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जकार्ता : मुंबई की कई छबियाँ यहाँ जीवंत हो जाती है

बचपन में अंग्रेज़ी के अख़बारों में एक स्थान बड़ी सुर्ख़ियों में रहता था jakarta वजह पंचशील आंदोलन , नेहरू , नासिर , सुकर्ण द्वारा तीसरी दुनिया के देशों को एक जुट करने की कोशिश . धीरे धीरे ये करिश्माई नेता नेपथ्य में चले गए. लेकिन बड़ी इच्छा थी दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश की राजधानी देखने की जिसके नाम का पहला अक्षर d शायद कम होते डच प्रभाव की तरह विलुप्त हो गया है . मुस्लिम देश मगर भारतीय संस्कृति और डच प्रभाव जगह जगह दिखता है।

तीन साल पहले यही दिसम्बर का महीना , सुकर्ण हाता अंतरराष्ट्रीय ऐयरपोर्ट पर जब उतरा तो उसे देख कर पहले तो ऐसा लगा जैसे किसी बहुत विकसित देश का भव्य प्रवेश द्वार हो , सब कुछ शानदार , व्यवस्थित और आकर्षक . वहाँ से शहर के लिए निकला तो लगा वापस मुंबई में हूँ , समुद्र से सटा , आजादी के बाद भी यूरोपीय वास्तुशैली की निशानियाँ , सड़कों पर ज़बरदस्त ट्रैफ़िक के कारण धीमी धीमी रफ़्तार से रेंगते वाहन और दुनिया की विकास की गति से क़दमताल करती गगनचुंबी इमारतें ।

लेकिन जकार्ता मुंबई की तुलना में काफ़ी सस्ता है . सौ डालर इंडोनेशियाई रुपए में बदले थे तीन दिन खाने पीने , रहने , घूमने के बावजूद खतम नहीं हुए।यहाँ की भाषा को भाषा इंडोनेशिया कहते हैं यह रोमन में लिखी जाती है अगर खोजबीन करेंगे तो काफ़ी सारे संस्कृत के शब्द मिल जाएँगे . जकार्ता भी अंतरराष्ट्रीय आइटी हब बनने की कोशिश कर रहा है इसलिए नई पीढ़ी अंग्रेज़ी बोल और समझ लेती है लेकिन आम आदमी अंग्रेज़ी नहीं समझता , मेरे होटल के पास दो कालेज की छात्राओं ने मुझे घूमने के लिए ब्लू बर्ड क़ैब करा कर दी , ड्राइवर ने संकेतों की भाषा में वो सारे स्थान अच्छी तरफ़ से समझाए जो मुझे देखने चाहिए थे . सुबह से लेकर देर रात तक पूरे शहर की परिक्रमा करने जगह जगह ठहरने के बावजूद एसयूवी का भाड़ा मात्र चार सौ भारतीय रुपए ही हुआ . उसने एक स्थान पर सड़क के किनारे हनुमान जी की वो ऊँची प्रतिमा दिखायी जिसका उल्लेख पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी आत्मकथा में किया है ( उनका बचपन जकार्ता में भी गुजरा था ).

जकार्ता वासी बहुत खर्चीले हैं , जम के ख़रीदारी करते हैं , शहर में दस बहुत ही बड़े माल हैं जो हर समय गुलोगुलज़ार रहते हैं , ज़्यादातर शोपिंग युवक युवती करते हैं , चीजों के रेट भी बड़े वाजिब हैं , एक माल में घुस जाओ सुबह से शाम हो जाए . मैं तो सेंट्रल माल गया आकार में और ब्रांड की संख्या की दृष्टि से बहुत विशाल है , जल्दी ही बाहर आ गया क्योंकि देखा जाए तो हर माल एक सा ही दिखता है वही ब्रांड वही ले-आउट. वैसे अन्यथा शहर में कोई ख़ास ऐसी जगह नहीं जो बहुत आकर्षित करती हो . ले दे के war memorial ऐसी जगह है जहां पार्क का विस्तार है ,यहाँ पहुँचने के लिए सबसे बढ़िया साधन मेट्रो है जो ऐशियन खेल के दौरान बनी थी . मेमोरियल ख़ूब हरी भरी खुली जगह है जहां शाम होते ही शहर उमड़ पड़ता है , खाने पीने की दुकाने और खोमचे ख़ूब हैं.

शहर में लम्बे समय तक डच अधिकार रहा , इसलिए यहाँ की पुरानी इमारतें डच वास्तुशैली का खूबसूरत नमूना हैं . बैंक जीन्स में बसता है इसलिए बैंक आफ इंडोनेशिया देखने गया , नई इमारत तो गगनचुंबी है लेकिन पुराना भवन वही खूबसूरत डच शैली में बना हुआ है.

वैसे जकार्ता से सटा ओकुल बीच भी है लेकिन अगर गन्दगी बर्दाश्त कर सकते हैं तो बेशक वहाँ पानी में उतर कर देखिए.

जकार्ता शहर पर जनसंख्या के बोझ को कम करने के लिए ऐरो सिटी बनाया गया है , समझ लीजिए अपना नवी मुंबई , हर सड़क , हर ले-आउट बढ़िया , और सबसे अच्छी बात यह कि हवाई अड्डे के काफ़ी क़रीब .

 

 

 

 

 

(लेखक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और जाने माने फिल्म संगीत के समीक्षक भी है, दुनिया की सैर करने के बाद अपने अनुभव साझा कर रहे हैं https://desireflections.blogspot.com/ उनका ब्लॉग है।)