अग्रवाल, जय हिंद मंच के अध्यक्ष सुरेश शर्मा, अशोक वशिष्ट, अधिवक्ता ए.पी. सिंह ने भी अपने विचार रखे। सुप्रसिद्ध कवियत्री शैलजा तथा नीतु कुमारी, नवगीत ने विषय से संबंधित मनमोहक कविताएंँ प्रस्तुत कीं। कृष्ण कुमार नरेडा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

इस आयोजन में मुख्य उपस्थितों में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के अध्यक्ष, राजेश्वर सिंह, इंद्र चंद्र वैद, डॉ. वी. दयालु राकेश पांडेय, डॉ. बृजेश गौतम, हंसराज कोचर, संजय सिंघल, रविंद्र डबास, रविंद्र जैन, कुलदीप सहगल, सत्यदेव आर्य, जगत सिंह, चित्रलेखा शर्मा व सुखवर्षा थे।