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आंतरिक शक्ति ही मानवीय एकता का आधार

जिस जीवन में प्रेम और सौहार्द होता है, वही जीवन सही मायने में आध्यात्मिक जीवन है। लेकिन आज के दौर में बढ रही अंह प्रवृत्ति ने मानव जीवन को निरस बना दिया है। ऐसे में मानवीय विकास व करूणा के स्रोत सूखते नजर आ रहे हैं। घटते पारस्परिक स्नेह व सामाजिक सौहार्द सेसमाज में स्वार्थ बढता ही जा रहा है, इसके लिए जरूरत है कि प्रत्येक व्यक्ति के दिल में अपनत्व और सौहार्द के भाव जगे। इसके लिए व्यक्ति के जीवन में सहिष्णुता, सापेक्षता और संवेदना का होना बहुत जरूरी है।

वर्तमान दौर में मानव जीवन में एक दूसरे से लगाव कम हुआ है, जिससे प्रतिषोध की भावना बढी है मानव जीवन में अनेक समस्याओं का समावेष हुआ है। आध्यात्मिक जीवन विकास के लिए जरूरी है कि मानव मन में समन्वय व सौहार्द का भाव बना रहे। यह अनुभव का विषय है। अपनेपन की भावना पत्थर दिल इंसान को भी सौहार्द के रास्ते पर ला खड़ा करती है। जीवन में करूणा का होना बेहद जरूरी है इसके लिए भावनात्मक रूप से सकारात्मक चिंतन एवं दूसरे के प्रति मंगल की कामना ही इसकी साधना है। विनम्र और सौहार्दपूर्ण जीवन जीने वाला व्यक्ति ही करूणावान हो सकता है।

कोई भी व्यक्ति मानवीय एकता का पक्षधर तभी हो सकता है जब विन्रमता व सौहार्द में स्वयं जीता है। इसकी की आंतरिक स्वीकृति ही मानवीय एकता को बढाने में सक्षम है। यही मानव जीवन का उज्ज्वल पक्ष है, इस भावना से मूक प्राणी भी आकर्षित हो जाता है। संसार में प्रेम के प्रति सत्यता के भाव ही अहिंसा के चिंतन का जन्म देते है। जहां अपनापन है वहां करूणा है, अहिंसा है। करूणा एवं अहिंसा से आपूरित जीवन हिंसा का पक्षधर किसी भी रूप में नहीं हो सकता है। वात्सल्य के लिए प्रेरणा की आवष्यकता होती है जबकि बुराई का स्वतः ही निर्माण हो जाता है। इस तत्व के आचरण व व्यवहार से ही व्यक्ति क्षमतावान बन सकता है। यह शांत एवं गंभीर जीवन का दर्शन है।

जीवन में सहजता, सरलता एवं सादगी के साथ विन्रतापूर्वक कही गई बात सहज स्वीकार्य है। जहां सहज स्वीकृति हो वहीं प्रेरणा एवं पुरूषार्थ की चेतना का प्रारम्भ हो जाता है। वात्सल्य युक्त स्नेह जीवन का विषिष्ट एवं प्रभावी प्रयोग है जिसके बल पर बिना शक्ति का उपयोग किये बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है।यह जीवन का वह असाधारण मंत्र है जो अपने प्रभाव से पुरूषार्थ की अनूठी गाथा लिखने में सक्षम है। ऐसे जीवन से प्रेरणा का विकास होता है और जिस जीवन में प्रेरणा हो वहीं पुरूषार्थ अपने प्रभाव के साथ आगे बढता है। कोई व्यक्ति कितना भी प्रभावी हो, श्रमषील हो लेकिन प्रेरणा की भावना तभी जागृत हो सकती है जब जीवन में शालिनता का वास हो।

यह तत्व जीवन में पुरूषार्थ को जगाकर अध्यात्मिक जीवन को आकार देता है।सही मायने में इससे ही जीवन में अध्यात्म बल का उदय होता है। प्रेमपूर्ण जीवन विषुद्व होता है, साधना को समर्पित होता है। इससे ही जीवन में अध्यात्म के प्रति समर्पित हो जाता है। यह साधना प्रभावी एवं अनूठी है जिसके लिए व्यक्ति को अपने मानस को संयम एवं संतुलित रखते हुए भावनात्मक मजबूती के साथ जुड़ना होगा। प्रेमपूरित अध्यात्म की जीवन की दषा व दिषा बदलने में सक्षम हो सकता है। व्यक्ति के ह्दय में करूणा व विनम्रता है तो संसार की तमाम साधना के लिए उपयोगी है। इसके अध्यात्म जीवन के द्वार को खोला जा सकता है।

जिस व्यक्ति ने जीवन में स्नेहयुक्त भाव को जीने का प्रयास किया है उसने वषीकरण सूत्र को प्राप्त कर लिया है। विनम्र भाषा के दो बोल से व्यक्ति प्रभावित ही नहीं होता बल्कि आकर्षित भी होता है। विन्रमता से आपूरित जीवन संयम का पर्याय है। करूणा के विकास के लिए यह जरूरी प्रक्रिया है, जहां करूणा होती है वहीं जीवन की डोर खिंची चली आती है। स्नेहयुक्त भावना के साथ व्यक्ति का व्यवहार किसी को भी अपनी और आकर्षित करने में सक्षम है। यह सही मायने में विषुद्व भावनायें है जिसका प्रसार ही सामने वाले के रोम रोम को प्रभावित कर लेता है। लेकिन जहां वासना और स्वार्थ होता है वह भाव अंतरमन को कभी नहीं छू सकता है। यह वो वषीकरण मंत्र है जिसके बल पर बड़े से बड़े विरोधी को जीता जा सकता है ।

यह जीवन को सद्भाव की दिषा में प्रवाहित करने में सक्षम है। इसकेे द्वारा ही मानव जीवन की स्वार्थता को तोड़ा जा सकता है। मानव जीवन में बढ रही कटुता, अंहवृत्ति, स्वार्थ को तोड़ने के लिए प्यार के साथ जिया जीवन ही प्रभावी है। यह बंधन ही जीवन में नकारात्मकता को असफल करने में अपनी भूमिका निभा सकता है। यह संसार का प्रभावी तत्व है जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को अध्यात्ममय बना सकता है। संसार में व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए यही सर्वोपरी तत्व है। यह जीवन का अमूल्य तत्व है जिसका पालन कर व्यक्ति अध्यात्मिक जीवन जीने के साथ बहुमुखी विकास करने में सक्षम हो जाता है। यह अंतरमन की चेतना है, जिसका विकास प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का ध्येय बनने से ही मानव जीवन व्याप्त अनेक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है।

-राष्ट्रीय संयोजक-अणुव्रत लेखक मंच,
लक्ष्मी विलास,
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