जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम !

जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान हुआ है। औद्योगिक क्रांति के पश्चात पर्यावरण को जितनी क्षति पहुंची है वह बीते 2000 वर्षों के तुलना में बहुत विनाशकारी है। इसका परिणाम हम जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि से उपजे महासंकटों के रूप में देख रहे हैं। वैश्विक स्तर के अद्यतन प्रतिवेदन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के चलते वर्ष 2050 तक वैश्विक आय में 19% की कमी आ सकती है।

इसी प्रकार विज्ञान जगत की प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर में प्रकाशित प्रतिवेदन में चिंता जताई गई है कि भारत में आय में कमी का 22% तक हो सकता है। वायुमंडल में पहले से मौजूद ग्रीनहाउस गैस निरंतर बढ़ रहे हैं। प्रदूषण और पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 20% की हानि हो सकती है। संप्रति से कार्बन उत्सर्जन में वृहद कटौती कर ली जाए तब भी जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था को ब20% तक नुकसान उठाना ही होगा।

जलवायु परिवर्तन आने वाले 25 वर्षों में संसार भर के लगभग सभी देशों में भारी आर्थिक नुकसान करेगा। इसमें प्रकृति सभी वर्गों और सभी आय वर्गों को नुकसान पहुंचाएगी। आर्थिक नुकसान को झेलने वाले देशों में विकासशील देशों और विकसित देश दोनों है। पर्यावरण समस्याओं पर शीघ्र सकारात्मक सुधार नहीं किया गया तो वर्ष 2029 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था को 60% तक का नुकसान उठाना पड़ेगा ।मौसम वैज्ञानिकों और भूगर्भ भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ते तापमान के लिए त्वरित स्तर पर कार्रवाई नहीं हुआ तो पृथ्वी आने वाले वर्षों में धधकते गोला बन जाएगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान विगत 150 सालों में अपने उच्चतम स्तर पर है।

औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर संप्रति तक तपांतरण में 1.25 सेल्सियस के स्तर पर पहुंच चुका है ।आंकड़ों के अनुसार 45 वर्षों से प्रत्येक दशक में तापमान में 0.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है । आईपीसीसी के आंकड़ों और अनुमानों में 21वीं सदी में पृथ्वी के पार्थिव स्तर के तापमान में 1.1 से 2.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है । वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि बढ़ते तापमान के कारण वातावरण से ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है । अन्य शोध के अनुसार ,वायुमंडल में 36 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि हो चुकी है और वायुमंडल से 24 लाख तन ऑक्सीजन खत्म हो चुका है । यही स्थिति बनी रही तो 2050 तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होना निश्चित है।

भूमंडलीय तापन के कारण पृथ्वी का तापमान जिस तेज गति से उन्नयन कर रहा है इससे आने वाले वर्षों में 60 डिग्री सेल्सियस होने की संभावना बढ़ रही है। पृथ्वी के तापमान में 3.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो आर्कटिक और अंटार्कटिका के वृहद हिमखंड पिघल जाएंगे ।बढ़ते तापमान के कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बर्फ की चादरें शीघ्रता से पिघल रहे हैं ।भूमंडलीय तापन के कारण हिमालय क्षेत्र में माउंट एवरेस्ट के हिमचादर 2 से 5 किलोमीटर सिकुड़ रहे हैं। कश्मीर और नेपाल के मध्य गंगोत्री हिमचादर भी तेजी से पिघल रही है। जलवायु परिवर्तन को सुरक्षित भविष्य के लिए संरक्षित करना है तो भूमंडलीय तापन को नियंत्रित करना होगा ।ग्रीन हाउस गैसों को नियंत्रित एवं सावधानी पूर्वक अनुप्रयोग करना होगा। वैज्ञानिक प्रगति के फलात्मक प्रभाव को मानव हित के लिए सावधानी से प्रयोग करना होगा।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )