भारतीय लोक कला, साहित्य समाज, संस्कृति और रंग-परिदृश्य को केंद्र में रखकर एक पुस्तक सम्पादित करने की योजना में समस्त कलानुरागी लेखकों और शोधार्थियों के शोध आलेख आमंत्रित हैं। यह पुस्तक ISBN नंबर प्राप्त प्रतिष्ठित प्रकाशन से शीघ्र ही प्रकाशित होगी।
प्रस्तावना
भारतीय कलाएँ प्राय: सामाजिक सहभाव तथा किसी न किसी धार्मिक अनुष्ठानों से अनुप्रेरित हैं। जिनकी भारतीय सामाजिक संरचना की निर्मिति में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हर अंचल और समाज की अपनी-अपनी कलाएँ हैं, जिनसे सामजिक बोध विकसित होता है। इन कलाओं में विविधता है लेकिन विविधता के बावजूद एक जीवन राग है, जो समूचे भारतीय मानस को एक सहभाव से जोड़े रखता है।
सम्भावित विषय/ उपविषय/ शीर्षक
-लोक की अवधारणा और सामाजिक सौंदर्य
-लोक संस्कृति की विरासत और सांस्कृतिक संदर्भ
-लोक की सांस्कृतिक विविधता में एकता के सूत्र
-लोक संस्कृति के विविध आयाम
-लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष और जातीय संरचना
-लोक की भाषायी विविधता और सामाजिक जीवन
-लोक साहित्य और लोक दृष्टि
-लोक की कविता और संस्कृति
-लोक की कथा और संस्कृति
-लोक में प्रचलित लोक कथाएँ और उनकी सामाजिक भूमिका
(आल्हा, लोरिक, सारंगा-सदावृक्ष, बिहुला, जसमा ओडन आदि जैसे विभिन्न अंचलों में प्रचलित लोक कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन )
-लोक साहित्य के विविध आयाम
-लोक मिथकों का समाजशास्त्रीय अध्ययन
-लोक में क़िस्सागोई की परंपरा और सांस्कृतिक अवदान
-लोक कहावतों की सामाजिक भूमिका
-पहेलियाँ-बुझौवल का समाजशास्त्रीय अध्ययन
-लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत की अवधारणा
-लोक गायन की परंपरा और संस्कृति
-लोक गीतों में अभिव्यक्त काव्यात्मक वैशिष्ट्य
-लोक कलाओं के आधार लोक वाद्यों की विशिष्टता और अवदान
-लोक कथा गायन की परम्परा का सांस्कृतिक अध्ययन
(आल्हा गायन, पंडवानी गायन, बाउल गायन आदि जैसे -विभिन्न अंचलों में प्रचलित कथा गायन की परम्परा का सांस्कृतिक अध्ययन)
-लोक गीतों में अभिव्यक्त सामाजिक जीवन
(क) संस्कार गीत (सोहर, विवाह, गाली, मंगलगीत आदि विभिन्न भाषाई अंचलों में प्रचलित गीत)
(ख) ऋतु सम्बन्धी गीत (बारहमासा, होली, चैती, कजरी आदि विभिन्न भाषाई अंचलों में प्रचलित गीत)
( ग ) श्रमसम्बन्धी गीत (कटनी, जँतसर, दँवनी, रोपनी आदि विभिन्न भाषाई अंचलों में प्रचलित गीत)
-विभिन्न जातीय संरचना से जुड़े लोक गीतों का सांस्कृतिक अध्ययन
-लोक नाट्य की परम्परा और संस्कृति
-लोक नाटकों में अभिव्यक्त जातीय चेतना और संस्कृति
-लोक नाटकों में विदूषक की परंपरा और सामाजिक चेतना
-लोक नाटकों की भाषिक संरचना और प्रस्तुति विधान
-लोक नाट्य प्रस्तुतियों का सांस्कृतिक अध्ययन
(रामलीला, रासलीला, नौटंकी, माच, नाचा, ख्याल, अंकिया, भांड पाथेर, बिदेसिया, तैय्यम आदि जैसे विभिन्न अंचलों में प्रचलित लोक नाट्यों का सांस्कृतिक अध्ययन)
-लोक नृत्य की परंपरा और संस्कृति
लोक नृत्य में अभिव्यक्त सामाजिक सहभाव और संस्कृति
-लोक नृत्य में अभिव्यक्त मिथक और अनुष्ठान
-लोक नृत्य में अभिव्यक्त प्रकृति और किसानी संस्कृति
-लोक नृत्य की विविध शैलियाँ और प्रस्तुति विधान
(छऊ, धोबी नृत्य, नटुआ नाच, कोलदहकी नृत्य, झूमर नृत्य, शैला नृत्य आदि जैसे विभिन्न अंचलों में प्रचलित लोक नृत्यों का सांस्कृतिक अध्ययन )
-लोक की विविध चित्रांकन शैलियाँ और सामाजिक सरोकार ( ऐपण, मधुबनी, मालवा चित्र कला, कुमाऊँनी चित्र कला आदि जैसे विभिन्न अंचलों में प्रचलित चित्रांकन शैलियों का सांस्कृतिक अध्ययन )
-लोक के खेल और बाल रंगमंच
-लोक में प्रचलित बाल खेलों की सामाजिक भूमिका
-लोक में प्रचलित मुखौटा कलाओं का सांस्कृतिक अध्ययन
-जातीय संरचना से जुड़ी मुखौटा कला और सामाजिक सरोकार
-लोक के विविध अनुष्ठानों से जुड़ी मुखौटा कला
-लोक में प्रचलित कठपुतली कला और उसकी सामाजिक भूमिका
मंदिरों से जुड़ी लोक कलाओं का सांस्कृतिक अध्ययन
अपेक्षाएं :
•उल्लिखित विषयों के अतिरिक्त लेखक अपनी रुचि के अनुसार किसी भी प्रदेश / अंचल तथा विधा पर उपविषय बनाकर लेख भेज सकते हैं।
•कलाकारों के साक्षात्कार भी भेज सकते हैं।
•शब्द सीमा न्यूनतम 2500 शब्द से अधिकतम 5000 शब्द है।
•लेख मौलिक हों तथा लिए गए संदर्भों का विवरण अवश्य दें।
•लेख प्रकाशन के दौरान चयन की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
•शब्दों का फॉण्ट यूनिकोड तथा फ़ॉन्ट साइज़ 14 मान्य होगा।
•प्रकाशन के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा और न ही लेखक को कोई मानदेय दिया जायेगा।
•पुस्तक प्रकाशित होने पर लेखक को अपनी प्रति का समस्त खर्च (डाक आदि) स्वयं वहन करना होगा।
•शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 30अगस्त 2023 है।
शोध आलेख निम्नलिखित ईमेल पर भेजें-
Email: lokkala2023@gmail.com
सम्पर्क सूत्र :
*प्रो. दर्शन पाण्डेय*
प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
Mob. no. 9891320580
डॉ० ललित कुमार सिंह
8586022945