1

भारतीय खगोलविदों ने सौर ग्रहों के वातावरण का अध्ययन करने की नई विधि खोजी

भारतीय खगोलविदों ने अतिरिक्त सौर ग्रहों के वातावरण को समझने की एक नई विधि खोजी है। उन्होंने दिखाया है कि सूर्य के अलावा अन्य सितारों के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों का अध्ययन प्रकाश के ध्रुवीकरण को देखकर और ध्रुवीकरण के संकेतों का अध्ययन करके किया जा सकता है। ध्रुवीकरण के इन संकेतों अथवा हस्ताक्षर या प्रकाश की प्रकीर्णन तीव्रता में बदलाव को मौजूदा उपकरणों के साथ देखा जा सकता है और मौजूदा उपकरणों का उपयोग करके सौर मंडल से परे ग्रहों के अध्ययन का विस्तार किया जा सकता है।

हाल के दिनों में, खगोलविदों ने पता लगाया है कि हमारे सौर मंडल की तरह भी कई अन्य तारों के चारों ओर भी ग्रह घूम रहे हैं। अब तक लगभग 5000 ऐसे एक्सोप्लैनेट का पता लगाया जा चुका है। लगभग कुछ दशक पहले, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बैंगलोर के वैज्ञानिक सुजान सेनगुप्ता ने सुझाव दिया था कि गर्म युवा ग्रहों के तापीय (थर्मल) विकिरण और अन्य सितारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों के परावर्तित प्रकाश, जिन्हें अतिरिक्त-सौर ग्रह या एक्सोप्लैनेट के रूप में जाना जाता है, को भी ध्रुवीकृत किया जाएगा और ध्रुवीकरण का माप एक्सोप्लैनेटरी वातावरण की रासायनिक संरचना और अन्य गुणों का खुलासा कर सकता है। कई ब्राउन ड्वार्रफ्स के ध्रुवीकरण का पता लगाने के बाद भविष्यवाणी की पुष्टि, एक प्रकार के असफल तारों, जिनका वातावरण बृहस्पति के समान ही है, ने दुनिया भर के शोधकर्ताओं को अत्यधिक संवेदनशील पोलीमीटर बनाने और एक्सोप्लैनेटरी पर्यावरण की जांच के लिए पोलारिमेट्रिक विधियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।

हाल ही में, सुजान सेनगुप्ता के साथ भारतीय खगोल भौतकीय संस्‍थान-आईआईए काम कर रही पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता अरित्रा चक्रवर्ती ने एक विस्तृत त्रि-आयामी संख्यात्मक विधि विकसित की और एक्सोप्लैनेट के ध्रुवीकरण का अनुकरण किया है। सौर-ग्रहों की तरह ही एक्सोप्लैनेट अपने तेजी से घूमने के कारण थोड़े तिरछे होते हैं। इसके अलावा, तारे के चारों ओर अपनी स्थिति के आधार पर, ग्रहीय डिस्क का केवल एक हिस्सा ही तारे की रोशनी (स्टारलाइट) से प्रकाशित होता है। प्रकाश उत्सर्जक क्षेत्र की यह विषमता गैर-शून्य ध्रुवीकरण (नॉन जीरो पोलोराइजेशन)को जन्म देती है।

‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल’ में प्रकाशित शोध में, वैज्ञानिकों ने एक पायथन-आधारित संख्यात्मक कोड विकसित किया है जिसमें एक अत्याधुनिक ग्रहीय वातावरण मॉडल शामिल है और विभिन्न झुकाव कोणों पर मूल तारे की परिक्रमा करने वाले एक्सोप्लैनेट की ऐसी सभी विषमताओं को नियोजित किया गया है। उन्होंने डिस्क केंद्र के संबंध में परिभाषित ग्रहों की सतह के विभिन्न अक्षांशों और देशांतरों पर ध्रुवीकरण की मात्रा की गणना की और उन्हें प्रबुद्ध और घूर्णन-प्रेरित तिरछी ग्रहीय सतह पर औसत किया। विभिन्न तरंगदैर्घयों पर ध्रुवीकरण पर्याप्त रूप से अधिक होता है और इसलिए एक साधारण पोलारिमीटर द्वारा भी इसका पता लगाया जा सकता है यदि स्टारलाइट अवरुद्ध हो। यह एक्सोप्लैनेट के वातावरण के साथ-साथ इसकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में मदद करता है।

“यहां तक कि अगर हम सीधे ग्रह की छवि नहीं बना सकते हैं और अध्रुवीकृत स्टारलाइट को ग्रह के ध्रुवीकृत परावर्तित प्रकाश के साथ मिलाने की अनुमति है, तो यह राशि किसी एक दस लाख के कुछ दस भाग होनी चाहिए, लेकिन फिर भी कुछ मौजूदा उच्च उपकरणों जैसे एचआईपीपीआई, पीओएलआईएसएच, प्‍लैनेट पोल, आदि द्वारा पता लगाया जा सकता है। अरित्रा चक्रवर्ती ने कहा कि यह अनुसंधान उपयुक्त संवेदनशीलता के साथ उपकरणों को डिजाइन करने और पर्यवेक्षकों का मार्गदर्शन करने में मदद करेगा।

ट्रांजिट फोटोमेट्री और रेडियल वेलोसिटी विधियों जैसे पारंपरिक और लोकप्रिय तरीकों के विपरीत, जो केवल किनारे पर देखे जाने वाले ग्रहों का पता लगा सकते हैं, यह पोलरिमेट्रिक विधि कक्षीय झुकाव कोणों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ परिक्रमा करने वाले एक्सोप्लैनेट का पता लगा कर उनकी आगे जांच कर सकती है। इस प्रकार, निकट भविष्य में पोलारिमेट्रिक तकनीक एक्सोप्लैनेट के अध्ययन के लिए एक नई खिड़की खोलेगी और हमें पारंपरिक तकनीकों की कई सीमाओं को दूर करने में सक्षम बनाएगी।

प्रकाशन लिंक: https://iopscience.iop.org/article/10.3847/1538-4357/ac0bb7

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें डॉ. एस.के. सेनगुप्ता ([email protected]), अरित्रा चक्रवर्ती ([email protected])।