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क्या श्रीमद्भागवत महापुराण में ‘राधा’ की चर्चा है?

आज पौराणिक श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम अवश्य जोड़ते हैं। ‘राधा’ के बिना ‘कृष्ण’ का नाम आधा ही समझा जाता है। यदि श्रीकृष्ण जी योगीराज थे और ‘राधा’ उनकी धर्मपत्नी नहीं थी तो ऐसा पौराणिक क्यों करते हैं? मेरे विचार से पौराणिकों की यह भयंकर भूल है। ‘श्रीमद् भागवत महापुराण’ वैष्णवों का एक प्रामाणिक पुराण माना जाता है जिसमें श्रीकृष्ण जी के चरित्र पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इस महापुराण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इसमें ‘राधा’ की कहीं भी चर्चा नहीं है। राधा तो श्री रामाण गोप की पत्नी थी।

कतिपय पौराणिक ‘श्रीमद् भागवत महापुराण’ में भी ‘राधा’ का नाम प्रदर्शित करने की कल्पना करते हैं। यथा-
१. पं. दीनानाथ शास्त्री सारस्वत की कल्पना-
(आपने ‘भागवत’ में राधा का नाम खोजा है।) आप लिखते हैं- जिस गोपी को श्रीकृष्ण अन्य गोपियों को छोड़ कर ले गए थे, वही तो ‘राधा’ थी जिसका संकेत ‘अनमा राधातो नूनं (भागवत १०/३०/२८) ‘राधितं’ शब्द से आया है।…[१]

२. साहित्याचार्य पं० बलदेव उपाध्याय, एम०ए० की कल्पना-
“…अनया राधितो नूनं”…… (भागवत १०/३४/२४) इस रमणी के द्वारा अवश्य ही भगवान् ईश्वर कृष्ण आराधित हुए हैं। धन्या गोपी की प्रशंसा में उच्चरित इस गद्य में राधा का नाम झीने चादर से ढके हुए किसी गूढ़ बहुमूल्य रत्न की तरह स्पष्ट झलकता है।
इस श्लोक की टीका में गौडीयवैष्णव गोस्वामियों ने स्पष्ट ही ‘राधा’ का गूढ़ संकेत खोज निकाला है।”…[२]

३. श्री पं० कालूराम शास्त्री का कुतर्क-
“…जिस समय भगवान् ने लीलावतार श्रीकृष्ण का रूप धारण किया उस समय इनकी उपासना करने के लिए सोलह हज़ार एक सौ सात श्रुतियों की अधिष्ठाता देवताओं ने स्त्री रूप धारण करके श्रीकृष्ण से पाणिग्रहण किया। इसी प्रकार (१६१०७) सोलह हज़ार एक सौ सात स्त्रियों तो हुईं और एक भगवती रुक्मिणी रूप धारण करके लक्ष्मी अवतरित हुई। इस कारण से भगवान् श्रीकृष्ण की १६१०८ स्त्रियां हुईं।…[३]

समीक्षा-
• श्री कालूराम शास्त्री का १६१०७ श्रुतियों को स्त्री बतलाना भी कोरा गप्प ही है। इसी कुतर्क पर वे पुराणों की मिथ्या, अश्लील गप्पों को सत्य सिद्ध करने के लिए ‘पुराण वर्म’ जैसी ऊटपटांग पुस्तक लिखी है।

• पं. बलदेव उपाध्याय का भागवत १०/३४/२४ में ‘अनया राधितो नूनं’ प्रमाण लिखना अशुद्ध है। बिना मूल ग्रन्थ को देखे हुए उन्होंने किसी की पुस्तक से प्रतिलिपि कर ली है।

• पं. दीनानाथ शास्त्री का प्रमाण वर्तमान भागवत स्कन्ध दस, अध्याय तीस, श्लोक २८ में है।[४]
‘अराधितो’ यहां किया है और सारस्वत जी व उपाध्याय जी दोनों ही ‘राधा’ अर्थ करके अनर्थ करते हैं।
• पौराणिक पं. रामतेज पाण्डेय साहित्य शास्त्री ने इसका सही अर्थ इस प्रकार किया है- “अवश्य ही इसने भगवान् कृष्ण की आराधना की होगी।”

• साहित्य भूषण, काव्य मनीषी, पं० गोबिन्द दास व्यास ‘विनीत’ अर्थ करते हैं- “परमेश्वर भगवान् का सच्चा आराधत तो इसने किया है।”

अनेक विद्वान् ‘श्री भागवत महापुराण’ में ‘राधा’ की चर्चा नहीं मानते हैं-
• श्री विन्टर नीट्ज लिखते हैं- “पर राधा का नाम नहीं है। इससे (Naidya) यह सही निष्कर्ष निकालते हैं कि इस पुराण की रचना ‘गीत गोबिन्द’ के पहले हुई।”[५]
• पौराणिक संन्यासी स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती लिखते हैं- “भगवान् व्यास अथवा श्री शुक्रदेव जी महाराज अनन्त ज्ञान सम्पन्न हैं। ऐसी स्थिति में उन्होंने किस अभिप्राय से श्री राधा जी और गोपियों का नामोल्लेख नहीं किया, इस प्रश्न का उत्तर या तो उनकी कृपा से ही प्राप्त हो सकता है अथवा केवल अपने या दूसरे के अनुमान पर सन्तोष कर लेने से।”[६]

• विद्यावारिधि पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद लिखते हैं- “विष्णु भागवत में गोपी और कृष्ण का चरित्र विस्तृत होने पर भी ‘राधा’ का नाम नहीं है, होता तो राधा महात्म्य अवश्य होता।”[७]

• श्री पूर्णेन्दु नारायण सिंह, एम०ए०, बी०एल० ‘राधा’ का अस्तित्व नहीं मानते हैं। वे लिखते हैं- “But I shall not touch in front of her is a study of the Bhagavata Purana.”[८]

अर्थात्- “भागवत पुराण के अध्ययन में मैं उसके (राधा) ऊपर स्पर्श नहीं करूंगा।”
• पं० राम प्रताप त्रिपाठी शास्त्री लिखते हैं- “श्रीमद् भागवत में ‘राधा’ का नामोल्लेख भी नहीं है, जो परवर्ती कृष्ण काव्य की आधार भूमि है।”[९]

• साहित्याचार्य पं० विश्वेश्वर नाथ रेउ अपने “पुराणों पर एक दृष्टि” शीर्षक लेख[१०] में लिखते हैं- “यद्यपि श्रीमद् भागवत में कहीं भी ‘राधा’ का उल्लेख नहीं हुआ है तथापि ‘देवीभागवत’ में उसके चरित्र को स्थान दिया गया है।”

इस प्रकार श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम लेना कृष्ण जैसे योगीराज को कलंकित करना है।
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१. “सनातनधर्मालोक” (दशम पुष्प), प्रथम संस्करण, पृष्ठ २७
२. “भारतीय वाङ्गमय में श्री राधा”, प्रथम संस्करण, पृष्ठ १० से १५ तक
३. “पुराण वर्म” पूर्वार्ध, पृष्ठ २५७
४. गीताप्रेस, गोरखपुर में सम्वत् २०२२ वि० में मुद्रित व प्रकाशित अष्टम संस्करण, मूल गुट का साइज, पृष्ठ ५३७, श्रीमद् भागवत-महापुराण, बालबोधिनी भाषा टीका, पं० गोबिन्द दास व्यास कृत, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ २६६ (द्वितीय संस्करण, श्याम काशी प्रेस, मथुरा में मुद्रित), पं० रामतेज पाण्डेय शास्त्री कृत ‘सामयिकी भाषा टीका’ सजिल्द, पृष्ठ १११ (सन् १७५२ ई० पण्डित पुस्तकालय राजा दरवाजा, वाराणसी द्वारा प्रकाशित) में १०/३०/२८ सही है।
५. प्राचीन भारतीय साहित्य, “प्रथम भाग, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ २२० की पाद-टिप्पणी (सन् १७६६ ई० में मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली द्वारा प्रकाशित, प्रथम संस्करण”)
६. “श्रीमद्भागवत-रहस्य” पृष्ठ २०९ (द्वितीय संस्करण, बम्बई)
७. “अष्टादश पुराण दर्पण” पृष्ठ १७३ (सम्वत् १७७३ वि० बम्बई संस्करण)
८. A study of the Bhagavata Purana” P.P.H. 19
९. “प्राचीन भारत की झलक” (हमारे पुराण शीर्षक लेख) पृष्ठ ४३ (सम्वत् २०१५ वि० में लौशाम्बी प्रकाशन, प्रयाग द्वारा प्रकाशित, प्रथम संस्करण)
१०. मासिक पत्रिका “सरस्वती” प्रयाग का “हीरक जयन्ती अंक” पृष्ठ ६३१ (सन् १७६१ ई० में इण्डियन प्रेस, प्रयाग द्वारा मुद्रित व प्रकाशित)
प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ