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वैश्विक दक्षिण के विचारों को अग्रसर करता भारत

भारत में आयोजित होने वाला जी-20 समूह राष्ट्र राज्यों का सम्मेलन भारत के लिए प्रासंगिक है बल्कि दक्षिण राष्ट्र – राज्य में विकासशील राष्ट्र राज्य, कम पूंजी वाले राष्ट्र- राज्य में शोध एवं विकास में पिछड़े राज्यों के लिए बहुत ही प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है ;क्योंकि ज्वलंत मुद्दों पर एक सार्थक, मूल्यवान एवं उपापदेई संगठन के रूप में जी-20 एवं वैश्विक दक्षिण के राष्ट्र – राज्यों का भारत प्रतिनिधित्व कर रहा है। भारत सरकार ने दिसंबर माह में दक्षिण विकासशील देशों के लिए”वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन ” का आयोजन किया था, इससे वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों के समस्याओं के निदान एवं सहयोग की आशा भरी अपेक्षाओं का मंच प्राप्त होने के विकासशील देशों का मंच दिखाई दे रहा है ।भारत सरकार वैश्विक सम्मेलन में अध्यक्षता के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जिसको सामरिक दृष्टिकोण से “विश्व कार्यपालिका “की संज्ञा प्रदान की जाती है ।विकसित राज्यों के समूह स्थाई पांच अर्थात बड़े – 5 राष्ट्रों का समूह एवं G- 7 अर्थात विकसित राष्ट्रों के प्रत्यक्ष संपर्क में है। वैश्विक दक्षिण के विकासशील देश अपनी समस्याओं व अपनी चुनौतियों के लिए विकासशील देशों व विकसित देशों के मनोवैज्ञानिक एवं उनके दिखावटी मुखौटा से कैसे दबाव महसूस कर रहे हैं ? इस वैश्विक सम्मेलन से G- 77 में शामिल 134 देशों में से 125 देश अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में विखंडन ,यूक्रेन युद्ध के कारण, अनाज ,तेल ,गैस और उर्वरक निर्यात की कमी और आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर एकमत रहे या इनकी निदान के लिए परस्पर सहमति दिए हैं।

भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण के विकासशील देशों के सम्मेलन में पहली दुनिया, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में गठित थी, जिनकी विचारधारा उदारवादी- पूंजीवादी विचारधारा थी एवं जिनका सामरिक संगठन” नाटो” था ,जो सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर आधारित हैंअर्थात एक पर आक्रमण सब पर आक्रमण और सब पर आक्रमण एक पर आक्रमण माना जाएगा। वैश्विक स्तर के दक्षिण के देशों के कुशल व्यक्तियों के कार्य गतिशीलता को सुनिश्चित करने के लिए आप्रवासन की मांग किया है। इस सम्मेलन में सबकी नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुंच का आश्वासन देने की बात कही है ।भारत के वैश्विक स्तर पर उदीयमान व्यक्तित्व का सर्वाधिक प्रबलता रहा है कि इस सम्मेलन में पाकिस्तान (चरमपंथ एवं अराजकता की उर्वरा भूमि) व अफगानिस्तान( विधिविहिन्न शासन एवं उत्तरदाई शासन का ना होना) को बुलावा नहीं दिया गया है या भारत की सफलतम कूटनीतिक सफलता का प्रासंगिकता है। इस सम्मेलन में म्यांमार को शामिल किया गया था, लेकिन इसके तानाशाही शासन/ सैनिक शासन तंत्र को वैश्विक स्तर पर मान्यता नहीं दी गई थी ।भारत म्यांमार के साथ गुणात्मक व सहयोगात्मक संबंध मजबूत करना चाहता है। इस सम्मेलन की सैद्धांतिक तत्वों ,मूल्यों एवं प्रत्तयों को वैश्विक स्तर पर जी-20 के माध्यम से व्यवहारिक आदर्श एवं मूल्य प्रदान की जा सकती है।

(लेखक प्राध्यापक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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