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मैं राजस्थान हूं……..गाथा राजस्थान की

मैं राजस्थान हूं। प्राचीनतम सिंधु सभ्यता के चिन्ह के साथ राजस्थान निर्माण से पहले मुझे राजपुताने के नाम से जाना जाता था। राजपूताने में 19 राजाओं की रियासतें, 3 ठिकाने और अंग्रेज एजेंसी अजमेर – मेरवाड़ा मेरी पहचान थे। मारवाड़, मेवाड़, शेखावाटी, हाड़ोती, ढूंढाड़ी, मेवात आदि मेरे क्षेत्रीय उप नाम और बोलियां आज तक प्रचलन में हैं। आजादी के बाद देशी रियासतों को विभिन्न चरणों में मिला कर 30 मार्च 1949 को मेरा नामकरण राजस्थान हो गया। तब से आज तक मेरा उदय दिवस हर साल मनाया जाता है। ज्यादा दिन नहीं बीते प्रशासनिक रूप से 7 संभाग और 33 जिलों से मेरा दिल धड़कता था। मेरे दिल की धड़कन बढ़ कर अब 10 संभाग और 50 जिलों में हो गई है।

मुझे गर्व है, मैं एक ऐसा रंगीला प्रदेश हूं जिसके अंक में समाई त्याग, बलिदान और शौर्य की कहानियों और कला- संस्कृति की गूंज पूरी दुनिया में है। विश्व की सबसे प्राचीन सिन्धु घाटी सम्यता और वैदिक सभ्यता का जन्म स्थल सप्त – सैन्धव प्रदेश का गौरवगान करने वाली सरस्वती नदी,विश्व की सर्वाधिक प्राचीन अरावली पर्वत श्रृखलाओं, विश्व के एक मात्र युवा थार के मरुस्थल और रगो में दौड़ती चंबल सरिकी नदियों से मैं गौरवान्वित हूं।

रत्नगर्भा मेरी कोख से उत्पन्न खनिजों से मैं दुनिया को संवरता हूं। ताजमहल जैसी दुनिया की अनेक प्रसिद्ध इमारतों से मेरी संगमरमर की खानें अपने भाग्य पर इठलाती उठती हैं। प्राकृतिक खूबसूरती, जैव विविधता और नाना विध वनस्पति मेरे वनों की शान और श्रृंगार है। मेरे आंचल में समाए पहाड़ी किले, लुभावने महल, कलात्मक हवेलियां, मंदिर, छतरियाँ अन्य स्मारक, रुपहली संस्कृति का दर्शन कराते संग्रहालय और वर्षभर मनाए जाने वाले सांस्कृतिक उत्सवों देखने जब विश्व के सैलानी आते हैं तो मैं अपने राजस्थान होने पर फूला नहीं समाता हूं।

मेरी भूमि की शान इतनी निराली है कि यहां जन्म लेकर जहां वीरों ने मेरा गौरव बढ़ाया वहीं कलाविदों, साहित्यकारों और संतो ने साहित्य ,संस्कृति एवं कला के क्षेत्रों की श्री वृद्धि में अपना योगदान दिया और भक्ति की सरिता प्रवाहित की है। वीर प्रसूता भूमि के वीरों ने देश की रक्षा में शहीद हो कर और मारवाड़ी बेटों ने देश – विदेश में व्यापार के क्षेत्र में मेरा लोहा मनवाया। पृथ्वीराज चौहान, राणाकुम्भा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास तथा सवाई जयसिंह जैसी रणभूमि की संतानों पर मुझे नाज है। भामाशाह की निःस्वार्थ सेवा, पद्मिनी के जौहर और पन्नाधाय के त्याग मेरी अमिट गाथाएं हैं। साहित्य सृजन और चिंतन परम्परा को जीवित रखने में महाकवि चंद्र बरदायी, सूर्यमल्ल मिशन, कृष्णभक्त मीरा और संत दादू की स्मृतियां मेरी पहचान है।

अभिमान से गर्वित होता हूं जब मेरी शौर्य भूमि के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टाॅड लिखता है “राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपोली न हो और कोई ऐसा नगर नहीं जिसने अपने लियोनिडास पैदा नहीं किया हो। राजस्थान की भूमि पर ही खानवा का इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जिसने भारत के इतिहास को पलट कर रख दिया । इसी राज्य ने मालदेव, चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप जैसे वीर दिये हैं जिन्होंने ने सदैव मुगलों से लोहा लेकर प्रदेश की रक्षा की। मालदेव को पराजीत कर शेरशाह सूरी यह कहने को मजबूर हुआ कि खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिये मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता ।”

मेरी इंद्रधनुषी सांस्कृतिक थाती का इससे बड़ा गौरव क्या होगा कि कला – संस्कृति और पर्यटन की गूंज यूरोप और अमेरिका तक है। मरूघरा के बंधेज, अजरक और सांगानेरी प्रिंट के वस्त्र, ब्लू पोट्री, हाथीदांत और चंदन के शिल्प, स्वर्ण पर मीनाकारी, कठपुतली, लाख के चूड़ जैसे हस्तशिल्प ने विदेशी बाजारों में धूम मचा रखी है। विदेशी बालाएं जब राजस्थानी बंधेज पहनकर सड़कों पर चलती है तो सबकी निगाहें उन पर टिक जाती हैं।

घूमर नृत्य को पूरे प्रदेश में नृत्यों का सिरमौर नृत्य होने का गौरव प्राप्त है। कामड जाति का तेरहताली नृत्य, सहरियों का शंकर नृत्य नाटिका, कंजर बालाओं का चकरी नृत्य और गुलाबो का कालबेलिया नृत्य विदेशों तक धूम मचा आया है। अलगोजा, रावण हत्था, मोरचंग, भपंग, और खड़ताल जैसे वाद्यों की तान के साथ बिखरती संगीत की स्वर लहरियों से मेरा रोम – रोम खिल उठता है। आंचलिक कलाकारों के लोक रंगों , ऊंट – घोड़ों के करतबों, साहसिक गतिविधियों, परम्पराओं और विविध कार्यक्रमों से रोमांचित करता माउन्ट आबू का ग्रीष्माउत्सव और शरद उत्सव, जैसलमेर का मरू उत्सव, बीकानेर का ऊंट उत्सव, पुष्कर का कार्तिक माह का पशु मेला, जयपुर की तीज और गणगौर उत्सव, उदयपुर का मेवाड़ उत्सव, शिल्पग्राम उत्सव, डूंगरपुर का बेणेश्वर मेला, खाटूश्याम जी का मेला, रामदेवरा मेला एवं कोटा का दशहरा मेला जैसे उत्सव मेरी शान हैं। मेरा सौभाग्य है कि लोक नृत्य, लोक संगीत और लोक नाट्य के सांस्कृतिक परिवेश के सुनहरे संसार से संपन्न भूमि पर आने वाले सैलानियों को स्वर्गिक आनंद की अनुभूति करा कर सैलानियों का स्वर्ग कहलाने लगा हूं।

सामाजिक और धार्मिक समरसता मेरी अपनी अनूठी विशेषता है। सभी धर्मों और संप्रदाय के अनुयायी, हर जाति के लोग और आदिवासी मेरी वसुंधरा पर समान रूप से फलते – फूलते हैं। लोक देवताओं और लोक देवियों के साथ – साथ पौराणिक कथायें एवं किवदंतिययों की मेरी अंतहीन परंपरा है।

सभी एक दूसरे के पर्व और त्योहारों में शामिल होकर मुझे सौहार्द की जननी बना देते हैं। पुष्कर राज और इसका विश्व में एकमात्र ब्रह्माजी का मन्दिर, अजमेर में सूफी सन्त ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, श्रीगंगानगर में बुड्ढा जोहड़ गुरुद्वारा, रणकपुर और देलवाड़ा के जैन मंदिर विश्व में मेरी पहचान बनकर सामाजिक समरसता की सरिता प्रवाहित करते हैं।

शूरवीरता, त्याग, बलिदान की गाथाओं को समेटे स्थापत्य कला के प्रतीकों और राजाओं की अचूक सुरक्षा व्यवस्था के गवाह चित्तौड़गढ़, जैसलमेर,कुंभलगढ़, आमेर, सवाईमाधोपुर और जल दुर्ग गागरोन के किलों, देश – विदेश के पक्षियों के कलरव से चहचहाते भरतपुर का घाना पक्षी विहार राष्ट्रीय उद्यान, खगोल विद्या का साहकार जंतरमंतर और जयपुर की खूबसूरत चारदीवारी शहर के साथ – साथ सांभर झील के पारिस्थतिकी तंत्र को भी वर्ल्ड हैरिटेज साइट के रूप में यूनेस्को ने विश्व विरासत में शामिल कर दुनिया में मेरा नाम किया है। बाघों की दहाड़ से गूंजता सवाईमाधोपुर का रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य, पिंकसिटी और हवामहल के रूप में विख्यात जयपुर, गुरु शिखर की ऊंची चोटी अंक में समाए एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू, झीलों की नगरी और सर्वश्रेष्ठ हनीमून सिटी उदयपुर, रेतीले धोरों और ऊंट सफारी के लिए विख्यात जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर ने पर्यटन में मेरी खास पहचान बनाई है।

आज मेरा वर्तमान इतना स्वप्निल है की कभी पिछड़े राज्य, रेगिस्तान और सांप सपेरों की मेरी पहचान बदल कर विकासशील राज्यों में हो गई है। हर क्षेत्र में मुझे समृद्ध बनाने में प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक मेरी माटी के 14 सपूतों ने अपना अमिट योगदान दिया। इस दौरान चार बार राष्ट्रपति शासन का दौर भी मैंने देखा। आत्मनिर्भर और सुदृढ़ भारत में आज मेरा स्वर्णिम इतिहास, कला – संस्कृति, विकास एवं प्रगति के सोपान और पर्यटन में सिरमौर बनना मेरा सौभाग्य ही तो है। इठलाता हूं अपने भाग्य पर मै राजस्थान हूं।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
पर्यटन लेखक
पूर्व जॉइंट डायरेक्टर,सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, राजस्थान
1 एफ18, आवासन मंडल कॉलोनी, कुन्हाड़ी
कोटा, राजस्थान
मोबाइल 9928076040