कश्मीर की महान नायिका रानी दिद्दा की शौर्य गाथा

प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक दिद्दा का उल्लेख किया है।राजतरंगिणी,कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है।

‘राजतरंगिणी’ का शाब्दिक अर्थ है – राजाओं की नदी,जिसका भावार्थ है – ‘राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह’ यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होकर 1154 A.D. तक का है।

महान नायिका रानी_दिद्दा / दित्या देवी (958 ई.-1003 ई.)

26 वर्ष की उम्र में दिद्दा की शादी क्षेमगुप्त से हुई। क्षेमगुप्त कश्मीर के महाराज पर्वगुप्त के बेटे थे। 950 ई. में क्षेमगुप्त कश्मीर के राजा बने, लेकिन कल्हड़ के अनुसार वो एक कमजोर राजा थे जिनका मन अधिकतर जुए और शिकार में लगा रहता था। इसी के चलते दिद्दा को राज काज का काम संभालना पड़ा और धीरे धीरे वो इतनी ताकतवर हो गयीं कि महाराजा के नाम के आगे महारानी का नाम लिया जाने लगा। यहां तक कि शाही मुहरें और सिक्के भी दिद्दा क्षेम के नाम से छपने लगे।

958 के आसपास महाराज क्षेमगुप्त चल बसे और परंपरा अनुसार दिद्दा से सती होने के लिए कहा गया। लेकिन दिद्दा ने ना सिर्फ इससे इंकार किया बल्कि अपने बेटे अभिन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गईं और शासन चलाने लगी। लोग इससे हरगिज खुश न थे। स्थानीय सरदारों ने कहा, एक औरत हम पर शासन कैसे कर सकती है।उसका वचन नहीं चल सकता। दिद्दा ने जवाब दिया, मेरा वचन ही है मेरा शासन और सरदारों का विद्रोह बुरी तरह कुचल दिया गया। 972 ई. में महराजा अभिन्यु भी चल बसे लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा।

उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया और राजकाज चलाती रहीं।
रानी दिद्दा का राज्य कश्यपमेरु (कश्मीर) से लेकर मध्य एशिया तक फैला हुआ था।

साम्राज्ञी दिद्दा का शस्त्र प्रशिक्षण :-

सम्राज्ञी दिद्दा ने शस्त्र प्रशिक्षण में महारथ प्राप्त की थी। चारों दिशाओं में ऐसी वीर नारी और कोई नहीं थी। भगवा ध्वज का परचम अश्शूर राज्य तक लहराया था।

महारानी दिद्दा नियुद्ध_कला में निपुण थीं , यह एक प्राचीन भारतीय युद्ध कला (मार्शल आर्ट) है।

▪नियुद्ध का शाब्दिक अर्थ है ‘बिना हथियार के युद्ध’ अर्थात् स्वयं निःशस्त्र रहते हुये आक्रमण तथा संरक्षण करने की कला।
▪यन्त्र-मुक्ता कला – अस्त्र-शस्त्र के उपकरण जैसे घनुष और बाण चलने की कला।
▪पाणि-मुक्ता कला – हाथ से फैंके जाने वाले अस्त्र जैसे कि भाला।
▪मुक्ता-मुक्ता कला – हाथ में पकड कर किन्तु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि।
▪हस्त-शस्त्र कला – हाथ में पकड कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि।
▪ऐसी 52 युद्ध कलाओं का प्रशिक्षण लेकर गुरुकुल से योद्धा बनकर निकली योद्धा दिद्धा ने भविष्यकाल में सम्राज्ञी दिद्दा बन कर भगवा ध्वज का परचम मध्य एशिया तक लहराकर भारतवर्ष एवं सनातन धर्म की गौरवमयी एवं स्वर्णिम इतिहास रच डाला था।

देशद्रोहियों को मौत की सजा :-
दिद्दा ने देशभक्त एवं योग्य लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करके देशद्रोहियों एवं अक्षम प्रशासनिक अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया।

इस शक्तिशाली रानी ने अनेक गद्दार लोगों को उम्रकैद तथा मृत्युदंड तक दिए। कश्यपमेरु(कश्मीर) राज्य की सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक था। दिद्दा को जहां वामपंथी इतिहासकारों ने निष्ठुर-निर्दयी कहा, वहीं इस रानी को न केवल भारतीय राष्ट्रभक्त एवं विदेशी इतिहासकारों द्वारा कुशल एवं शौर्यशाली प्रशासिका भी कहा गया। रानी दूरदर्शी थी अपने राज्य को अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए अन्दर पल रहे आस्तीन के सांपो का सर कुचलना सबसे ज्यादा आवश्यक लगा। उन्हें पता था बाहर से आक्रमण होते नहीं हैं करवाए जाते हैं। जैसे शरीर के किसी हिस्से में घाव हो जाये तो उसका अंदरूनी इलाज सबसे ज्यादा आवश्यक होता अंदरूनी कीटाणु मरेंगे तभी बहार का घाव सूखेगा ठीक उसी तरह देश के अंदर के गद्दारों का जब तक अंत नहीं होता तब तक देश की सीमा सुरक्षित नहीं हो सकती देश को बाहरी आक्रमण झेलने पड़ेंगे।

बाल्कन के कृम_साम्राज्य के शासक बोरिस_द्वितीय ने सन् 969 ई. में कश्मीर पर आक्रमण किया था(जिसे आज बल्ख नाम से जाना जाता है)। किसी समय वह सम्राज्ञी दिद्दा के राज्य का हिस्सा हुआ करता था। महारानी दिद्दा केवल कुशल शासिका ही नहीं एक कुशल रणनीतिज्ञ भी थी। दिद्दा एक कुशल सेना संचालिका होने के नाते सोचा ना जा सके ऐसा युद्धव्यूह की रचना और यवन शासक बोरिस की शक्तिशाली सेना बल ने आधे घंटे के अन्दर घुटने टेक दिए।

जहाँ कायर बोरिस बारह हज़ार सैनिकों की आड़ लेकर लड़ रहा था वही सम्राज्ञी दिद्दा स्वयं मोर्चा सँभालते हुए सेनाबल के आगे खड़ी थी। बोरिस सर्प_व्यूह का प्रहार झेल नहीं पाया और प्राचीन भारतीय युद्ध व्यूह की रचना यवनों की समझ के बाहर थी।

रानी दिद्दा के आगे बचे सैनिकों के साथ हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया एवं बाल्कन , बुल्गारिया की साम्राज्य पर रानी दिद्दा ने केसरिया परचम लहराकर भारतीय इतिहास में स्वर्णिम इतिहास का एक और पृष्ठ जोड़ दिया था।

सन 972 ई. में यारोपोल्क_प्रथम को हरा कर रूस साम्राज्य की एक चौथाई हिस्से पर सम्राज्ञी दिद्दा ने अपना अधिपत्य स्थापित किया था। इस विदुषी अवतरित नारी की रणकौशलता को देख पराजित रूसी राजा ने स्वयं अपने किताब दक्षिण एशिया नारी (South Asian Women)किताब में साम्राज्ञी दिद्दा बुद्धि एवं शक्ति की वर्णन करते हुये कहा है कि:-
भारतभूमि की मिट्टी की वंदना करने की बात लिखी गई है,भारत की मिट्टी विश्वभर में सबसे चमत्कारी मिट्टी हैं जहाँ नर नारी दोनों पराक्रमी होते हैं और भी सम्राज्ञी दिद्दा के बारे में उल्लेखनीय वर्णन किया हैं और आगे लिखता हैं उनकी(यारोपोल्क प्रथम)हार के पीछे यह कारण था की उसका युद्ध(सम्राज्ञी दिद्दा)एक कुशल रणनीतिज्ञ एवं एक बुद्धिमती, पराक्रमी अद्भुत सैन्यसंचालिका से हुई थी इसलिए उसके पास एक ही रास्ता था मृत्यु या आत्मसमर्पण जिसमे से यारोपोल्क प्रथम ने आत्मसमर्पण करना उचित समझा था।

दिद्दा ने नारी शिक्षा एवं उत्थान के अनेकों प्रकल्प शुरू करवाए। कई विकास योजनाएं प्रारंभ हुईं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक योग्य लोगों को निर्माण कार्यों में दायित्व दिए गए। एक बड़ी योजना के अधीन कई नगर एवं गांव बसाए गए।

दिद्दा ने मठ/मंदिरों के निर्माण में भी पूरी रुचि ली। श्रीनगर (कश्मीर) में आज भी एक मोहल्ला ‘दिद्दामर्ग’ के नाम से जाना जाता है यहीं पर एक विशाल सार्वजनिक भवन दिद्दा मठ के नाम से बनवाया गया। इस विशाल मठ के खंडहर आज भी मौजूद हैं। पराक्रमी उत्पलवंश के एक अति यशस्वी सरदार सिंहराज की पुत्री दिद्दा ने एक शक्तिशाली कूटनीतिज्ञ के रूप में पचास वर्षों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा।उत्पलवंश के ख्याति प्राप्त राजाओं ने कश्मीर के इतिहास में अपना गौरवशाली स्थान अपने शौर्य से बनाया है। स्थानीय लोग आज भी लोक कथाओं में दिद्दा की हिम्मत और कुशलता का गुणगान करते हैं।

जब महारानी दिद्दा वृद्धावस्था में पहुंचीं तो उसने अपने भाई उदयराज के युवा पुत्र संग्रामराज का स्वयं अपने हाथों से राज्याभिषेक कर दिया। आगे चलकर इसी सम्राट संग्रामराज ने काबुल राजवंश के अंतिम हिन्दू सम्राट राजा त्रिलोचनपाल के साथ मिलकर ईरान,तुर्किस्तान और भारत के कुछ हिस्सों में भयानक अत्याचार व लूटमार करने वाले क्रूर मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी को पुंछ (जम्मू-कश्मीर) के लोहरकोट किले के निकटवर्ती जंगलों में दो बार पराजित किया था।

दिद्दा भारत के इतिहास के उन महत्वपूर्ण चरित्रों में से है , जिन्होंने षड्यंत्रों और हत्याओं की राजनीति एवं आक्रमणकारी पर निरंतर विजय प्राप्त की। इस वीरवती साम्राज्ञी ने विद्रोहों एवं कठिनाइयों से ग्रस्त कश्मीर राज्य को अपने साहस और योग्यता से संगठित रखा।

 

(लेखक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)
साभार-https://www.facebook.com/SHIVANAND1MISHRA से