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हनुमान के व्यक्तित्व में प्रबंधन के गूढ़ अर्थ छुपे हैः श्री वीरेन्द्र याज्ञिक

मुंबई के अध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जगत में वीरेन्द्र याज्ञिक एक ऐसा नाम है जिनको किसी भी मंच पर सुनना एक दुर्लभ अनुभव होता है। मुंबई में होने वाले किसी भी राजनीतिक सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक या अध्यात्मिक कार्यक्रम में श्री वीरेन्द्र याज्ञिक गीता, भागवत, वेद-पुराण और रामायण के गूढ़ अध्यात्मिक प्रसंगों को इतने रोचक और सहज रूप में प्रस्तुत करते हैं कि श्रोता आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

मुंबई के लोखंडवाला के राजस्थानी मंडल द्वारा आयोजित श्री हनुमंत चिंतनम् में याज्ञिकजी ने जब हनुमान शब्द की व्य़ाख्या प्रस्तुत करते हुए हनुमानजी के व्यक्तित्व प्रबंधन सूत्रों के रूपक के साथ जिस रोचकता से प्रस्तुत किया वह अपने आप में एक यादगार अनुभव था।

याज्ञिकजी ने अपने प्रवचन की शुरुआत श्री गणेश वंदना से की और कहा कि हम बचपन में जब घर से बाहर निकलते थे तो हमारी माँ हमें कहती थी कि गणेश जी का दर्शन करके निकला करों क्योंकि गणेशजी विवेक के देवता हैं। हम तब एक मंत्र भी बोलते थे-

सदा भवानी दाहिने, सम्मुख रहे गणेश पाँच देव रक्षा करे ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

उन्होंने कहा कि घर से बाहर निकलते ही कई समस्याएँ आ जाती है। कई बार दूसरा गल्ती करता है और परेशानी में हम पड़ जाते हैं। लेकिन जब हम प्रार्थना करते हैं कि हमारा विवेक और मति ठीक रहे तो हमारा विवेक जाग्रत रहता है। उन्होंने कहा कि हम तो अब हाय की संस्कृति में जीने लगे हैं, जबकि हाय शब्द अमरीका में HAY यानी How Are You का संक्षिप्त रूप है जो हमारे देश में आकर हाय हो गया। हमारी भाषा में हाय शब्द नकारात्मक होता है। लेकिन हम सुबह से शाम तक हाय-हाय करते रहते हैं, ऐसे में हमारे व्यक्तित्व का विकास कैसे होगा। उन्होंने कहा कि मॉरीशस में हर घर के सामने हनुमानजी की मूर्ति और तुलसी का पौधा दिखाई देता है। वहाँ जब भी लोग घर से निकलते हैं तो इन दोनों को प्रणाम करके निकलते हैं और वापस आकर प्रणाम करते हैं। ये हमारी संस्कृति है मगर हम भूलते जा रहे हैं।

याज्ञिक जी ने कहा कि हनुमानजी इस बात के प्रमाण हैं कि अगर हम कोई भी काम पूरी श्रध्दा और निष्ठा से करें तो काम तो सफल होता ही है परमात्मा भी हमारे अंदर विराजित हो जाता है।

उन्होंने कहा कि हनुमानजी अष्ट सिध्दि और नवनिधि के दाता हैं, हमारा शरीर पाँच महाभूतों, पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से बना है। छठा हमारा मन है, सातवीं बुध्दि और आठवीं आस्था है, यही अष्ट सिध्दियाँ हमारे कार्य को सफल बनाती है। हनुमान मन को नियंत्रित करने वाली शक्ति है। हनु का अर्थ होता है हमारी ठोढ़ी- हनुमानजी की ठोड़ी डेढ़ी थी इसलिए उनका नाम हनुमान पड़ा। ह का मतलब है शिव संकल्प, न का मतलब पोषण यानी विष्णु से है म का मतलब मनोरथ से है और अंतिम न आसुरी शक्तियों को नष्ट करने वाले तेज और बल का प्रतीक है। एकाक्षर शंकर और विष्णु के तत्व के रूप हैं। उन्होंने कहा कि संपूर्ण जगत में 70 प्रतिशत जल है और हमारे शरीर में भी 70 प्रतिशत जल है, बाकी 30 प्रतिशत स्थूल तत्व है।

याज्ञिकजी ने कहा कि हनुमानजी की सबसे बड़ी विशेषता ये रही कि उन्होंने कभी किसी काम का न तो श्रेय लिया न पुरस्कार। वे सुग्रीव के साथ थे तो उनके लिए ही काम करते रहे, फिर रामजी के साथ रहे तो उनकी सेवा की, लक्ष्मण की सेवा की। उनकी विनम्रता में ही उनके प्रबध कौशल के तमाम सूत्र छुपे हैं। जब सीता जी का पता लगाने के लिए उन्हें समुद्र लांघकर जाना था तो उन्होंने अपने सभी साथियों से कहा कि वे उनके आने तक यहीं विक्षाम करें, जब मैं सीता माता का पता लगाकर आउँगा तो हम सब साथ मिलकर प्रभु श्री रामजी को इस बात की सूचना देंगे। अशोक वाटिका में सीता माता के पास पहुँचकर वे सबसे पहले बाल स्वरूप में उनके सामने जाते हैं और जब सीता माता उनका लघु रूप देखकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहती है कि तुम इतने छोटे से वानर होकर इन राक्षसों से कैसे लड़ोगे तो वे अपना भी स्वरूप दिखात हैं। इसका गूढार्थ यह है कि हमें अपने से बड़ों के सामने छोटा हकर जाना चाहिए और अपने बडे होने का अहंकार नहीं करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आजकल छोटी छोटी बातों पर हमारी इगो हर्ट हो जाती है, लेकिन हनुमानजी हर परिस्थिति का सामना विनम्रता से करते हैं उनका ध्येय है

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

यानी उनके पास जो भी काम है वो राम का ही काम है, उनका अपना इसमें कुछ नहीं। जब हम कोई भी काम परमात्मा को समर्पित करके करते हैं तो हमारा अहंकार तिरोहित हो जाता है और कार्य भी सफल होता है।

उन्होंने कहा कि हमारा संकल्प जब पवित्र होता है तो वह हमें तो सबकुछ देता ही है समाज का भी कल्याण करता है। लुई ब्रैल खुद नैत्रहीन थी लेकिन उसके अंदर नैत्रहीनों के कल्याण की भावना थी इसलिए वे ब्रैललिपि बना पाई और आज दुनिया भर के करोड़ों नैत्रहीनों को उनकी वजह से पढ़ने की सुविधा मिल गई है। नारायण मूर्ति का उल्लेख करते हुए याज्ञिकजी ने कहा कि नारायण मूर्ति इसी मुंबई में बैठकर जब अपनी कंपनी की योजना बना रहे थे तो उनके सहयोगियों से उन्होंने सुझाव माँगे कि हम कंपनी को किस रूप में विकसित करेंगे। एक ने कहा कि पैसा कमाने के लिए, दूसरे ने कहा मुनाफा कमाने के लिए, एक ने कहा नाम कमाने के लिए, एक ने कहा लोगों को रोज़गार देने के लिए तो नारायण मूर्ति ने कहा कि हम ये कंपनी केवल इसलिए बनाएंगे कि हम देश के लोगों का सम्मान हासिल कर सकें- ऐसा संकल्प ही शिव संकल्प होता है, और आज आप देख रहे हैं कि नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी से ननाम, प्रतिष्ठा सबकुछ हासिल करते हुए लाखों लोगों को रोज़गार भी दिया। यही भाव हनुमत चिंतन का प्रतीक है।

याज्ञिक जी ने हनुमान अष्टक और हनुमान बाहुक का उल्लेख करते हुए कहा कि तुलसीदास जी की बाँहों में जब तीव्र पीड़ा हुई तो उन्होंने हनुमान बाहुक की रचना की, इसमें इतनी ज़बर्दस्त शक्ति है कि जो भी इसका पाठ करता है वह अपने किसी भी शारीरिक कष्ट से मुक्ति पा सकता है।

उन्होंने कहा कि श्रीरामचरित मानस में हनुमान जी के चरित्र को सुंदर कांड के रूप में व्यक्ति किया गया है क्योंकि उनका संपूर्ण व्यक्तित्व जीवन के सौंदर्य को प्रकट करता है। अगर हम सुंदर कांड की एक एक चौपाई और दोहें पर चर्चा करें तो कई घंटों तक इसमें छुपे प्रबंधन सूत्र और जीवन जीने की कला पर चर्चा की जा सकती है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में लोखंडवाला राजस्थानी मंडल की ओर से श्री बंकेश अग्रवाल, श्री छोटेलाल अग्रवाल , श्री ओमप्रकाश शहा, श्री सूरज भगत और महिला मंडल ने श्री याज्ञिक जी का स्वागत किया।