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तो इसलिए नाराज़ हैं सोेने-चाँदी के कारोबारी

अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है जब इस साल का बजट तैयार किया जा रहा था तब एक्साइज़ विभाग ने वित्त मंत्री के सामने फिर वो नोट पेश किया था जिसका पूरा हिसाब-किताब बताता था कि देश में जितना सोना इंपोर्ट होता है उससे बहुत कम सोने के गहनों के बिल देश भर में बनते हैं.

अगर ये रिपोर्ट सही है तो सवाल ये कि देश में इंपोर्ट होने वाला ये सारा सोना कहां जाता है? या फिर गहनों के बिल ही नहीं बनवाते लोग? कैश में ले लेते हैं काला धन ठिकाने लगाने के लिए? उद्योग संगठन फ़िक्की की काले धन पर पिछले साल आई एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि देश में 70 से 80% गहनों की बिक्री कैश में होती है. यानी अंदेशा है कि इसमें से ज़्यादातर काला धन होता है.

हर साल देश में लगभग 1,000 टन सोना इंपोर्ट होता है. इसपर 3,500 करोड़ डॉलर यानी लगभग 2 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हो जाते हैं. इसमें से बहुत थोड़ा ही गहने बनकर एक्सपोर्ट होता है. बाक़ी सारा सोना हर साल देश में ही खप जाता है. फिक्की की रिपोर्ट तो कहती है 70 से 80% गहने कैश में ख़रीदे जाते हैं. फिक्की की रिपोर्ट को आधार बनाएं तो मोटे तौर पर ये आंकड़ा हर साल एक से डेढ लाख करोड़ रुपये का हो सकता है.

हर महीने देना पड़ेगा हिसाब किताब

अगर ये सच है कि बहुत बडी रकम के बिल ही नहीं बन रहे तो ये तो एक्साइज़ ड्यूटी लगाने से पकड़ में आ सकता है. क्योंकि एक्साइज़ ड्यूटी हर महीने देनी पड़ती है. हर महीने हिसाब-किताब देना पड़ेगा कि कितना सोना आया और कितने गहने बिके. अगर गहना व्यापारी के पास सोना आया और उस सारे के गहने नहीं बिके तो वो बाकी सोना अगले महीने के स्टॉक में चला जाएगा. और अगर गहने उससे ज़्यादा के बिक गए जितना सोना व्यापारी ने ख़रीदा ही नहीं तो इसका मतलब

या तो उसने गहने स्मगलिंग के सोने से बनाए,
या चोरी के सोने से बनाए,
या फिर वो गहनों में सोना कम लगाकर मिलावट कर रहा है.
या हो सकता है वो गहने बिना बिल बनाए बेच रहा हो. जो व्यापारी ईमानदार नहीं है वो फंस सकता है.

2012 में यूपीए सरकार ने काले धन पर एक श्वेत पत्र जारी किया था जिसमें देश के अंदर मौजूद काले धन को ज़्यादातर ज़मीन-जायदाद औऱ सोने में निवेश किया हुआ पाया गया था.

सोना काला धन रखने के लिए है भी तो बहुत सहूलियत की चीज़. 30 लाख का कैश सिर्फ़ एक किलो सोने में तब्दील हो जाता है. कहीं भी रखा जा सकता है और काले धन के लेन-देन में भी काम आ सकता है. 30 लाख कैश अगर हज़ार-हज़ार के नोट में भी रखेंगे तो 30 गड्डियों की जगह घेरेगा. यानी पूरा लॉकर भर जाएगा.

यानी ख़रीदने वाले भी कोई टैक्स न दे और सोने के व्यापारी भी टैक्स न दें. सबकुछ कैश में चलता रहे. एक्साइज़ ड्यूटी से ये वाला काला कारोबार तो चौपट हो सकता है. ये ज़रूरी नहीं कि सारे गहना व्यापारी इसीलिए हड़ताल पर गए हों और ये भी बिलकुल नहीं कहा जा सकता है कि सभी ज़्यादातर कैश का ही काला धंधा करते हैं. लेकिन ये भी तो हक़ीकत है कि जो करते हैं वो ये कहेंगे तो नहीं कि एक्साइज़ ड्यूटी के खिलाफ़ इस वजह से हैं.

अगर पूरा हिसाब-किताब देना पड़ गया, तो जो व्यापारी अब तक ईमानदारी से बिल नहीं बनाते उनको न सिर्फ एक्साइज़ ड्यूटी देनी पड़ेगी बल्कि उनका मुनाफ़ा भी फिर उस हिसाब से ज़्यादा निकलेगा औऱ उनको उस पर इनकम टैक्स भी देना पड़ेगा. और बिल बनेंगे तो राज्य सरकार को उनपर वैट भी देना पड़ेगा.

यही चीज़ ख़रीददार पर लागू होगी. बिल बनेगा तो दो लाख से ज़्यादा के बिल पर पैन नंबर देना होगा. यानी वो भी काली कमाई से नहीं ख़रीद पाएगा.काले धन से सोना लोग नहीं ख़रीद सकेंगे तो सोने की बिक्री में ही कमी आ सकती है. बिक्री में कमी आई तो हर साल देश में हज़ार-हज़ार टन सोना इंपोर्ट नहीं करना पड़ेगा.

यानी देश के बहुत सारे डॉलर बच सकते हैं. डॉलर ख़र्च नहीं होंगे तो रुपया मज़बूत हो सकता है. रुपया मज़बूत होगा तो सिर्फ महंगाई ही क़ाबू में नहीं आएगी देश की अर्थव्यवस्था ही मज़बूत हो सकती है.ये सब कयास ही हैं, लेकिन कुल मिलाकर लगता नहीं कि ये संग्राम सिर्फ़ 1% एक्साइज़ ड्यूटी को लेकर है.