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शिक्षा नीति बदलेगी तो ही भारत विश्व गुरु बन सकता है – कुलपति प्रो. आशा शुक्ला

महू। डा. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, भारतीय शिक्षण मंडल एवं हेरिटेज सोसायटी, पटना के संयुक्त तत्वावधान में ‘बाबा साहब डा. बी. आर. अम्बेडकर: वैचारिक स्मरण पखवाड़ा’ के अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 के संदर्भ में योग शिक्षा पर एक दिवसीय वेबीनार का आयोजन किया गया था। वेबीनार की अध्यक्ष एवं माननीय कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि ‘भारत का योग विश्वमंच पर प्रतिष्ठापित है और निरंतर योग के प्रति लोगों में रूचि बढ़ रही है।’ प्रो. शुक्ला ने कहा कि भारत विश्वगुरु है लेकिन इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से विश्व मंच पर स्थापित करना है। वेबीनार के बारे में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 को और कैसे प्रभावी बनाया जाए, इसके लिए हम विविध विषयों के शिक्षकों से राय-मशवरा कर रहे हैं ताकि अपेक्षित संसोधन की सिफारिश की जा सके। इस क्रम में आज योग विषय को शामिल किया गया है। प्रो. शुक्ला का कहना था कि ब्राउस के इन प्रयासों का सुफल तब सामने आएगा जब हम आमंत्रित विद्वतजनों के विचारों को नीति-निर्धारकों तक पहुंचा सकेंगे और इसके लिए दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया जारी है।

वेबीनार में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित एमडीएनआईवाय के निदेशक डॉ. ईश्वर बी. बसवारेड्डी ने अपने वक्तव्य में कहा कि- ‘योग सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारता है। योग केवल शिक्षा नहीं बल्कि हमारी जीवनशैली है।’ डॉ. बसवारेड्डी ने कहा कि भारत में योग का इतिहास पांच सौ साल पुराना है किन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों से जब विश्व योग दिवस को संयुक्त राष्ट्रसंघ से मान्यता मिली तो लोगों का आकर्षण योग के प्रति बढ़ा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में योग शिक्षा का प्रावधान किया जाना एक प्रेरक कदम है। योग शिक्षा से सामाजिक मूल्य, मानवीय संवेदनशीलता और राष्ट्र के प्रति निष्ठा का भाव पनपता है। चूंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ओपन सिस्टम है जहां किसी एक विषय में बंधकर नहीं रहना है, वहां अब विद्यार्थियों को बड़े अवसर मिलेंगे। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को होलिस्टिक एजुकेशन बताते हुए कहा कि यह नये भारत के निर्माण में सहायक होगा।

वेबीनार में बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए आचार्य प्रो. वैद्य अर्पण भट्ट ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इस बात का प्रावधान किया गया है कि किसी भी विषय का विद्यार्थी अपनी रूचि और योग्यता के अनुरूप अन्य विषय का चयन कर सकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में योग विषय को शामिल किया जाना स्वागत योग्य है। उनका कहना था कि पाठ्यक्रम का निर्धारण कैसे किया जाए जिससे विद्यार्थियों को सहूलियत हो सके, यह देखना नीति-निर्धारकों का कार्य है। उनका कहना था कि निर्धारित पाठ्यक्रम को कैसे पढ़ाया जाये, यह सुनिश्चित करना शिक्षकों का कार्य है। अक्सर क्लास रूम में लेक्चर तो हो जाता है लेकिन विद्यार्थियों के पास सवाल नहीं होते हैं। वे अपनी समझ कैसे विकसित करें, इसकी भी गुंजाईश राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन की बात करते हुए प्रो. भट्ट ने कहा कि योग शिक्षा कई अर्थो में महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रकृति में होने वाले बदलाव का भी इसमें ध्यान रखा जाता है। गुरु-शिष्य परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि योग सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है।

एडुजी लाइफ की नेशनल प्रेसीडेंट डॉ. आर. एच. लता ने कहा कि वर्तमान समय में योग स्थापित हो चुका है लेकिन इसके साथ ही हमारे सामने नई चुनौतियां भी उपस्थित हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 से लगातार पांच साल इस बात पर विमर्श हो रहा था कि मानवीय मूल्यों को शिक्षा में कैसे शामिल किया जाए। डॉ. लता ने कहा कि जिस विषय का अथाह ज्ञान हमारे पास हो और उसे अमल में लाने के लिए विमर्श करना हैरानी में डाल देता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के संदर्भ में योग शिक्षा के बारे में डॉ. लता का कहना था कि विश्व योग दिवस और शिक्षा नीति में योग शिक्षा के प्रावधान के पश्चात लोगों में रूचि बढ़ी है लेकिन इसे संस्कृति के रूप में ना अंगीकार कर रोजगार के रूप में देखा जा रहा है।

उन्होंने अपनी इस चिंता के साथ कहा कि योग शिक्षा को रोजगारपरक ना मानकर संस्कृति और जीवनशैली के रूप में पढ़ाये जाने की जरूरत है। योग लाइफ ग्लोबल के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. राधेश्याम मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में योग शिक्षा को शामिल किया जाना स्वागतयोग्य है लेकिन यह भी तय किया जाना जरूरी है कि योग शिक्षा किस तरह दी जा रही है, इसकी जिम्मेदारी भी तय हो। डॉ. मिश्रा ने अपने आरंभिक दिनों का स्मरण करते हुए बताया कि योग के साथ उन्हें चरित्र निर्माण, स्वच्छता एवं पर्यावरण के साथ नवाचार की शिक्षा भी दी गई। डॉ. मिश्रा का मानना है कि योग शिक्षक वस्तुत: योगी होता है और योग के सिद्वांतों को जो स्वयं जिये और उसका अनुकरण करे, वह सफल शिक्षक होता है।

इंदिरा गांधी ट्रायबल यूर्निवसिटी, अमरकंटक के प्रो. मोहनलाल चढार ने कहा कि अमरकंटक योग की शोधभूमि कहलाती है। प्रो. चढार ने कहा कि योग शिक्षा के लिए डिग्री का बंधन समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि योग शिक्षा अनुभव आधारित है। इसके तर्क में उन्होंने गुरु-शिष्य की योग की सनातन परम्परा का उल्लेख किया। उन्होंने पीपीटी के माध्यम से विस्तार से योग शिक्षा के बारे में उपस्थितजनों को बताया।

वेबीनार के आरंभ में ब्राउस में अम्बेडकर पीठ के आचार्य देवाशीष जी ने विषय के बार में विस्तार से जानकारी दी तथा विश्वविद्याय के बारे में बताया। उन्होंने अतिथियों का स्वागत किया। वेबीनार के समापन अवसर पर सहयोगी संस्था हेरिटेज सोसाईटी के महानिदेशक अनंताशुतोष द्विवेदी ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अतिथियों द्वारा प्रस्तुत विचारों को गंभीरता से लिया जा रहा है तथा इसका दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आभाषी मंच पर दर्शकों द्वारा जो प्रतिक्रिया प्राप्त हुई, उसे भी शामिल किया जाए। वेबीनार का संचालन डॉ. अजय दुबे ने किया।