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मानवाधिकार भाषा को पुनः सीखना हमारे समय के लिए अनिवार्य – डॉ अनुपमा

कोटा। राजस्थान प्रशासनिक सेवा की अधिकारी डॉ अनुपमा टेलर का मानना है कि मानवाधिकार भाषा को पुनः सीखना मौजूदा समय में जीवन की अति महत्वपूर्ण जरूरत है। यह भाषा हमें समाज में समानता, न्याय, और अधिकारों के बारे में समझाती है। इससे हम समाज में विविधता में एकता की भावना को समझते हैं और उसे सम्मान करते हैं।

डॉ अनुपमा टेलर ने राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा मे 06 नवंबर से शुरू हुए भारतीय भाषा उत्सव शृंखला के समापन पर “मानवाधिकार भाषा को (पुनः) सीखना : हमारे समय के लिए एक अनिवार्यता” विषय पर हुई संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए यह बात कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता वयोवृद्ध चिंतक एवं विचारक केबी दीक्षित ने की और शायर चाँद शेरी तथा महानगर टाइम्स के कोटा ब्यूरो चीफ लेखराज शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन परामर्शदाता डबली कुमारी ने किया।

कार्यक्रम के उदघाटन भाषण मे डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालयाध्यक्ष ने पूरे एक माह से ज्यादा समय तक आयोजित विभिन्न गतिविधियो का ब्योरा प्रस्तुत किया तथा बताया की इससे पाठको मे भाषायी चेतना का विकास हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ चिंतक एवं विचारक केबी दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा, “मानवाधिकारों का ज्ञान हमें अपने और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करने की दिशा में बदलाव लाता है। यह हमें सहानुभूति, समर्थन, और समरसता की भावना देता है। इसलिए, मानवाधिकार शिक्षा और सीखना हमारे समाज के विकास और समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।”

विशिष्ट अतिथि चाँद शेरी ने कहा, “मानवाधिकार भाषा की सीखना हमें सकारात्मक परिवर्तन लाने का संदेश देती है, जो समाज में समृद्धि और एकता को बढ़ावा देता है। विशिष्ट अतिथि लेखराज शर्मा ने कहा, “यह हमारे समाज के विकास और समृद्धि के लिए एक निरंतर प्रक्रिया है जो हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान की भावना में सहायता करती है।”

इस अवसर पर चित्रा आजाद, अपेक्षा चतुर्वेदी, सुषमा, सोहा अंसारी, जेटाल, इशिका, सोनल, सुरेन्द्र, जितेंद्र, करिश्मा, लककी, हिमालय, चन्दन, प्रियनशा, किरण, विष्णु, शिवम, कुलदीप सेन, मुनेश कुमार, चेतराम, निश्चल, शबनम जैसे वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।