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मैने स्टार वालों से कहा, ट्रांसपोंडर के लिए मैं दूंगा 5 मिलियन हर सालः सुभाष चंद्रा

सुभाष चंद्रा, जो एस्सेल ग्रुप और ज़ी के प्रवर्तक हैं, उनकी अपनी एक खास पहचान है मीडिया मुगल की। हरियाणा के एक छोटे से गाँव से अपना कैरियर शुरु करने वाले, जिनका परिवार अनाज मिल चलाता था, वहाँ से सुभाष चंद्रा ने अपने आपको ऐसे उद्यमों और उद्योगों में सफलतापूर्वक स्थापित किया, जिस क्षेत्र में लोग उन्हें अनुभवहीन समझते थे।

अपनी किशोरावस्था में अपने परिवार के कर्जों को चुकाने की जद्दोजहद करने वाले सुभाष चंद्रा ने संकल्प, व्यावसायिक चातुर्य और कठोर परिश्रम से अपने आपको स्थापित कर दिखाया। थोड़ी किस्मत और थोड़े राजनीतिक सहयोग से उन्होंने यूएसएसआर में चावल का निर्यात कर ज़बर्दस्त सफलता हासिल की।

हमेंशा नई-नई चुनौतियों का सामना करने वाले सुभाष चंद्रा ने प्रसारण जगत में उस समय कदम रखा जब इस क्षेत्र के स्थापित लोग इस उद्योग की संभावना का आकलन नहीं कर पाए थे। यह सुभाष चंद्रा का ही कमाल था कि ज़ी टीवी, निजी क्षेत्र के देश के पहले सैटेलाईट चैनल के रूप में सामने आया और इसने देश में मनोरंजन की दुनिया के मायने ही बदल दिए।

सुभाष चंद्रा ने अपने स्तर पर कई साहसिक फैसले लिए, इनमें से कई भले ही सफल नहीं हुए, उनके द्वारा सैटेलाईट टेलीफोनी और क्रिकेट लीग शुरु करना घाटे का सौदा रहे। लेकिन सुभाष चंद्रा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, अब उनका ध्यान इन्फ्रास्ट्रक्चर और छोटे शहरों की ओर है।

ये एक देसी कारोबारी के खुद के दम पर सफल होने की गाथा है, जो 20 साल की उम्र में मात्र 17 रुपये लेकर दिल्ली आया था। आज वो 6.3 अरब डॉलर के मालिक हैं और उनके ग्रुप का वार्षिक कारोबार 3 अरब डॉलर का है।

हार्पर कलिन्स इंडिया ने उनकी जीवनी पर आधारित पुस्तक का प्रकाशन किया है जिसका नाम है द ज़ेड फेक्टर-माय जर्नी एज़ द रांग मैन एट द राईट टाईम। इस पुस्तक का विमोचन ज़ी जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल में किया गया।

पुस्तक के कुछ अंशः

यह 14 दिसंबर 1991 की बात है, जब मैं एंबिएंस विज्ञापन एजेंसी के अशोक कुरियन के साथ हाँगकाँग में स्टार टीवी के ऑफिस में गया। वहाँ 10 से 12 वरिष्ठ और जूनियर अधिकारी व कर्मचारी बैठे थे। स्टार टीवी के प्रमुख रिचर्ड ली वहाँ नहीं थे, तो हम उनका इंतजार करने लगे। ऐसा लग रहा था मानो हम यहाँ किसी ऐसे राजा का इंतजार कर रहे थे जो आएगा और हमें आशीर्वाद देगा।

तभी अचानक रिचर्ड का आना हुआ और वो मेरे सामने बैठ गए, और कहा, ओके इंडियन चैनल…हिन्दी चैनल…लेकिन भारत में इसके लिए पैसा कहाँ है? रिचर्ड का रवैया बेहद उखड़ा हुआ था। उन्होंने कहा, किसी संयुक्त उपक्रम में मेरी कोई इच्छा नहीं है। मुझे ऐसा लगा कि रिचर्ड ने पहले से ही इसके लिए अपना दिमाग बना लिया था कि ये प्रोजेक्ट किसी काम का नहीं है।

तो फिर मैने सीधे उनसे कहा, मि. ली अगर आप संयुक्त उपक्रम में रुचि नहीं रखते हैं तो क्या आप हमें सैटेलाईट (ट्रांसपोंडर) लीज पर दे सकते हैं?

इस पर ली ने कहा, कोई भी ट्रांसपोंडर 5 मिलियन प्रतिवर्ष से कम पर उपलब्ध नहीं है। मुझे इससे दूर रखने के लिए ये उनकी गर्वोक्ति थी।

मैने भी देर नहीं की और कहा, कोई बात नहीं, मैं आपको हर साल 5 मिलियन डॉलर दूंगा। यह फैसला मैने तत्क्षण किया था, मुझे इसके संभावित परिणामों के बारे में कुछ पता नहीं था।

लेखक के बारे में

सुभाष चंद्रा ज़ी एवँ एस्सेल ग्रुप की कंपनियों के प्रमोटर हैं, जो मीडिया, मनोरंजन जगत और पैकेजिंग, टेक्नॉलॉजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा के क्षेत्र में एक स्थापित नाम है।

सुभाष चंद्रा का ट्विटर हैंडल @_SubhashChandra

प्रांजल शर्मा प्रिंट, डिजिटल, और टीवी मीडिया के क्षेत्र में विगत 25 वर्षों से सक्रिय हैं। उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप और सीएनबीसी 18 नेटवर्क की टीम का नेतृत्व किया है और वे ब्लूमबर्ग टीवी के लिए भारत में संस्थापक संपादक भी रहे हैं। इन दिनों वे बिज़नेस वर्ल्ड केलिए लिख रहे हैं और ज़ी बिज़नेस पर एक कार्यक्रम के सूत्रधार हैं।

उनका ट्विटर हैंडल है @pranjalsharma

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हार्पर कॉलिंस

अमृता तलवार

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