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जनभाषा में न्याय ! हर और खड़ी दीवारें, राह बनाने के हो रहे उपाय

स्वाधीनता के पश्चात भी न्याय पाने का मार्ग हमेशा से अंग्रेजी के संकरे मार्ग से हो कर गुजरता रहा है। जिसमें से कुछ संपन्न अंग्रेजी शिक्षा पढ़े लोग ही जा पाते हैं। इसलिए यह कहा जाता रहा है कि भारत में न्याय, विशेषकर उच्च स्तर पर संपन्न व प्रभावशाली वर्ग के लिए ही सुलभ है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में भी देश की जनता, जनभाषा की माँग ले कर यहाँ से वहाँ भटक रही है।

अब जबकि 30 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों और देश के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की सभा में स्वाधीनता के बाद पहली बार भारत के मुख्य न्यायाधीश ने और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनभाषा में न्याय की पैरवी की तो जनता को आस बंधी। उल्लेखनीय है कि ठीक उसके पहले यानी 9 अप्रैल को ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई’ द्वारा मुंबई में मुंबई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजन कोचर की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था।

उल्लेखनीय है कि देश के निभिन्न भागों में जनभाषा में न्याय के पक्षधर अनेक वकील और न्यायाधीश तथा जनतांत्रिक अधिकारों के पक्षधर और भारतीय भाषा सेनानी इस दिशा में प्रयास करते रहे हैं लेकिन न्यायपालिका पर अपना शिकंजा जमाए अंग्रेजी के प्रबल पक्षधर नेतागण, नौकरशाह, न्यायाधीश, अधिवक्तागण आदि जो न्याय की पहुंच भी एक विशेष समृद्ध और अंग्रेजी शिक्षित वर्ग तक ही सीमित रखना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि जनभाषा में न्याय हो। उन्होंने हर कदम जनभाषा में न्याय की राह में रोड़े अटका रखे हैं।

जनभाषा में न्याय की लड़ाई लड़ रहे, ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से सम्मानित पटना उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद पिछले समय से जनभाषा के निर्भीक सिपाही के रूप में न्यायपालिका से जूझते रहे हैं। हर बार नई-नई समस्याएँ खड़ी की जाती रही, राह में रोड़े हिछते रहे वे हटाते रहे, चोटिल होने पर भी कभी हार न माननेवाले अधिवक्ता इंद्रदेव ने अब सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी में याचिका लगाई। जिसकी आज तारीख थी।

https://main.sci.gov.in/case-status
एस.एल.पी( क्रिमिनल) डी नंबर:-27160/2020
क्रम संख्या-1722
समक्ष :- माननीय न्यायमूर्ति श्री जे .बी. पार्डीवाला
दिनांक:-31.10.2022( चेंबर मामला)
( अभी पता लगा है कि सुनवाई स्थगित हो गई है। नई तारीख मिलेगी। )

अधिवक्ता इंद्रदेव बताते हैं यह मुकदमा हिंदी में दाखिल हुआ है। इसका अंग्रेजी अनुवाद उच्चतम न्यायालय के अनुवाद विभाग ने किया है लेकिन अंग्रेजी अनुवाद का खर्चा भी आवेदक से लिया गया है। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे, जानकर लोग अचंभित हैं।

लोग इसलिए भी अचंभित हो रहे हैं , क्योंकि भारतीय भाषा अभियान द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के माननीय अध्यक्ष जी का भाषण हुआ है कि अगर कोई व्यक्ति उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय में हिंदी में मुकदमा दाखिल करता है और उससे अंग्रेजी अनुवाद मांगा जाता है, तो यह गुलामी का प्रतीक है और बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं बिहार बार काउंसिल के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय विचार गोष्ठी दिनांक 24 /9/2022 को माननीय केंद्रीय विधि मंत्री का भाषण हुआ था। उसमें उन्होंने कहा कि जो न्यायमूर्ति हिंदी नहीं समझते हैं ,उन्हें अनुवादक यंत्र का इस्तेमाल करना चाहिए, जिसका समर्थन उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा भी लोगों के बीच किया गया।

अधिवक्ता इंद्रदेव का कहना है हिंदी आवेदन का अंग्रेजी अनुवाद भले ही बन गया, लेकिन अब उत्तम न्यायालय भारत के कुछ अभिलेख अधिवक्ता भी चाहते हैं कि हिंदी आवेदन के समर्थन में हिंदी में बहस हो और अब मुझे उच्चतम न्यायालय भारत के कुछ अभिलेख अधिवक्ताओं का भी साथ मिलना शुरू हो गया है। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के अभिलेख अधिवक्ता ने अपना वकालतनामा दाखिल किया है। सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी में बहस होगी।

बड़ा सवाल यह है कि न्यायाधीश को जनता की भाषा आनी चाहिए या पूरे देश की जनता न्यायाधीश की भाषा सीखे ? यह भी विचारणीय है कि जब अंग्रेजी अनुवाद की आवश्यकता न्यायाधीश को है, अनुवाद न्यायालय का अनुवाद विभाग करता या करवाता है, तो उसके अनुवाद का खर्च अधिवक्ता ये यानी अंतत: न्याय पाने वाले से क्यों लिया जाए। यह न्याय है या अन्याय? इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।

भारत के प्रधानमंत्री, भारत के विधि एवं न्याय मंत्री तथा भारत के पूर्व और वर्तमान मुख्य न्यायधीशों द्वारा जनभाषा में न्याय के समर्थन के बावजूद भी जनभाषा में न्याय को कोई रोड़ा नहीं हट रहा। जनभाषा में न्याय का एक ही उपाय। संविधान के अवुच्छेद 350 के उपबंध के आलोक में जनतंत्र के बुलडोजर से संविधान – संशोधन करते हुए न्यायतंत्र से अंग्रेजी के एकाधिकार को हटाया जाए और भारतीय भाषाओं का मार्ग बनाया जाए। सभी उच्च न्यायालयों में संघ व राज्य की भाषा में न्याय का मार्ग बनाया जाए।

डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
निदेशक
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई