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जगदलपुर जिले में हरियाली के साथ मुनगा से रोजगार

जगदलपुर जिले में वन विभाग के अधिकारी इन दिनों एक नई कवायद में जुटे हैं। लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ अधिकारी उनकी सेहत सुधारने की भी कोशिश कर रहे हैं। पैसे कमाने से लेकर सेहत सुधारने के लिए लोगों को खुद ही प्रेरित किया जा रहा है। इन दिनों जिले के विभिन्न गांव में अलग-अलग समितियों के माध्यम से लोगों को नि:शुल्क मुनगा के पौधों का वितरण किया जा रहा है। 

इसकी खासियत यह है कि इन पौधों को पेड़ का आकार लेने के लिए विशेष देख-रेख की जरूरत नहीं होती। यह किसी भी माहौल में बढ़ जाते हैं। इसके अलावा एक बार पेड़ का रूप लेने के बाद ये अच्छी कमाई का जरिया भी बनते हैं। साथ ही इनसे हरियाली भी होती है। वन अफसरों की मानें तो मुनगा से शरीर में आयरन (लौह) की कमी दूर होती है और इससे एनिमिया का खतरा भी कम होता है। 

यह सेहत के लिए उपयुक्त तो है ही, इसके अलावा एक बार पौधा पेड़ का आकार ले लेता है तो कम से कम 10 हजार रुपये की आमदनी देता है। अधिकतम इसके पेड़ से एक लाख रुपये तक कमाए जा सकते हैं। वन विभाग अब तक इलाके की अलग-अलग समितियों को करीब 45 हजार पौधों का वितरण कर चुका है। विभाग को एक पौधे के पीछे 10 रुपये का खर्च वहन करना पड़ रहा है। 

डीएफओ एन के पांडेय ने बताया कि विभाग का प्रयास है कि वो अधिक से अधिक फलदार पौधों के जरिये ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देकर इलाके में हरियाली लाए। यही कारण है कि इलाके के किसानों को मुनगा के पौधों का वितरण किया जा रहा है। वन विभाग ने मुनगा के पौधों के लिए पहले चरण में इलाके के बकावंड की 38, बस्तर की 11 और भानपुरी ब्लॉक की 22 वन समितियों के जरिए इसका रोपण करवाया है। रेंजर जी आर राव ने बताया कि एक-एक समिति में कम से कम 200 और अधिकतम 500 सदस्य हैं। पहले चरण में इन समितियों से जुड़े लोगों को पौधे दिए जा रहे हैं।

इसका पौधा लगभग १० मीटर उंचाई वाला होता है किन्तु लोग इसे डेढ़-दो मीटर की उंचाई से प्रतिवर्ष काट देते हैं ताकि इसके फल-फूल-पत्तियों तक हाथ आसानी से पहुँच सके। इसके कच्ची-हरी फलियाँ सर्वाधिक उपयोग में लायी जातीं हैं। सहजन के लगभग सभी अंग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि) खाये जाते हैं।

आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है। यह उत्‍तर और दक्षि‍ण भारत दोनों में पाया जाता है। दक्षिण भारत में पाए जाने वाले सहजन के पेड़ से साल भर फलि‍यां नि‍कलती हैं। वहीं, उत्‍तर भारत में इसका पेड़ महज एक बार ही फलि‍यां देता है। 

स्‍वास्‍थ्‍य के हि‍साब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्‍ति‍यों में कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन, कैल्‍शि‍यम, पोटेशि‍यम, आयरन, मैग्‍नीशि‍यम, वि‍टामि‍न-ए, सी और बी-काम्‍प्‍लेक्‍स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है ।इनका सेवन कर कई बीमारि‍यों को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसका बॉटेनिकल नाम 'मोरि‍गा ओलि‍फेरा' है। हिंदी में इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं। इसका पौधा लगभग दस मीटर उंचाई वाला होता है,लेकिन लोग इसे डेढ़-दो मीटर की उंचाई से हर साल काट देते हैं, जिससे इसके फल-फूल-पत्तियों तक हाथ आसानी से पहुंच सके। इसकी कच्ची-हरी फलियां सबसे ज्‍यादा उपयोग में लाई जाती हैं।सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बनाकर खाई जाती है। फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है। आमतौर पर इसका सेवन ग्रामीण इलाकों में अधि‍क देखने को मि‍लता है। जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं। सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर, वातघ्न, रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है। सहजन में दूध की तुलना में चार गुना कैल्‍श‍ियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है। 

सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटि‍का, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठि‍या,लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्‍म हो जाते हैं। इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्‍दी ही लाभ मिलने लगता है।

(मुनगा के कई नाम हैं इसे सहजन, सुरजना और सेंगा के नाम से भी जाना जाता है। ) 

साभार- बिज़नेस स्टैंडर्ड से