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केजी बालकृष्ण आयोग: बाबासाहेब के दृष्टिकोण लागू करने का दायित्व

 एक गोंडी मुहावरा है – बुच्च बुच्च आयाना कव्वीते पालकी रेंगिना अर्थात आगे आगे होना किंतु अपने मूल विषय पर कुछ भी ध्यान न देना। रंगनाथ मिश्र आयोग के संदर्भ में यह गोंडी कहावत सटीक लगती है। रंगनाथ मिश्र आयोग के बाद मोदी सरकार द्वारा केजी बालकृष्ण आयोग का गठन आरक्षण के दुरुपयोग को जांचने, मापने और थामने का एक संवेदनशील प्रयास है। रंगनाथ मिश्र आयोग के माध्यम से कांग्रेस और मनमोहन सरकार ने एक ओर जहां अपनी चिरकालिक तुष्टिकरण की नीति को आगे बढ़ाया वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समाज को भी बैसाखियों पर चलाने और आत्मनिर्भर न होने देकर उसे मात्र एक वोट बैंक बनाये रखने की अनैतिक राजनीति जारी रखी थी। केजी बालकृष्ण आयोग से आशा है कि वह बाबासाहेब के भाव अनुरूप होकर भारत में आरक्षण के अंतर्तत्व, अंतर्भाव व अंतरात्मा को बनाए रखने में सार्थक सिद्ध होगा।
भाजपा एससी कोटे में दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों को शामिल करने का सतत और स्पष्ट विरोध करती आई है। संविधान के अनुसार हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के चिन्हित लोगों को ही अनुसूचित जाति का दर्जा मिलता है। पार्टी का मानना है कि इससे धर्म परिवर्तन और तेजी से बढ़ेगा। मुस्लिम और ईसाई धर्म के लोग भी इस दर्जे की मांग कर रहे हैं।
आरक्षण की व्यवस्था का लाभ उसके मूल हितग्राही को न मिलने से क्या स्थितियां बन रही है? आरक्षण का अधिकतम लाभ समाज के छद्म दलित, अवसरवादी दलित और अपने ही दलित समाज को उपेक्षा और हास्य की दृष्टि से देखने वाले तथाकथित दलितों को मिलने से दलित व जनजातीय समाज पर कितना विषाक्त प्रभाव पड़ रहा है या पड़ेगा ? इन दुष्प्रभावों को हमारा समाज प्रत्यक्ष देख रहा है। वस्तुतः अम्बेडकर जी के कार्यों को, स्वप्नों को, सोच को यदि हम यथार्थ के धरातल पर उतारना चाहते हैं तो हमें उनके सम्पूर्ण विचार, लेखन और रचना संसार के मूल तत्व और सत्व को समझना होगा। अंबेडकर जी केवल आरक्षण नही अपितु आरक्षण के वैज्ञानिकीकरण, युक्तियुक्त करण और आरक्षण के सामयिकी करण के घोर पक्षधर थे।
वह आरक्षण ही क्या जिसका लाभ सर्वाधिक दीन हीन हितग्राही को मिल न पाए और उसमें लीकेजेस इतने हो जाएं कि अम्बेडकर जी का मूल विचार और लक्ष्य ही धराशायी हो जाए। कितनी बड़ी विडंबना है कि आज आरक्षण की अस्सी प्रतिशत सुविधाओं का लाभ ऐसे 20 प्रतिशत ऐसे नकली अनुसूचित और अनु. जनजातीय उठा रहें हैं जो लोभ लालच में इस देश से बाहर के धर्म में कन्वर्ट हो गए हैं। ये कथित 20 प्रतिशत अन्य धर्म में कनवर्ट लोग दलित समाज को मिलने वाले आरक्षण का बेतरह शोषण, दोहन कर रहे हैं। ये लोग अपने समाज के अन्य लोगों से रोटी बेटी का व्यवहार भी नहीं रखते। ये मतांतरित अनुसूचित जाति और जनजातीय के लोग अपने ही लोगो के प्रति घृणा, निकृष्टता और हास्य व्यंग्य का भाव रखते हैं। ये 20 प्रतिशत कन्वर्टेड ईसाई और मुस्लिम अपने कॉकस से, चतुराई से, धन बल से व अपनी राजनैतिक शक्ति से आरक्षण की सुविधाओं को अपने कन्वर्टेड कुनबे तक सीमित किए रहते हैं। आज यदि बाबासाहेब जीवित होते तो विदेशी धर्म को अपनाने वाले इन लोगों की आरक्षण सुविधाएं तत्काल समाप्त कर देते।
अब देश के नीति निर्धारकों को सोचना होगा की मुस्लिम समाज को ओबीसी आरक्षण दिया जाना कैसे उचित है? वस्तुतः ओबीसी आरक्षण का ताना बाना ही पिछड़ी हिंदू जातियों के उन्नयन के लिए बुना गया था। इस्लाम की ओर से सदैव कहा जाता है कि उनके धर्म में जाति व्यवस्था नहीं है, यह भी कहा जाता है कि इस्लाम में हर मुसलमान बराबर है। जब उनमें जाति व्यवस्था ही नहीं है, सब बराबर हैं तो पिछड़ी जातियों को मिलने वाला आरक्षण उन्हे क्यों मिलना चाहिए?
इस्लाम के अनुसार हर मुसलमान बराबर है। जाति व्यवस्था मुक्त होने का दंभ ईसाई धर्म भी भरता है, जब जाति ही नहीं है, उपेक्षा और भेदभाव ही नहीं है तो जातिगत आरक्षण का लाभ क्यों? वस्तुतः यह बीमारी तुष्टिकरण की देन है। कितनी बड़ी विसंगति है कि अभी हाल ही वर्षों तक भारत में हिंदुओं पर 800 वर्षों तक शासन करने वाले, उस शासन में विशेष नागरिक का दर्जा प्राप्त करने वाले, हमारा दमन करने वाले मुसलमानो की नब्बे प्रतिशत जनसंख्या ओबीसी में सम्मिलित होकर आरक्षण का अवैध लाभ उठाना चाहती है??!! स्मरण रहे कि शेख, सैय्यद, मुग़ल पठान को छोड़कर बाकि सभी मुस्लिम जातियां ओबीसी में आती हैं। मुस्लिम समाज को उच्च सामाजिक स्थान मिलता था, आठ सौ वर्षों तक हिंदुओं के मुक़ाबले कम टैक्स देना पड़ता था, इन्हें शासन से बहुत सी अतिरिक्त सुविधाये भी मिलती थी तो वो पिछड़े कैसे हो गए?! क्या शासक वर्ग कभी पिछड़ा हो सकता है??!!
देश में तुष्टिकरण की जनक कांग्रेस ने 2007 – 08 में एक विशेष विधेयक पास कर सुनिश्चित किया कि हिंदू धर्म से कनवर्जन कर गए ईसाई और ओबीसी ईसाई को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा। आरक्षण का अनितियुक्त वितरण हमारे समाज को रोगी बना रहा है। खतरनाक स्वप्न देखने वाले अनियंत्रित गति से भयविहीन होकर धर्म कनवर्जन के कार्य में लगे हुए हैं। आरक्षण कानून की धज्जियां उड़ रही है।
 वस्तुतः केजी बालकृष्ण आयोग से आशा यही है कि वह बाबासाहेब की आंखें बनकर इस समूची स्थिति की जांच करेगा। यदि आपने धर्म परिवर्तन कर लिया है तो आपको अनुच्छेद-341 से आरक्षण का लाभ क्यों मिले? यह प्रश्न अब बाबासाहेब अम्बेडकर की भावनाओं को लागू करने या खारिज करने का प्रश्न है।
मतांतरित एसटी एससी को आरक्षण के लाभ के इस विवाद से अल्पसंख्यकों की परिभाषा का  एक नया विमर्श उपजा है। भारत में धर्म के आधार पर अलग सिविल कानून हैं। मूल वंचित वर्ग को वांछित लाभ नहीं मिलना और मुस्लिम और ईसाई को आरक्षण का अनुचित लाभ मिलने और हिंदू धर्म के दलितों को सुविधाओं में हानि होने से देश में विवाद व असमानता बढ़ रही है। कई राज्य धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बना भी रहे हैं। धर्मांतरण के बाद आरक्षण का लाभ मिलने की अनुमति मिली, तो धर्म परिवर्तन के सामाजिक अपराध को तीव्र गति मिलेगी।
देश, समाज और क़ानून को धोखा देने के लिए धर्म परिवर्तन के बाद भी लोग अपना नाम नहीं बदलते और आरक्षण का लाभ लेते रहते हैं। यह समाज की आंखों में मिर्च झोंकने जैसा है। वर्तमान में ऐसे मामलों के लिए साफ कानूनी प्रावधान नहीं हैं। आयोग की रिपोर्ट के बाद ऐसी अनेक कानूनी विसंगतियों पर समाज, सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से मंथन होकर कुछ युक्तियुक्त स्थिति बनेगी। वर्तमान में आरक्षण की सुविधा में नए नए लीकेजेस आ गए हैं। इस संदर्भ में समाज विज्ञान की दृष्टि से जांच, अध्ययन और समस्या का निदान एकमात्र मार्ग है। केजी बालकृष्ण आयोग इस मार्ग का शिल्पी सिद्ध होगा यही देश को विश्वास है।
(प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
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